विशेष: पुलवामा हमले के मामले मे गिरफ्तार दो कश्मीरी की हकीकत: अनिल अनूप
विशेष में पत्रकार अनिल अनूप प्रस्तुत कर रहे हैं "पुलवामा हमले के मामले मे गिरफ्तार दो कश्मीरी" की हकीकत.
पुलिस का दावा झूठ है। मेरा भाई पिछले तीन सालों से देवबंद में पढ़ाई कर रहा था। जो बातें फैलाई जा रही हैं, वैसा बिल्कुल भी नहीं है। हमारा पूरा गांव जानता है कि उसका (मेरा भाई) चरमपंथ से कोई नाता नहीं था।
"आप गांव वालों से इसकी पुष्टि कर सकते हैं। आप मेरे भाई के पुलिस रिकॉर्ड की जांच कर सकते हैं। अब तक पुलिस रिकॉर्ड में उसके ख़िलाफ़ कोई बात नहीं थी। ये आरोप पूरी तरह निराधार हैं"।
ये बातें शाहनवाज़ अहमद तेली के बड़े भाई वक़ार अहमद तेली ने कही। शाहनवाज़ और एक अन्य कश्मीरी अक़ीब अहमद मलिक को उत्तर प्रदेश एटीएस ने शुक्रवार को देवबंद इलाके से पुलवामा में सीआरपीएफ़ काफिले पर हुए हमले के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया।
शाहनवाज़ कुलगाम के यारीपोड़ा के निवासी हैं। वहीं अक़ीब पुलवामा ज़िले के चंदीगाम गांव के रहने वाले हैं।
पुलिस ने दावा किया है कि शाहनवाज़ चरमपंथी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सक्रिय सदस्य है और देवबंद में जैश के लिए काम कर रहा था।
एटीएस ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि गिरफ़्तार दोनों शख़्स से कुछ आपराधिक दस्तावेज़, हथियार और गोला-बारूद भी बरामद हुए हैं।
पुलिस ने यह भी कहा कि दोनों गिरफ़्तार चरमपंथी कश्मीर के रहने वाले हैं जो देवबंद में छात्र बन कर रह रहे थे और उन्होंने किसी भी कॉलेज या मदरसे में दाख़िला नहीं लिया था।
वक़ार ने पुलिस के इस दावे का विरोध करते हुए कहा कि वहां मदरसे में दो तरह के छात्र हैं।
उन्होंने कहा, "वह समत कोर्स (मदरसे में पढ़ाई करने का वो अनौपचारिक तरीका जिसके तहत आपको नामांकन कराने की ज़रूरत नहीं होती) का छात्र था। उसकी वहां कक्षा में उपस्थिति समत छात्र के रूप में थी। उसे एडमिशन नहीं मिली थी और इसके लिए वो पिछले तीन साल से कोशिश कर रहा था। वो मदरसे के पास ही एक किराये के कमरे में रह रहा था"।
वक़ार ने पुलिस के एक और दावे को नकार दिया कि शाहनवाज़ ने नक़ली आधार कार्ड बनवाए थे और नवाज़ अहमद तेली के नाम से रह रहा था। पुलिस ने शुक्रवार को जारी अपनी प्रेस विज्ञप्ति में शाहनवाज़ अहमद तेली और अक़ीब अहमद मलिक के रूप में दोनों गिरफ़्तार लोगों की पहचान की है।
वक़ार कहते हैं, "मेरे भाई का नाम शाहनवाज़ अहमद तेली नहीं है, उसका नाम नवाज़ अहमद तेली है। उसके दस्तावेज़ों की जांच की जा सकती है"।
मीडिया में आई ख़बरों में पुलिस के हवाले से कहा गया है कि शाहनवाज़ ने फर्ज़ी आधार कार्ड बनवाया था और उसने खुद की पहचान नवाज़ अहमद तेली के रूप में की थी।
वक़ार ने शाहनवाज़ के यूनिवर्सिटी के दस्तावेज़ों के दिखाया जहां उनके भाई का नाम नवाज़ था न कि शाहनवाज़। वक़ार ने कहा कि उनका भाई तीन साल पहले देवबंद मदरसा गया था और वहां वो एक सामान्य जीवन बिता रहा था।
वो कहते हैं, "तीन दिन पहले ही उसने हमेशा की तरह मुझसे फ़ोन पर बातें कीं। वो एक सामान्य बातचीत थी। उसने परिवार के लोगों की खैर ख़बर ली। मेरे भाई के गिरफ़्तार होने के बाद उसके कॉलेज के कुछ दोस्तों ने मुझे इसकी सूचना दी। उन्होंने बताया कि बीती रात कुछ सुरक्षकर्मियों ने मेरे भाई को हिरासत में लिया है। गिरफ़्तारी के वक्त मेरा भाई एक छात्रावास के कमरे में था। जब मुझे उसकी गिरफ़्तारी का पता चला तो मैं पुलिस स्टेशन गया और उन्हें ये बात बताई।"
देवबंद जाने से पहले शाहनवाज़ यहां धार्मिक गतिविधियों में शामिल हुआ करता था और शुक्रवार को प्रवचन दिया करता था।
