योगी सरकार - मुर्दाबाद!... मुर्दाबाद !!.... मुर्दाबाद!!!
लखनऊ: लाठी.गोली की सरकार नहीं चलेगी...... नहीं चलेगी... की आवाज बुलंद करने वालों को योगी सरकार की पुलिस सरेआम पीट-पीट कर जेल की सलाखों के पीछे ही नहीं भेज रही बल्कि उन्हें ठोकने और सीधा करने के गुल भी खिला रही है। खासतौर से अखबारनवीसों को सबक सिखाने के मामले में उसे न न्यायालय की परवाह है और न ही लोकतांत्रिक मूल्यों की! महज एक हफ्ते में तीन पत्रकारों को बेतरह पीटकर जेल भेज दिया गया। बताते चलें कि स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनौजिया को उ• प्र• के मुख्यमंत्री पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर जेल भेजा गया था जिसे उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद रिहा किया गया। शामली जिले में पत्रकार अमित को जीआरपी थाने के थानेदार राकेश ने उस वक्त पीटा जब वे बेपटरी मालगाड़ी की कवरेज करने स्टेशन परिसर में पहुंचे थे। नोएडा में नेशनल लाइव न्यूज चैनल की एंकर अंशुल कौशिक को मुख्यमंत्री योगी के मुखालिफ बगैर पड़ताल खबर चलाने के आरोप में जेल भेज दिया गया। इसी तरह अमेठी के बिजली महकमे के संविदाकर्मी जीवेश को भी मुख्यमंत्री के खिलाफ वाट्सअप पर पोस्ट डालने पर जेल भेज दिया गया। वैसे विरोध जताने वालों को जेल भेजने का यह पहला मौका नहीं है, इससे पहले मुख्यमंत्री को महज काले झंडे दिखाने वाले, गाड़ी के आगे लेट जाने वाले को भी जेल भेजा जा चुका है।
प्रशांत कनौजिया को उनके घर दिल्ली से पकड़ कर लखनऊ की जांबाज पुलिस लाई थी और एक शातिर अपराधी की तरह हजरतगंज थाने में प्रताड़ित करने के बाद जेल भेजा गया। इस जुल्म के खिलाफ प्रशांत की पत्नी ने उच्चतम न्यायालय में गुहार लगाई तब न्यायालय ने प्रशांत को जमानत देते हुए उ• प्र• सरकार की तमाम दलीलें खारिज करते हुए कहा, "यह नागरिक स्वतंत्रता से वंचित करने का ज्वलंत मामला है, ऐसे में हम हाथ बाँध कर नहीं रह सकते। एक नागरिक की स्वतंत्रता का अधिकार पवित्र है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता। यह संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार है और शासन द्वारा इसका अतिक्रमण नहीं किया जा सकता।" न्यायालय ने उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि हम उनके ट्वीट का समर्थन नहीं कर रहे हैं। बावजूद इसके दो पत्रकारों को इसी तरह के आरोपों में जेल भेज दिया गया। शामली जिले के पत्रकार अमित को उसका अपना काम करने के अपराध में पुलिस ने घेर कर सड़क पर पीटा फिर हवालात में नंगा करके कूटा और उनके मुंह में एक दबंग पुलिसिये ने पेशाब तक कर दिया। यह किस दण्ड संहिता में लिखा है। दरअसल अमित ने इससे पहले स्टेशन पर होने वाले अनैतिक कारोबार की एक स्टोरी कुछ दिनों पहले की थी जिससे जीआरपी थाने के इंस्पेक्टर राकेश नाराज थे और उन्होंने मौका मिलते ही पत्रकार को सबक सिखा दिया! हालांकि इन बेख़ौफ़ पुलिसियों को निलम्बित किया जा चुका है लेकिन क्या निलम्बन वाजिब सजा मानी जा सकती है।
पत्रकार प्रशांत कनौजिया की गिरफ्तारी के विरोध में दिल्ली के पत्रकारों ने उ• प्र• सरकार के खिलाफ दिल्ली में धरना प्रदर्शन किया, वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव सहित कई पत्रकारों ने व्यक्तिगत विरोध जताया लेकिन समूचे उ• प्र• में कहीं किसी पत्रकार या पत्रकार संगठन ने अपना मौन नहीं तोड़ा। जबकि उ• प्र• में बीसियों संगठन पत्रकार हितों, सुरक्षा का दावा करते सक्रिय हैं। जबकि होना यह चाहिए था कि, पत्रकार संगठन हजरतगंज थाने को घेर कर अपना विरोध प्रकट करते। यहाँ तो बिलकुल उल्टा हुआ और पत्रकारों की जमात सतादल के कार्यकर्ता की तरह आचरण कर बैठी। जबकि पुलिस पर यह आरोप हमेशा लगता रहा है कि वो सत्तादल के कार्यकर्ता की तरह काम करती है। हम टकराव व अशिष्टता के हामी नहीं हैं, लेकिन जोर जुल्म के विरोधी और सरकार में हो रहे गडबडझाले को उजागर करना अपना धर्म मानते हैं। इसके आड़े कोई आएगा तो संघर्ष ही नहीं करेंगे बल्कि सच में कलम को तलवार में बदलने में कभी पीछे न हटेंगे।
यहाँ एक बात और कि आखिर योगी आदित्यनाथ पर ही लोग अशिष्ट टिप्पणी क्यों कर रहे हैं?-
इस पर उन्हें भी गंभीरता से सोचना चाहिए। इसके साथ ही बताता चलूं कि हर नागरिक को मौजूदा सरकार का विरोध जताते हुए, योगी सरकार- मुर्दाबाद - नारा लगाने का अधिकार है। बस हिंसा और अशिष्टता से दूर रहकर।
(राम प्रकाश वरमा)
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