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मॉम से माई तक के किचन में "यू ट्यूब" बना बावर्ची
लखनऊ: रसोई से दस्तरखान तक आते खानों की मनपसन्द खुशबू हर किसी की भूख बढ़ा देती है- बिरयानी - कवाब हो या शाही पनीर या तडके वाली दाल, आज हर किसी की "डाइनिंग टेबल" पर देखी जा सकती है।
और तो और, पूर्वांचल का लिट्टी-चोखा भी पांच-सितारा हो चला है। लजीज खाने परोसते होटलों की भरमार है, वहीं ऑन लाइन साइडें और टिफिन सर्विस घर-घर उम्दा से उम्दा भोजन परोसने की होड़ लगाये हैं। हल्ला मचाते विज्ञापनों के दौर में जहां जुबान चटोरी हुई है, वहीं घर की रसोई को "यू ट्यूब" और ष्फ़ू "फूड एंड फ़ूड" जैसे टीवी चैनल ने प्रयोगशाला में बदलना शुरू कर दिया है। हर वर्ग की महिलाएं यहाँ तक "स्लम एरिया" में रहने वाली निम्न मध्यमवर्गीय महिलाएं भी "यू ट्यूब" पर खाने के वीडियो देख कर नये से अंदाज में दाल से लेकर करेला तक बनाने लग पड़ी हैं। गुजराती रसोई में मटन बिरयानी, चिकन मसाला, कबाब और नान-कोल्चों की पहुंच हो गई है, वहीं उत्तर भारतीय किचन में थेपला, ढोकला से लेकर इडली-सांभर ने खासी जगह बना ली है। कश्मीरी शलगम-गोश्त दिल्ली से दक्खन, महाराष्ट्र से बंगाल तक, तो माछेर-भात सारे भारत में लोगों की पसंद है। इस सबके पीछे अखबारों में छप रहे खाने-पकाने-खिलाने के कॉलमों की भी बड़ी भूमिका है।
"छछूंदरमारी ढंग का खाना न पकाय पइहें तो का करिहें" सास-बहू के बीच का यह जुम्ला "यू ट्यूब" जैसे चैनलों की बदौलत गूंगा हो चला है। हर हाथ में "टच स्क्रीन" मोबाइल ने बहुत कुछ बदल दिया है जिन्हें खाना पकाने में आलस लगता था या रेस्त्रां- ढाबे का खाना पसंद था वे भी घर की रसोई को पांचसितारा बनाने में चहकती दिखाई देने लगी हैं। इस बदलाव में पुरुषों-बच्चों का भी कम योगदान नहीं है, टू मिनट मैगी, ओट्स मसाला से बहुत आगे केले के रसगुल्ले और शुद्ध आंटे की नान लोहे के साधारण तवे पर सेकी जारही है। खस्ता-पूड़ी, खिचड़ी, खाखरा-पापड़-अचार सब के सब साधारण रसोई के उपकरणों की मदद से खाने की मेज पर हाजिर हैं।
महिलाओं पर लगने वाले तमाम आरोप खारिज हो रहे हैं। यहाँ तक कामकाजी महिलाएं छुट्टियों में "कुकिंग सेलिब्रेट" करती दिख जायेंगी।
"लखनऊ में चिकन खाया भी जाता है और पहना भी जाता है"। फिल्म "जाॅली एलएलबी" का यह डायलाग भले ही हंसी के बीच खो गया हो लेकिन दोनों दुनिया भर में मशहूर हैं। आज चिकन (मुर्ग) की दसियों किस्में "यू ट्यूब" व "टीवी चैनल्स" के जरिये दुनियाभर के किचन-चौके में पक रही हैं, तो चिकन के कढ़े हुए कपड़े शौक से दुनिया के तमाम मुल्कों में पहने जारहे हैं। महिलाओं के हाथ में आये मोबाइल ने उन्हें और अधिक रचनात्मक बनाने में बेहतर मदद की है। बहुत सारे पुरुष भी खाना बनाने में रूचि रखते हैं वे भी इंटरनेट और टीवी की मदद से अपना स्वाद बदलने में पीछे नहीं हैं।
(राम प्रकाश वरमा)
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