हम जीतकर विकास करेंगे: अनिल अनूप
चुनाव का बिगडै़ल मौसम है। जिस किसी चुनाव प्रत्याशी से पूछो कि चुनाव जीत गए, तो क्या करोगे भाई?-
सभी का एक ही उत्तर होता है कि विकास करेंगे।
मैं पूछता हूं कि विकास क्या होता है, तो वे इस बात पर दाएं-बाएं झांकते हैं।
मैं कहता हूं कि चलो कोई बात नहीं, यदि आप विकास का मतलब नहीं जानते, लेकिन यह तो जानते होंगे कि विकास करेंगे कैसे, इस पर वे मुझे अज्ञानी समझ कर हंसते हैं और कहते हैं कि यह भी कोई पूछने की बात है। आजादी के बाद से जैसे विकास हो रहा है, वैसे ही करेंगे।
मैं कहता हूं कि आजादी के बाद वाले विकास में तो घोटाले होते रहे हैं, तो उनका कहना है कि तो क्या हुआ, उनकी जांच करवाएंगे। दोषियों को दंडित करेंगे, लेकिन हम विकास का काम अधूरा नहीं छोड़ेंगे। इसलिए मैंने अपने बेटे "विकास" को ही चुनाव में उतार दिया है। देखता हूं विकास कैसे नहीं होता है?-
मैंने नेता से कहा भी कि यह तो वंशवाद है और वंशवाद को अब नकारा जा रहा है।
नेता ने कहा कि विकास ऐसे ही होता है, विकास एक अबाध परंपरा है, जिसमें कड़ी से कड़ी जुड़ी हुई है।
मैंने कहा कि इसका मतलब गरीबी, महंगाई और बेकारी से भी मुक्ति मिलेगी?-
नेता ने कहा अब कही आपने दो टूक बात। इन्हीं से तो हम लड़ रहे हैं। हम चुनाव इसलिए लड़ते हैं, ताकि इनको समाप्त किया जा सके। मान लीजिए मैंने चुनाव में नियमानुसार सत्तर लाख रुपए खर्च किए, तो मैं पांच वर्ष में इनमें तीन या चार बिंदी लगाकर विकास ही तो करूंगा।
मैंने नेता से कहा भी कि मैं आपका आशय समझा नहीं, तो वह बोले कि तुम यह मसला समझो ही नहीं, तो मेरे हित में है।
मैंने मोटी सी बात लब्बोलुआब में आपको समझाई कि भाई हम विकास करेंगे, लेकिन तुम नहीं समझो, तो मैं क्या करूं?-
मैंने कहा कि इस "हम विकास करेंगे" का मतलब सारे नेता मिलकर अपना घर भरेंगे, यह तो नहीं है।
मेरी इस बात पर वह खिल-खिलाकर हंसे और बोले "बात तो समझते हो, लेकिन मर्म देर से समझ में आता है। मेरा मतलब पांच वर्ष बाद समझो, तो इसमें मेरा क्या दोष है।
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