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आज की संसद देश की नुमाइंदगी नहीं बल्कि दलों की नुमाइंदगी कर रही है और दलो को बंधुआ मजदूर बन रही है: रघुठाकुर
नई-दिल्ली: प्रख्यात समाजवादी चिंतक व विचारक- रघुठाकुर जी के तीसरे काव्य संग्रह ‘स्याह उजाले’ का विमोचन ‘‘गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली’’ में संपन्न हुआ।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार- श्रीराम शरण जोशी ने कहा कि इस काव्य संग्रह में मानवीय संवेदना एवं सामाजिक सरकारों को सामने रखा गया है जो आज के इस पूंजीवादी दौर में ऐसी कविता लिखना गहरी मानवीय संवेदना से ही संभव है। इस काव्य संग्रह में समाज की पीड़ा को उजागर किया गया है। रघु ठाकुरजी को में पिछले चार-पांच वर्षाें से जानता हूॅ। उन्होंने समाज के छद्रम बदलाव के साथ रिश्ता नहीं जोड़ा, बल्कि इसे वखूबी अपनी कलम की आवाज से उठाया भी है।
श्री हरि सुमन विष्ट ने कहा कि मैं इस पुस्तक के प्रकाशन हेतु शुभकामनायें श्री रघु जी को देता हूॅ। उन्होंने कहा कि, यह पुस्तक समाज व राष्ट्र के परिवर्तन का दस्तावेज बनेगी। ऐसी कविताएं वही लिख सकता है जिसके मन में समाज के प्रति लगाव हो, ठेस हो, दर्द हो एवं गहरी संवेदनाएं हो, ऐसा केवल रघु ठाकुर द्वारा ही हो सकता है, जो समाजवादी चिंतक व विचारक है। उनकी कविताओं में दृष्टि है और आज की व्यवस्था को कटघरे में खड़ा किया गया है।
राज्य सभा सांसद- संजय सिंह ने कहा कि आज का दौर चुनौतियों का दौर है। समाज को, मीडिया के माध्यम से बांटने का काम किया जा रहा है। नफरत फैलाने के दौर में ऐसा काव्य संग्रह समाज को नई दिशा देने का काम करेगा। इस मौके पर उन्होंने अपने वेतन से 100 किताबें क्रय करने का ऐलान भी किया और कहा कि मैं इस विचार को फैलाने का काम करूंगा।
लोक सभा सांसद- भागीरथ प्रसाद ने कहा कि सरकार व संसद ही सब कुछ नहीं है। आज रघु जी जैसे लोग सरकारों के रचयिता हैं। लोकतंत्र को शुद्ध बनाने में, सार्थक बनाने में इस काव्य संग्रह की बड़ी भूमिका हो सकती है। यह कविताएं अन्याय के खिलाफ संघर्ष पैदा करेगी।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो• हरि मोहन शर्मा ने कहा कि भूमंडलीकरण के इस दौर में ऐसी रचनाएं समाज के लिए प्रेरणादाई रहेंगी। रघु जी की इन रचनाओं में आम आदमी और राजनैतिक व्यक्तियों के फर्क को साफ देखा जा सकता है। इन कविताओं को आप आनंद लेकर पढ़ सकते हैं, यह मार्मिक भी हैं।
कविता संग्रह ‘स्याह उजाले’ के लेखक व रचयिता- रघुठाकुर ने कहा कि इस काव्य संग्रह को यहां तक लाने में जिन लोगों ने भूमिका निभाई है उन्हें मैं साधुवाद देता हूं यह उनके सहयोग के बिना संभव नहीं हो सकता था। उन्होंने कहा कि, "मन की बात को रखने का माध्यम एवं मन की संवेदना की अभिव्यक्ति यह कविता संग्रह है। बाजारवाद के दौर में मानवीय संवेदना तेजी से घट रही हैं, समाज अमानवीय हो रहा है, यह गहरी चिंता का विषय है। उन्होंने राजनीतिक व्यवस्थाओं पर प्रहार करते हुए कहा कि आज संसद देश की नुमाइंदगी नहीं बल्कि दलों की नुमाइंदगी कर रही है, और दलों की बंधुआ मजदूर बन रही है। आज सभी दल व पार्टियां केवल विरोध पर मुखर है लेकिन अपनी कमियां कोई नहीं देख रहा"।
उन्होंने कहा कि, "विचार से ही बदलाव हो सकता है। जिस दिन हिंदुस्तान का कवि पूरे मन से बाहर निकलेगा तो बदलाव अवश्य होगा। अच्छा साहित्य अच्छे लोगों तक पहुंचे, यह जरूरी है।
अन्त में उन्होंने कहा कि, बुद्धिजीवियों द्वारा जो साहित्य लिखा जाता है उसमें बौद्धिक क्षमता, शब्द विन्यास कला तो रहती है, लेकिन जब साहित्य मजदूर व किसान के घर से निकलता है तो उसमें सच्चाई व मार्मिकता होगी। आप सभी को मेरी ओर से साधुवाद"।
अंत में आभार मुकेश चंद्र जी ने व्यक्त किया। मंच की अवस्था में प्रमुख रूप से सुश्री नेहा त्यागी ने सहयोग किया।
इस पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में प्रमुख रूप से वरिष्ठ पत्रकार- रामशरण जोशी, प्रसिद्ध साहित्यकार- हरि सुमन विष्ट, राज्यसभा सांसद- संजय सिंह, लोकसभा सांसद- भागीरथ प्रसाद, विधायक- गुरूदयाल, प्रो. हरिमोहन शर्मा, प्रो. श्रीमती नीलम आधार, वरिष्ठ राजनेता- महेंद्र जोशी, गांधी न्यास के अध्यक्ष- राजनाथ शर्मा, समाजवादी नेता- नूर मोहम्मद, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष- श्याम सुन्दर सिंह यादव तथा उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष- सच्चिदानन्द श्रीवास्तव, वीरेंद्र सेंगर, अवधेश कुमार, कामरेड बंसल, श्रीमती अनीता सिंह, बलदेव सिंह, कवि राजेंद्र राजन, राम कुमार पचैरी, रफीक गनी, अस्गर खान, श्रीमती शशि दीक्षित, मोहन ढाकोनिया, अरुण प्रताप, अमिताभ आधार हीरालाल जी, कैसी पिपल, विजय प्रताप, सर्वेश मिश्रा, अमन खान आदि विशेष रूप से उपस्थित रहे।
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