विशेष: शहादत के पीछे सियासत शुरू: अनिल अनूप
विशेष में पत्रकार अनिल अनूप प्रस्तुत कर रहे हैं "शहादत के पीछे सियासत शुरू:
पाकिस्तान की तरफ जाने वाले तीन भारतीय नदियों के अतिरिक्त पानी को रोका जाएगा और वह पानी जम्मू-कश्मीर, पंजाब के लोगों को मुहैया कराया जाएगा। जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी की यह सूचना फिलहाल प्रतीकात्मक है, क्योंकि नदियों के पानी को मोड़ने और बांध बनाने में काफी वक्त लगेगा। भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका विश्लेषण अलग से करेंगे। अलबत्ता यह एक संवेदनशील निर्णय है। सरकार ने यह भी फैसला किया है कि अब सुरक्षा बलों के करीब 7.8 लाख जवान दिल्ली और जम्मू से विमान के जरिए ही श्रीनगर जाएंगे। सड़क के लंबेे-लंबे काफिलों का सिलसिला समाप्त हो जाएगा। पुलवामा हमले के बाद पाक अधिकृत कश्मीर में हुकूमत ने उर्दू में पोस्टर जारी कर 127 गांवों को हाई अलर्ट किया है। नियंत्रण रेखा से सटे 40 गांवों को लगभग खाली करा लिया गया है। आतंकियों के लांचिंग पैड भी हटा लिए गए हैं। आतंकियों को सेना की सुरक्षित चौकियों में जगह दी गई है। बेशक पाकिस्तान के खिलाफ कोई सैन्य कार्रवाई अभी शेष है, लेकिन भारत सरकार ने पाकिस्तान की घेराबंदी शुरू कर दी है। जहां तक हमारी नियति का सवाल है, तो सियासत हमारा दुर्भाग्य भी रही है। ये एक परिपक्व लोकतंत्र के संकेत नहीं हैं। अभी तो पुलवामा के शहीदों की चिताओं की राख भी "ठंडी" नहीं हुई, अस्थियां प्रवाहित की जानी हैंं, लेकिन एक ही हफ्ते में "सियासी आग" ऐसी फूटी है। मानो विरोधी को जलाकर राख कर देगी। कांग्रेस इतनी बेचैन हो गई, लिहाजा बेशर्मी पर उतर आई। आतंकी हमले अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस से लेकर इजरायल तक में किए गए हैं, लेकिन देशों की चाल नहीं बदली। देश निष्क्रिय होकर "मुर्दा" नहीं हुए। लेकिन भारत के राजनीतिक दल 13 दिनों का शोक भी नहीं मना पाए और लगातार आरोपों से एक-दूसरे को छलनी करने लगे। प्रधानमंत्री मोदी को ही पहला निशाना बनाया गया, जबकि आपदा के दौर में देश के "सर्वोच्च कार्यकारी नेता" का सम्मान बरकरार रखना चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आरोप मढ़े कि एक तरफ पुलवामा में जवान शहीद हुए, लेकिन प्रधानमंत्री जिम कार्बेट पार्क में शूटिंग कर रहे थे। प्रधानमंत्री राजधर्म भूल गए और अपना राज बचाने में जुटे रहे। इतना विस्फोटक और रॉकेट लांचर कहां से आए ?- बीते 56 माह के दौरान 488 जवान शहीद हुए। नोटबंदी के बावजूद आतंकी हमले बंद क्यों नहीं हुए ?- लब्बो-लुआब यह है कि मेरे और तेरे आतंकवाद की सियासत शुरू हो गई। दुर्भाग्य है कि राजनीतिक टकराव और विरोधाभास की ये सुर्खियां पाकिस्तान के मीडिया में छाई रही, लिहाजा पाकिस्तान भी अट्टहास कर रहा होगा कि उससे और आतंकवाद से भारत एकजुट होकर कैसे लड़ पाएगा ?-
इसी सियासत के दौरान जैश-ए-मुहम्मद का नया बयान भी सार्वजनिक हुआ कि इस बार वह 350 किलोग्राम के बजाय 550 किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल करेगा और कश्मीर में ही हमला करेगा। जैश ने अबू बकर को नया कश्मीरी कमांडर बनाया है, जिसे आईईडी विस्फोट में माहिर माना जाता है। बहरहाल सरकार और सेना के लिए जिस एकजुटता और समर्थन का दावा किया गया था, क्या वह समयबद्ध था ?- क्या एक सप्ताह के बाद कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ाई पहले से ही तय थी ?- आपस में गद्दार, मक्कार, आईएसआई का एजेंट कहा जा रहा है। आतंकवाद के आंकड़े मत गिनाएं। इस हम्माम में कांग्रेस और उसके नेतृत्व की सत्ता ज्यादा नंगी और रक्त-रंजित है। सवाल प्रधानमंत्री मोदी की सक्रियता पर किया जा रहा है। इस दौरान अर्जेंटीना के राष्ट्रपति और सउदी अरब के क्राउन प्रिंस भारत आए थे। क्या देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री घुटनों में चेहरा छिपा कर सुबकते रहते और विदेशी मेहमानों का स्वागत नहीं करते। बेशक कांग्रेस कुछ भी कहे, लेकिन यह देश हिसाब चुकता कर ही लेगा। प्रधानमंत्री के आधिकारिक कार्यक्रम बहुत पहले से तय होते हैं।
क्या आतंकी हमले के कारण उन्हें स्थगित कर दिया जाए ?-
बेशक यह चुनाव का मौसम है। कांग्रेस के नेतागण भी "राजनीति" में व्यस्त हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी कुछ भाषण दिए हैं, लेकिन वह देश को याद दिलाते रहे हैं कि "आग" दोनों ओर जल रही है।
आपातकाल में प्रधानमंत्री ऐसे आह्वान भी न करें, तो देश और सेना के मनोबल का क्या होगा। बहरहाल सियासत करें, लेकिन पुलवामा की त्रासदी और चुनौती को यह देश विस्मृत नहीं होने देगा। अंततः जनादेश तो मतदाताओं को ही तय करना है।
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