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08 अप्रैल: 1857 की क्रांति के महानायक पण्डित मंगल पांडेय
08 अप्रैल 2019: 1857 की क्रांति के महानायक
पण्डित मंगल पांडेय को शत्-शत् नमन वंदन और भाव
भावपूर्ण श्रद्धांजलि
(प्रस्तुति.नवनीत मिश्र)
1857 की क्रांति के महानायक पण्डित मंगल पांडेय को वर्ष 1857 में आठ अप्रैल के दिन बैरकपुर में फांसी पर लटका दिया गया था । उनकी शहादत के 90 वर्ष बाद देश को आजादी मिली थी ।
देश की आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वालों के जीवन को याद करना वर्तमान समय में आवश्यक है ।
अत्याचारी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पण्डित मंगल पांडेय ने 29 मार्च 1857 को बंगाल की बैरकपुर छावनी में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के बगावत का विगुल फूंका था।
अन्याय के खिलाफ लड़ने की ताकत पण्डित मंगल पांडेय में कूट.कूट कर भरी थी। उनके बचपन की कहानी हो या उनके ईस्ट इंडिया कंपनी में सिपाही बनकर अंग्रेजों का विरोध करने की बात हो वे कभी अन्याय को बर्दाश्त नहीं किए।
उसी का परिणाम रहा कि अंग्रेज अत्याचारी हुकूमत के खिलाफ जब कोई आवाज उठाने के लिए तैयार न था।
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तो बागी बलिया के लाल पण्डित मंगल पांडे ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अकेले ही बगावत का विगुल फूंक कर भारतीयों को यह बताने का काम किया कि अत्याचार और दमन का दिन बहुत दिन तक नहीं रहता। पण्डित मंगल पांडेय की क्रांति का ही परिणाम रहा कि राष्ट्र भर में जगह.जगह अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ लोगों के अंदर बगावत के अंकुर फूटने लगे। लोग अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने लगे।
अंतत: अंग्रेजों को यह देश छोड़कर जाना पड़ा।
पण्डित मंगल पांडेय द्वारा शुरु की गई यह बगावत अंग्रेजी हुकूमत के ताबूत में अंतिम कील साबित हुआ। अंग्रेजों ने उन्हे को बहुत प्रताड़ना दीए यहां तक कि उनके पैतृक गांव में जाकर भी तहस.नहस करने का काम किया। लेकिन इस बागी बलिया के बगावती लोगों ने अपने लाल के इस बहादुरी को झुकने नहीं दिया। बल्कि अपने सूझ-बूझ से अंग्रेजी हुकूमत का सामना किया।
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