पंजाब में 9000 एकड़ गोचर भूमि: अनिल अनूप
प्रस्तुत है पत्रकार- अनिल "अनूप" की प्रस्तुति:
पंजाब विधानसभा में आम आदमी पार्टी के विधायकों ने स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू से सड़क पर घूम रहे लावारिस पशुओं को लेकर प्रश्न पूछा तो निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि पंजाब में 9000 एकड़ गोचर भूमि है, जिस पर अवैध कब्जे होने के कारण अब 400 एकड़ गोचर भूमि ही रह गयी है।
सरकार अवैध कब्जों को हटाकर गोचर भूमि गैर सरकारी संगठनों को देने की नीति बना रही है ताकि लावारिस पशु जो सड़कों पर घूम रहे हैं उन्हें उन संगठनों के सुपुर्द किया जा सके।
सड़कों पर घूमने वाले लावारिस पशुओं की समस्या समय के साथ बढ़ती जा रही है। पिछली बादल सरकार के समय भी कई गौशालाएं बनाकर वहां लावारिस पशुओं को छोडऩे का मुद्दा काफी चर्चा में रहा था। बादल सरकार ने गौ सेवा बोर्ड का गठन भी किया था और बोर्ड के पहले अध्यक्ष कीमती भगत ने गौ संरक्षण तथा गौशालाओं के निर्माण और रख.रखाव को लेकर काफी कार्य भी किया था। उस समय एक बात सामने आई थी कि अगर गोचर भूमि को अवैध कब्जाधारियों से मुक्त करा लिया जाए तो प्रदेश में सड़कों पर एक भी लावारिस गाय या बैल नहीं मिलेगा।
अतीत में जाएं तो गौ के महत्त्व को समझते हुए भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गोचर भूमि छोडऩा एक पुनीत कार्य समझा जाता था। गोचर भूमि के महत्त्व को वेदों में भी बताया गया है। वैदिक युग में गोचर भूमि का बड़ा महत्त्व था।
ऋग्वेद अनुसार गायें जिस तरह गोचर भूमि की ओर जाती हैं, उसी तरह उस महान् तेजस्वी परमात्मा की प्राप्ति की कामना करती हुई बुद्धि उसी की ओर दौड़ती रहे। ईश्वर की ओर बुद्धि लगी रहे, यह भाव व्यक्त करने के लिए गायों के गोचर भूमि की ओर जाने का दृष्टान्त दिया गया है।
ऋग्वेद अनुसार सुरपति इन्द्र ने दूर से प्रकाश दीख पड़े, इस हेतु सूर्य को द्युलोक में रखा और स्वयं गायों के संग पर्वत की ओर प्रस्थान किया। दूसरे शब्दों में गायों को चरने के लिए पर्वतों पर भेजना चाहिए। पर्वत भी गोचर भूमि की श्रेणी में आते हैं। पर्वत का पर्याय गोत्र है, जिसका एक अर्थ गायों को त्राण देने वाला भी होता है। पर्वतों पर गौओं को पर्याप्त चारा और जल तो सुलभ रहता ही है, उन्हें शुद्ध वायु और व्यायाम लाभ भी हो जाता है। पद्मपुराणए मनुए याज्ञवल्क्य तथा नारदादि स्मृतियों में भी गोचर भूमि का वर्णन मिलता है। उन सबका सारांश संक्षेप में यही है कि यथाशक्ति गोचर भूमि छोडऩे वाले को नित्य प्रति सौ से अधिक ब्राह्मण भोजन कराने का पुण्य मिलता है और वह स्वर्ग का अधिकारी होता है, नरक में नहीं जाता। गोचर भूमि को रोकने या बाधा पहुंचाने वाले तथा वृक्षों को नष्ट करने वाले इक्कीस पीढ़ी तक रौरव नरक में पड़े रहते हैं। चरती हुई गौओं को बाधा पहुंचाने वालों को समर्थ ग्राम रक्षक दण्ड दे, ऐसा पद्मपुराण में कहा गया है। पद्मपुराण में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार चरती हुई गाय को रोकने से नरक में जाना पड़ता है। स्वयं महाराज जनक को चरती हुई गाय को रोकने के फलस्वरूप नरक का द्वार देखना पड़ा था। सावधान रहकर आत्मरक्षा करना कर्तव्य है, पर चरती गाय को ही क्या, आहार करते समय जीव मात्र को रोकना या मारना मनुष्यता नहीं है। धार्मिक दृष्टि से भी ऐसा करना अनुचित है। पहले कहा गया है कि हमारे देश में गोचर भूमि की प्रचूरता थी। इतना ही नहीं, अपितु राज वर्ग तथा प्रजा वर्ग दोनों की ओर से गोचरभूमि छोड़ी जाती थी। पुण्यलाभ की दृष्टि से धर्मशाला, पाठशाला, कूप और तालाब आदि बनवाने की प्रथा की भांति गोचर भूमि खरीदकर कृष्णार्पण करने की उस युग में प्रथा थी। आज भी वे गोचर भूमियां विद्यमान हैं और उनके दानपत्रों में स्पष्ट अंकित है।
इस गोचर भूमि को नष्ट करने वाले यावच्चन्द्र दिवाकर नरकवास करेंगे।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि गोचर भूमि के महत्व को हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले समझ लिया था लेकिन आज के युग में जमीन की कीमत बढ़ती जाती है। इसलिए न तो सरकार और न ही समाज गोचर भूमि छोडऩे को तैयार हैए जो पहले की है उस पर अवैध कब्जे हो चुके हैं। परिणामस्वरूप गाय और बैल सड़कों पर लावारिस घूमते दिखाई दे रहे हैं। लावारिस पशुधन की बढ़ती संख्या के कारण और कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। सरकार को चाहिए कि अवैध कब्जे से गोचर भूमि को जल्द छुड़ाए तभी लावारिस पशुधन की समस्या का कोई स्थाई हल निकल सकेगा।
