विशेष: अनुशासन: इंसान की पहचान !
सन्तोष कुमार, जो छात्र हैं, ने "अनुशासन- इंसान की पहचान" पर अपनी प्रस्तुति कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की है:
"भारत के जवान", जिस पर उनकी नींव टिकी है। वह है "अनुुशासन"। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में इसका बहुत महत्व है। अनुशासन से जीवन शैली सुलभ हो जाती है। अनुशासन इंसान को इंसान बनाता है। नहीं तो इंसान जानवर सामान है। खाना खाने से लेकर बात करने तक अनुशान आवश्यक है। जब बच्चे स्कूल में होते हैं। तो उन्हें अनुशासन की शिक्षा दी जाती है, कैसे बात करना, कैसे खड़े होना, आज्ञा पालन करना, चलना आदि अनुशासन के ही पहलू हैं। परंतु जब बच्चे स्कूल से कॉलेज में जाते हैं। तो सारा का सारा अनुशासन धरा का धरा रह जाता है। न कूड़ेदान का प्रयोग करना, न तहज़ीब से बोलना, उनकी जीवन शैली का ऐसा हिस्सा बन जाता है, जो बाद में ताउम्र उनका साथ नहीं छोड़ता।
और जिस पौधे की नींव अच्छी रखी थी, गलत संगति और अनुशासन के अभाव में वो फल फूल नहीं पाता। क्या अध्यापक के सम्मुख ऊँची-ऊँची आवाज़ में शोर करना अनुशासन है ?- कुछ भी खाकर कहीं भी फेंक देना अनुशासन है ?- अभद्र शब्दों का प्रयोग करना अनुशासन है ?- , नहीं। यह कुशासन की पहचान है। देश के वीर जवानों से सीखना चाहिए की अनुशासन क्या है। उनकी जीवन शैली को देखकर बहुत कुछ सीखने को मिलता है। समय पर सोना, समय पर उठना, कसरत करना, पौष्टिक भोजन खाना, बड़ों का सम्मान करना, उनकी आज्ञा का पालन करना।
यह सब एक सभ्य व्यक्ति के जीवन के वो चरम बिंदु हैं। जो उसे एक उत्तम इंसान बनाते हैं। अनुशासन जहाँ हमें सामाजिक दृष्टि से अहम् स्थान प्राप्त करवाता हैं, वहीँ यह शारीरिक दृष्टि से भी लाभप्रद है।
भले ही आज विश्वविद्यालयों में स्कूल की भांति कठोर अनुशासन नहीं, किन्तु फिर भी थोड़ा सा इस और ध्यान देने की ज़रुरत है। तांकि बच्चे अनुशासन की अहमियत को समझें।
आज परिस्थितियां बदल गयी है, बंद कमरों में पढाई होती है, सभी सुख सुविधाएँ उपलब्ध हैं। परंतु विद्यार्थी इन सुविधाओं का दुरूपयोग करते हैं। जो कि गलत है।
अतः उन्हें समझना चाहिए कि अनुशासन ही उन्हें इंसान बना सकता है, अन्यथा पढ़ लिख कर वो सिर्फ शिक्षित पशु ही बन पाएंगे।
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