भारत नहीं रहा सबसे तेज़ बढ़ती अर्थव्यवस्था, अब क्या ?-
भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले पांच सालों में सबसे धीमी रफ़्तार से बढ़ी है, सरकार की ओर से जारी किए गए हालिया आंकड़ों से ये बात साफ़ होती है.
मोदी सरकार को उसके पहले कार्यकाल में सबसे ज्यादा रोज़गार के मुद्दे पर घेरा गया. सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017-18 के बीच बेरोज़गारी 45 साल में सबसे ज़्यादा रही.
बीबीसी न्यूज द्वारा प्रसारित खबरों में बताया गया है कि, ये रिपोर्ट बताती है कि ये आंकड़े दूसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
पिछले वित्तीय वर्ष अप्रैल 2018 से मार्च 2019 तक आर्थिक वृद्धि दर 6.8% रही, वहीं जनवरी से मार्च तक की तिमाही में ये दर 5.8% तक ही रही। ये दर पिछले दो साल में पहली बार चीन की वृद्धि की दर से भी पीछे रह गई है।
इसका मतलब है कि भारत अब सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था नहीं रह गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए ये एक बड़ी चुनौती साबित होगी। निर्मला सीतारमण मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कॉमर्स और रक्षा जैसे मंत्रालय संभाल चुकी हैं।
सरकार कैसे देगी रोज़गार
सरकार के सामने मौजूदा चुनौती ये है कि वो अर्थव्यवस्था के प्रति लोगों का यकीन वापस ला सके.
अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी कहते हैं, "सरकार को अपनी शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म पॉलिसी के बीच सामंजस्य बैठाना होगा।"
सरकार की सबसे पहली चुनौती रोज़गार होगी।
मोदी सरकार को उसके पहले कार्यकाल में सबसे ज्यादा रोज़गार के मुद्दे पर घेरा गया। सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017-18 के बीच बेरोज़गारी 45 साल में सबसे ज़्यादा रही।
जोशी मानते हैं कि सरकार को अभी भवन निर्माण और कपड़ा इंडस्ट्री जैसे लेबर.सेक्टर पर फ़ोकस करने की ज़रूरत है, ताकि तत्काल प्रभाव से रोजगार पैदा किया जा सके। इसके अलावा सरकार को हेल्थ केयर जैसी इंडस्ट्री पर भी काम करना चाहिए ताकि लंबी अवधि वाली नौकरियां भी पैदा की जा सकें।
हेल्थ सेक्टर में नौकरियों पर जोशी कहते हैं, "सरकार अपनी स्वास्थ्य सेवा और जन कल्याण योजनाओं को बढ़ाना चाहती है, इसके लिए डॉक्टरों और सर्जनों के अलावा पैरामेडिक्स और नर्सों की भी आवश्यकता है।"
घटता निर्यात भी रोजगार के रास्ते में एक बड़ी रुकावट पैदा करता है।
सरकार से ऐसी नीतियों को प्राथमिकता देने की उम्मीद है जो छोटे और मध्यम व्यापार को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएंगी।
उपभोक्ताओं की मांग बढ़ाना
नई जीडीपी दर से साफ है कि भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से नीचे की ओर गिर रही है।
चीन के अलग भारत की आर्थिक वृद्धि का सबसे बड़ा कारक यहां की घरेलू खपत है। पिछले 15 सालों से घरेलू खपत ही अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में सबसे अहम भूमिका निभाता रहा है। लेकिन हालिया डेटा से साफ़ है कि उपभोक्ताओं की खरीदने की क्षमता में कमी आई है।