केंद्र सरकार ने गोसंरक्षण और गो रक्षा के लिए निम्नलिखित सिफारिशें की थी जैसे ऽ गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए। ऽ केंद्र सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय गोवंश विकास आयोग या राष्ट्रीय गोसेवा आयोग की स्थापना करनी चाहिए और 100 करोड़ रुपए का उचित कोष प्रदान कर गो संरक्षण एवं विकास का कार्य करना चाहिए। ऽ प्रत्येक राज्य में भी गोसेवा आयोग की स्थापना होनी चाहिए। राज्य गोसेवा आयोगों का संगठन व संचालन सुचारू रूप से करने के लिए उन्हें पर्याप्त कोष दिया जाना चाहिए। ऽ गाय और उसकी संतान की हत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए गोरक्षा को नीति निर्देशक सिद्धान्तों अथवा मूल कत्र्तव्यों की श्रेणी में न रख कर मूल अधिकारों की श्रेणी में रखने के लिए संविधान में संशोधन किया जाए। ऽ गोवंश विधि प्रभावीकरण निदेशालय की स्थापना की जाए जो गोवध तथा गोवंश के यातायात पर निगरानी रख सके। ऽ गोवंश को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। ऽ संसद को सभी राज्यों में गाय एवं उसकी संतति के वध को रोकने के लिए केंद्रीय कानून द्वारा उसे गैर जमानती एवं संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखना चाहिए। परीक्षण के तौर पर न्यूनतम तीन वर्षों की कैद तथा अधिकतम 10 वर्षों के दण्ड के साथ कैद की सजी दी जाए। ऽ केंद्रीय सरकार में गोवंश संरक्षण एवं विकास पर एक अलग मंत्रालय होना चाहिए। इसे पशुपालन विभाग के अन्तर्गत नहीं रखना चाहिए। जिसका मूल सिद्धान्त गोवंश का संरक्षण नहीं होता बल्कि पशुधन का विकास एवं उत्पादन तथा मांस उत्पादन होता है। ऽ गोमांस और बछड़ों के मांस के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए। ऽ संविधान के अनुच्छेद 48 एवं 51 ;जीद्ध की दृष्टि में अनुच्छेद 355 के अधीन उचित निर्देश दिए जाएं या ऐसे संवैधानिक उपायों के तहत बंगालए केरलए नागालैंडए मिजोरमए मेघालयए अरुणाचल प्रदेशए त्रिपुरा एवं मणिपुर राज्यों में गाय एवं उसकी संतति.वध का निषेद कानूनन लागू हो। ऽ गोवंश की देशी नस्लों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा भारतीय नस्लों के संरक्षण एवं विकास के लिए यथोचित सहायता दी जानी चाहिए। ऽ ट्रैक्टर तथा कृषि यंत्रों पर रियायत देना बन्द कर देना चाहिए। खेत की जुताई में बैलों के प्रयोग एवं बैलचालित ट्रैक्टरों के प्रयोग की प्रेरणा देनी चाहिए। ऽ रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के प्रयोग एवं उत्पादन को हतोत्साहित किया जाए तथा जैविक खादों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाए। ऽ केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के द्वारा स्वैच्छिक संस्थाओं को माध्यम बनाकर गौशालाओं गोसंगठनों एवं पिंजरापोल की व्यवस्था की जाए। राज्य सरकारों द्वारा गोशालाओं के रख.रखाव तथा निर्माण के लिए समुचित आर्थिक सहायता दी जानी चाहिएए जिससे दिन.प्रतिदिन का खर्च निर्वाध रूप से चले तथा 70 प्रतिशत अनुदान पूंजी निर्माण कार्य के लिए दिए जाए। इस कार्य के लिए निरूशुल्क या रियायती दर पर भूमि संस्थानों को उपलब्ध करायी जाए ताकि वे निर्माण कार्य तथा चारागाह की सुचारु रूप से व्यवस्था कर सकें। ऽ चारा उत्पादन के लिए.भूमि संरक्षित तथा विकसित होनी चाहिए। ग्राम स्तर पर कृषकों के पशुओं के लिए चारागाह उपलब्ध कराये जाएं। गोवंशीय पशुओं को चरने तथा घास के लिए अधिनियम में संशोधन होना चाहिए। ऽ केंद्रीय व राज्य कृषि मंत्रालयों तथा कृषि विश्वविद्यालयों के समन्वित प्रयासों से विशेष चारा उत्पादन कार्यक्रम चलाना चाहिए। केंद्रीय व राज्य सरकारें चारे के विक्रय मूल्य पर छूट दे सकती है, बिल्कुल वैसे ही जैसे राशन की दुकान में अनाज पर छूट मिलती है। ऽ देश की सभी पंचायतों और नगर निगमों को एक सूचना भेजकर कस्बों एवं नगरीय इलाकों में गोपालन कानून में संशोधन कराया जाए और प्रत्येक गृह मालिक को गाय व उसके संतति को रखने की अनुमति दी जाए, इत्यादि।
गोधन व गोचरभूमि के महत्त्व को समझते हुए सरकार व समाज को तत्काल ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
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