विशेष: बचाव के लिए फर्जीवाड़ा: अनिल अनूप
पुलवामा हमले पर पत्रकार अनिल "अनूप" की प्रस्तुति:
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की काली सूची से बचने के लिए पाकिस्तान ने दुनिया को बेवकूफ बनाने से भी परहेज नहीं किया। अब फर्जीवाड़ा पकड़े जाने के बाद पाकिस्तान का काली सूची में जाना तय माना जा रहा है। यही नहीं, एफएटीएफ ने अपनी ताजा रिपोर्ट में साफ कर दिया है कि निगरानी सूची में शामिल होने के बावजूद पिछले साल पाकिस्तान में संदिग्ध आतंकी फंडिंग डेढ़ गुना बढ़ गई है। सितंबर में एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान को काली सूची में डालने पर फैसला हो सकता है।
पुलवामा हमले के तीन दिन बाद ही शुरू हुई एफएटीएफ की सालाना बैठक में भारत में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के शामिल होने का सबूत पेश किया था। भारत का कहना था कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद पाकिस्तान में लश्करे तैयबा और जैश ए मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन और उनके फ्रंट संगठन सक्रिय हैं तथा उन्हें आतंकी गतिविधियों को चलाने के लिए फंड जुटाने की खुली छूट मिली हुई है। भारत ने पाकिस्तान को तत्काल काली सूची में शामिल करने की मांग की। लेकिन काली सूची से बचने के लिए पाकिस्तान ने फर्जीवाड़े का सहारा लिया और अब उसका यह झूठ पकड़ लिया गया है।
दरअसल 22 फरवरी को एफएटीएफ के प्रस्ताव पारित होने की आशंका को देखते हुए एक दिन पहले यानी 21 फरवरी को पाकिस्तान ने लश्करे तैयबा के फ्रंट संगठन जमात उल दावा और फलाह ए इंसानियत फाउंडेशन को आतंकी संगठनों की प्रतिबंधित सूची में शामिल होने की घोषणा कर दी। इस संबंध में पाकिस्तान की ओर से आधिकारिक बयान भी जारी किया गया। ऐसा कर पाकिस्तान ने एफएटीएफ के सदस्य देशों को यह दिखाने की कोशिश की वह आतंकी फंडिंग रोकने को लेकर गंभीर है और उसे इसके लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए। जाहिर है एफएटीएफ ने पाकिस्तान पर भरोसा कर उसे निगरानी सूची में रखते हुए मई तक आतंकी फंडिंग रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की चेतावनी दे दी।
लेकिन सोमवार को पाकिस्तान ने जैसे ही प्रतिबंधित और निगरानी सूची वाले आतंकी संगठनों की ऑनलाइन सूची को अपडेट कियाए उसका फर्जीवाड़ा पकड़ा गया। इसके अनुसार जमात उल दावा और फलाह ए इंसानियत फाउंडेशन को 21 फरवरी 2019 को शिड्यूल-दो में शामिल किया गया था; जो प्रतिबंधित आतंकी संगठनों की नहीं, बल्कि निगरानी में रखे गए आतंकी संगठनों की सूची है। मजेदार बात यह है कि जमात उल दावा और फलाह ए इंसानियत को 27 जनवरी 2017 में पाकिस्तान ने निगरानी सूची में शामिल कर दिया था। जनवरी 2017 और फरवरी 2019 की सूची को देखने से साफ हो जाता है कि पाकिस्तान ने सिर्फ सूची में तारीख बदल दिया है। इस फर्जीवाड़े के पकड़े जाने के बाद पाकिस्तान का एफएटीएफ की काली सूची में जाना तय माना जा रहा है।
पिछले साल एफएटीएफ की निगरानी सूची में आने के बाद पाकिस्तान भले ही आतंकी फंडिंग को रोकने कदम उठाने का दावा कर रहा हो, लेकिन सच्चाई यह है इस दौरान पाकिस्तान में संदिग्ध आतंकी फंडिंग 57 फीसदी बढ़ गई है। एफएटीएफ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक निगरानी सूची में शामिल होने के पहले एक साल में पाकिस्तान में कुल 5548 संदिग्ध आतंकी लेन-देन हुए थे। जो निगरानी सूची में शामिल के बाद एक साल में बढ़ कर 8707 हो गये। एफटीएफ ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी देते हुए मई तक आतंकी फंडिंग रोकने के लिए कारगर कदम उठाने को कहा है। जून में एफएटीएफ पाकिस्तान द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा करेगा। यदि ये पर्याप्त नहीं पाए गए तो सितंबर में एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान को काली सूची में डालने पर विचार किया जाएगा।
निकल सकता है पाकिस्तान का दिवाला
पिछले एक साल में निगरानी सूची का असर पहले ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर दिख रहा है। पाकिस्तानी रूपये डालर के मुकाबले पिछले साल इस समय 102 रुपये की जगह 142 रूपये तक पहुंच गया है और उसका विदेशी मुद्रा भंडार सात अरब डालर पर सिमट गया है। कारण यह है कि निगरानी सूची में आने के बाद पाकिस्तान में निवेश के लिए कोई तैयार नहीं है और न ही आसानी से उसे कर्ज मिल पा रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां पाकिस्तान में या वहां की कंपनियों से कारोबार करने से हिचक रही हैं। आतंकवाद को लेकर संवेदनशील देश इसके आधार पर पाकिस्तान के साथ आर्थिक लेन.देन से परहेज कर रहे हैं। प्रतिबंधित सूची में आने के बाद पाकिस्तान के लिए विदेशी निवेश या कर्जा हासिल करना और भी कठिन हो जाएगा।
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