कारों.एसयूवी की बिक्री पिछले सात सालों के सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई है। ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल, स्कूटर की बिक्री में भी कमी हुई है। बैंक से कर्ज़ लेने की मांग भी तेज़ी से बढ़ी है। हालिया तिमाहियों में हिंदुस्तान यूनिलीवर की आय वृद्धि में भी कमी आई है। इन तथ्यों को देखते हुए ये समझा जा सकता है कि उपभोक्ता की खरीदने की क्षमता में कमी आई है।
बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में वादा किया कि वह मध्यम आय वाले परिवारों के हाथों में अधिक नकदी और अधिक क्रय शक्ति सुनिश्चित करने के लिए आय करों में कटौती करेगी।
एक ब्रोकरेज कंपनी के वाइस प्रेसिटेंड गौरांग शेट्टी का मानना है कि सरकार को अपने अगले बजट (जुलाई) में पर्सनल और कॉरपोरेट टैक्स में भी कटौती करनी चाहिए।
वो कहते हैं कि ये कदम अर्थव्यवस्था के लिए एक उत्तेजक की तरह काम करेगा।
लेकिन भारत के 3.4% बजट घाटे यानी सरकारी व्यय और राजस्व के बीच का अंतर मोदी सरकार को ऐसा करने से रोक सकता है।
जानकारों का मानना है कि बढ़ता वित्तीय घाटा शॉर्ट और लॉन्ग टर्म वृद्धि को रोक सकता है।
किसानों का संकट
भारत में बढ़ता कृषि संकट नरेंद्र मोदी के लिए उनके पहले कार्यकाल की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रहा। देश भर के किसान दिल्ली-मुंबई सहित देश के कई हिस्सों में सड़कों पर अपनी फ़सल के उचित दाम की मांग के साथ उतरे।
बीजेपी ने अपनी पहली सरकार में चुनिंदा किसानों को 6000 रुपये सालाना देने का फ़ैसला किया था, हालांकि मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल की पहली मंत्रिमंडल की बैठक में सभी किसानों के लिए ये स्कीम लागू कर दी है।
जोशी कहते हैं, "इस योजना से कुछ वक्त के लिए राहत देगी लेकिन लंबे वक्त में ये काम नहीं आएगी। वह मानते हैं कि कृषि क्षेत्र की संरचना को सुधारने की ज़रूरत है।
वर्तमान समय में किसान अपनी फ़सल राज्य सरकार की एजेंसियों को बेचते हैं। जोशी कहते हैं कि किसानों को सीधे बाज़ार में मोलभाव करने की सहूलियत देनी चाहिए।
निजीकरण को बढ़ावा
बीजेपी के चुनावी वादों में से एक था कि वह रेलवे, सड़क और इंफ्रास्ट्रक्चर पर 1.44 ट्रिलियन डॉलर खर्च करेंगे। लेकिन इतनी बड़ी रकम कहां से आएगी। जानकार मानते हैं कि मोदी इसके लिए निजीकरण की राह अपना सकते हैं।
मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में सरकारी उद्यमों को बेचने के अपने वादों पर धीमी गति से काम किया है। एयर इंडिया लंबे वक्त से कर्ज़ में डूबी है। सरकार ने इसके शेयर बेचने की प्रक्रिया शुरू की लेकिन कोई ख़रीददार नहीं मिला और एयर इंडिया नहीं बिक सकी।
गौरांग शेट्टी मानते हैं कि अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी निजीकरण को तेज़ी से अपनाएंगे।
पिछले कुछ सालों से निजी निवेश पिछड़ रहा है और पिछले एक दशक में भारत की प्रभावशाली आर्थिक वृद्धि काफी हद तक सरकारी खर्चों से पर ही चल रही है।
अपनी पहली सरकार में नरेंद्र मोदी ने लाइसेंसी राज में कुछ कमी की जिसकी मदद से भारत विश्व बैंक की व्यापार करने की सहूलियत वाली सूची में 77वें पायदान पर पहुंच सका, जो साल 2014 में 134वें स्थान पर था।
जोशी मनाते हैं कि आने वाले दो साल में सरकार को कड़े फ़ैसले लेने होंगे। हो सकता है कि इसका असर तुरंत ना नज़र आए लेकिन ये भारत की वृद्धि में बड़ा फर्क लाएंगे।
(साभार: बीबीसी न्यूज़)
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