विशेष: लहू बोलता भी है: जंगे-आजादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार
आइये, जानते है
जंगे आजादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मुफ्ती इनायत अहमद काकोरवी को....
मुफ्ती इनायत अहमद काकोरवी साहब मशहूर मुहद्दिस शाह मोहम्मद इसहाक़ देहलवी के शागिर्दों में थे, जो मुंसिफ़ी के ओहदे पर फायज़ थे। फैसले भी लिखते थे और मौका निकाल कर वहीं तुलबा को पढ़ाते भी थे। इनायत साहब पर भी बग़ावत का
मुक़दमा चलाया गया जिसमें कालापानी की सजा हुई और जज़ीरा-ए-अण्डमान भेज दिया गया।
एक अंग्रेज़ की फरमाइश पर आपने मशहूर अरबी किताब तकवीम-उल-बुलदान का तर्जुमा किया। यही तर्जुमा आप की रिहाई का सबब बना।
इस अंग्रेज़ की खुसूसी दिलचस्पी की वजह से सज़ा के कई साल गुज़ारकर आपको रिहाई मिली और 9 साल बाद आप हिन्दुस्तान लौट आये। इनायत अहमद ने अपनी मशहूर किताब इल्म-अलसीग़ा जज़ीरा-ए-अण्डमान में ही लिखी थी। यह किताब मदारिस के दर्स.निज़ामिया में शामिल है।
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