वक़ार कहते हैं, "वो धार्मिक विचारों वाला व्यक्ति है। हाल ही में उसने 60 हज़ार रुपये में इस्लामी साहित्य ख़रीदे हैं। आप उन किताबों को देख सकते हैं। कभी-कभी वो धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया करता था और शुक्रवार को धर्मोपदेश दिया करता था। चरमपंथियों से उसके संबंधों को लेकर जो कुछ भी कहा जा रहा है, वो निराधार है। इस तरह की किसी भी गतिविधियों में उसका कोई किरदार नहीं है। उसने कभी भी किसी विरोध प्रदर्शन या पत्थरबाजी की घटनाओं में कोई हिस्सा नहीं लिया। उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है।
वो बोले, "कश्मीर यूनिवर्सिटी से बी•ए• की पढ़ाई ख़त्म करने के बाद वो उच्च धार्मिक शिक्षा के लिए देवबंद गया था।"
जब उनसे ये पूछा गया कि एटीएस ने तो उसके जैश के संबंध की बात कही है तो वक़ार ने कहा, "शुक्रवार को अपनी बातों में सामाजिक मुद्दों पर बातें किया करता था। वहां वो दहेज और अन्य मुद्दों को उठाया करता था। उसने कभी तहरीक (आंदोलन) की बातें नहीं की। वो कैसे ये कह सकते हैं?-
यह चौंकाने और आश्चर्य करने वाली ख़बर है, और हम इसे लेकर पूरी तरह से स्तब्ध हैं!
शाहनवाज़ दिसंबर 2018 में पिछली बार घर आए थे। उनके पड़ोसी मुदासिर अहमद कहते हैं, "मैैं उसे बचपन से जानता हूँ।"
वो कहते हैं, "सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि वो शाहनवाज़ नहीं नवाज़ है। पुलिस की कही गई कोई भी बात हमने कभी नोटिस नहीं की। हाँ, यह नहीं कहा जा सकता है कि उनका धर्म के प्रति गहरा झुकाव था। पुलिस जो कह रही है उसे वे जानते हैं, हम वो कह रहे हैं जिसे हम जानते हैं। पुलवामा से देवबंद तक असलहा ले जाना कैसे संभव हो सकता है ?- क्योंकि जब भी आप गांव से बाहर क़दम रखते हैं तो आपकी सुरक्षा जांच होती है।"
एक अन्य गांव वाले आफताब अहमद ने भी शाहनवाज़ की ऐसी ही कहानी बताई।
इस सिलसिले में गिरफ़्तार पुलवामा के रहने वाले आक़िब अहमद के परिवार ने भी उनके बेटे पर पुलिस के लगाए सभी आरोपों को खारिज कर दिया।
फ़ोन पर आक़िब के परिवार वालों से बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका। स्थानीय लोगों ने बताया कि सेना ने उनके मोबाइल फ़ोन जब्त कर लिये हैं।
आक़िब के पिता का फ़ोन शुक्रवार से ही स्विच ऑफ़ आ रहा है। स्थानीय अंग्रेज़ी दैनिक ग्रेटर कश्मीर से आक़िब मलिक के भाई रईस अहमद ने कहा कि उनका भाई निर्दोष है और उनके भाई का चरमपंथ से कोई लेना देना नहीं है।
रईस कहते हैं, "वो (आक़िब) हाफिज़-ए-क़ुरान (क़ुरान की आयतों को पूरी तरह याद करने वाला शख़्स) है, और वो देवबंद दो महीने पहले ही धार्मिक पढ़ाई करने गया था। दारूल-उल-उलूम देवबंद में वो समत कोर्स (मदरसे में पढ़ाई करने का वो अनौपचारिक तरीका जिसके तहत आपको नामांकन कराने की ज़रूरत नहीं होती) में पढ़ाई कर रहा था। उसका चरमपंथ से कोई नाता नहीं है। उसे यूपी पुलिस फंसा रही है। हम उम्मीद करते हैं कि स्थानीय पुलिस हमारी मदद करेगी।
उन्होंने कहा कि बीते दिन ही आक़िब से फ़ोन पर बात हुई थी क्योंकि पुलवामा हमले के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में कश्मीरियों पर हो रहे हमले की ख़बरों को देखते हुए हमें उसकी सुरक्षा की चिंता थी।
रईस ने कहा, "आक़िब निश्चिंत था, उसने मुझे बताया कि ऐसी कोई बात नहीं है क्योंकि पुलिस वहां उन्हें सुरक्षा दे रही थी। उसने जल्द ही आने की बात भी कही थी।"
चार भाई और तीन बहनों के बीच आक़िब छठे नंबर पर हैं। उनके पिता के पास बागीचे हैं।
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