विशेष: होली का मंगल पर्व हम सभी के जीवन में नई आध्यात्मिक क्रान्ति लाए: डा0 जगदीश गांधी
विशेष में प्रस्तुत है, 21 मार्च 2019 को शुभ होली पर विशेष लेख- "होली" का मंगल पर्व हम सभी के जीवन में नई आध्यात्मिक क्रान्ति लाए!
भारत संस्कृति में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से ही काफी महत्व रहा है।
हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ पर मनाये जाने वाले सभी त्योहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके, लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं।
भारत में त्योहारों एवं उत्सवों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है। यहाँ मनाये जाने वाले सभी त्योहारों के पीछे की भावना मानवीय गरिमा को समृद्धता प्रदान करना होता है।
यही कारण है कि भारत में मनाये जाने वाले सभी प्रमुख त्योहारों एवं उत्सवों में सभी धर्मों के लोग आदर के साथ मिलजुल कर मनाते हैं।
होली भारतीय समाज का एक प्रमुख त्योहार है, जिसका लोग बेसब्री के साथ इंतजार करते हैं। परम पिता परमात्मा से हमारी प्रार्थना है कि "होली" का मंगल पर्व हम सभी के जीवन में नई आध्यात्मिक क्रान्ति लाए!
भारतीय संस्कृति का परिचायक है "होली":
होली को लेकर देश के विभिन्न अंचलों में तमाम मान्यतायें हैं और शायद यही विविधता में एकता, भारतीय संस्कृति का परिचायक भी है। उत्तर पूर्व भारत में होलिकादहन को भगवान कृष्ण द्वारा राक्षसी पूतना के वध दिवस के रुप में जोड़कर, पूतना दहन के रूप में मनाया जाता है तो दक्षिण भारत में मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल भस्म कर दिया था।
तत्पश्चात् कामदेव की पत्नी रति के दुख से द्रवित होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने रंगों की वर्षा की।
इसी कारण होली की पूर्व संध्या पर दक्षिण भारत में अग्नि प्रज्जवलित कर उसमें गन्ना, आम की बौर और चन्दन डाला जाता है। यहाँ गन्ना कामदेव के धनुष, आम की बौर कामदेव के बाण, प्रज्जवलित अग्नि शिव द्वारा कामदेव का दहन एवं चन्दन की आहुति कामदेव को आग से हुई जलन हेतु शांत करने का प्रतीक है।
"होलिका" का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है:
होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से एक है। होली की हर कथा में एक समानता है कि उसमें "असत्य पर सत्य की विजय" और "दुुराचार पर सदाचार की विजय" का उत्सव मनाने की बात कही गई है। इस प्रकार होली मुख्यतः आनंदोल्लास तथा भाई-चारे का त्योहार है। यह लोक पर्व होने के साथ ही अच्छाई की बुराई पर जीत, सदाचार की दुराचार पर जीत व समाज में व्याप्त समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है।
ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता व दुश्मनी को भूलकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं और फिर ये दोस्त बन जाते हैं। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व बसंत का संदेशवाहक भी है।
किसी कवि ने होली के सम्बन्ध में कहा है कि -
नफरतों के जल जाएं सब अंबार होली में। गिर जाये मतभेद की हर दीवार होली में।।
बिछुड़ गये जो बरसों से प्राण से अधिक प्यारेए गले मिलने आ जाऐं वे इस बार होली में।।
प्रभु के प्रति अटूट भक्ति एवं निष्ठाष् के प्रसंग की याद दिलाता है यह महान पर्व:
होली पर्व को मनाये जाने के कारण के रूप में मान्यता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यपु नाम का एक अत्यन्त बलशाली एवं घमण्डी राजा अपने को ही ईश्वर मानने लगा था। हिरण्यकश्यपु ने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी।
हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से कुद्ध होकर हिरण्यकश्यपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु भक्त प्रह्लाद ने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा।
हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती।
हिरण्यकश्यपु के आदेश पर होलिका प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। किन्तु आग में बैठने पर होलिका तो जल गई परंतु ईश्वर भक्त प्रह्लाद बच गये।
इस प्रकार होलिका के विनाश तथा भक्त प्रह्लाद की प्रभु के प्रति अटूट भक्ति एवं निष्ठा के प्रसंग की याद दिलाता है यह महान पर्व।
जो प्रभु की आज्ञा तथा इच्छा को पहचान लेता है फिर उसे संसार की कोई शक्ति प्रभु कार्य करने से रोक नहीं सकती:
यह संसार का कितना बड़ा अजूबा है कि असुर प्रवृत्ति के तथा ईश्वर के घोर विरोधी दुष्ट राजा हिरण्यकश्यप के घर में ईश्वर भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ।
प्रहलाद ने बचपन में ही प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया था।
निर्दयी हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद से कहा कि यदि तू भगवान का नाम लेना बंद नहीं करेंगा तो मैं तुझे आग में जला दूँगा।
उसके दुष्ट पिता ने प्रहलाद को पहाड़ से गिराकर, जहर देकर तथा आग में जलाकर तरह-तरह से घोर यातनायें दी। प्रहलाद ने अपने पिता हिरण्यकष्यप से कहा कि पिताश्री यह शरीर आपका है इसका आप जो चाहे सो करें, किन्तु आत्मा तो परमात्मा की है। इसे आपको देना भी चाहूँ तो कैसे दे?-
(लेेेखक हैै सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के संस्थापक प्रबंधक- जगदीश गाँधी)।
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