विशेष: राजनीतिक भविष्य तय करने वाली बिहार की सीटें
विशेष में राजनीतिक भविष्य तय करने वाली बिहार की सीटों पर संंवाददाता - "अनिल अनूप" की रिपोर्ट
लोकसा चुनाव में बिहार में तेजस्वी यादव का महागठबंधन भारी पड़ेगा या मोदी-नीतीश का एनडीए, इस सवाल का जवाब हर कोई जानना चाहता है। एनडीए में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड 17-17 सीटों पर लड़ रहे हैं और 6 सीटों पर लोकजनशक्ति पार्टी। उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश निषाद ने महागठबंधन से जुड़कर चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है।
जानते हैं कि वे कौन सी सीटें हैं जो इन चुनावों में बिहार का राजनीतिक भविष्य तय कर सकती हैं?-
पटना साहिब गांधी मैदान पटना साहिब की एक बड़ी पहचान है, जहां कई बड़े नेताओं ने रैलियां की हैं। कभी सुभाषचंद्र बोस, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, राम मनोहर लोहिया और अटल बिहारी वाजपेयी भी रैलियां कर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यहां रैली की है। जयप्रकाश नारायण ने 1974 में इसी मैदान से संपूर्ण क्रांति की बात कही थी।
बेगूसराय
इस लोकसभा सीट पर चुनाव सबके लिए दिलचस्प होगा क्योंकि राष्ट्रद्रोह के केस से सुर्खियों में आए जेएनयू के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार यहीं से चुनाव लड़ रहे हैं।
जाति समीकरण देखा जाए तो यहां भूमिहार वोटर काफ़ी संख्या में हैं और कन्हैया कुमार भी भूमिहार हैं। 1962 से लेकर 2010 तक ये सीट सीपीआई की झोली में ही आती रही। लेकिन उसके बाद 2014 में इस सीट से भाजपा के दिवंगत नेता भोला सिंह ने जीत दर्ज की। अक्तूबर 2018 में उनकी मृत्यु हो गई।
ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार भाजपा राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा को कन्हैया के मुक़ाबले उतार सकती है। वहीं, बीजेपी नेता गिरिराज सिंह फिलहाल नवादा से सांसद हैं लेकिन कहा जा रहा है कि वे अपनी सीट बदलना चाहते हैं और बेगूसराय से लड़ना चाहते हैं।
लालू प्रसाद की आरजेडी और कांग्रेस ने कन्हैया को समर्थन देने की बात कही है और इससे उन्हें मुसलमानों और यादवों के वोट मिल सकते हैं। लेकिन बिना भूमिहारों के वोट के इस सीट से जीतना लगभग नामुमकिन है।
सीवान
सीवान लोकसभा सीट पर राजद नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन का दबदबा रहा है जो कि फिलहाल कत्ल के आरोप में जेल में बंद हैं। 1996 से लगातार चार बार शहाबुद्दीन यहां सांसद रहे हैं। शहाबुद्दीन को तेज़ाब कांड में सज़ा होने के बाद 2009 और 2014 में ओमप्रकाश यादव यहां से सांसद रहे। 2004 में उन्होंने जदयू से चुनाव लड़ा था लेकिन शहाबुद्दीन से हार गए थे। 2009 में जदयू ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़े और जीते। 2014 में वे बीजेपी में शामिल हो गए और लोकसभा सांसद बने। इन दोनों चुनावों में उन्होंने शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को हराया।
अभी ऐसी अटकलें हैं कि 2019 लोकसभा में शहाबुद्दीन अपने बेटे ओसामा को चुनाव लड़वा सकते हैं। हालांकि अभी तक इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
सीवान की छह विधानसभा सीटों में से 3 जेडीयू, 1 बीजेपी, 1 आरजेडी और एक सीपीआईएमएल के पास है। इस गणित के हिसाब से सीवान लोकसभा सीट पर बीजेपी-जदयू गठबंधन का पलड़ा भारी दिखता है। हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया की एक ख़बर के मुताबिक़ बीजेपी इस सीट को ख़तरे में मान रही है।
वैशाली
राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह यहां से 5 बार सांसद रहे हैं। लेकिन 2014 में एलजेपी के बाहुबली नेता रमाकिशोर सिंह ने उन्हें एक लाख वोटों से हरा दिया। 1994 के उपचुनाव में बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद इस सीट से जीती थीं। ये एक ऐसी सीट है जहां 1988 तक कांग्रेस का दबदबा रहा था।
इस क्षेत्र की 6 विधानसभा सीटों में 3 राजदए एक बीजेपी, एक जदयू और एक निर्दलीय के पास है।
हाजीपुर
लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख रामविलास पासवान यहां के मौजूदा सांसद हैं। रामविलास पासवान नौ बार लोकसभा सांसद और एक बार राज्यसभा सांसद रहे हैं और ज़्यादातर इसी सीट से उन्होंने चुनाव जीता है।
ये सीट 1977 से सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है और तब पहली बार रामविलास पासवान यहां से सांसद बने थे।
पासवान ने भारतीय लोकदल के नेता के रूप में चार लाख से भी ज़्यादा वोटों से ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। फिर 1980 में वे जनता पार्टी सेक्यूलर से चुनाव लड़े और जीते। साल 2000 में उन्होंने अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की और फिर इसी सीट से 2004 में लोकसभा सांसद बने।
हालांकि 2009 में जेडीयू के रामसुंदर दास ने उन्हें हरा दिया लेकिन 2014 में वे फिर से इसी सीट से सांसद बने।
कुल मिलाकर इस सीट से 10 बार लड़कर वे 8 बार सांसद बने हैं। लेकिन इस साल इस सीट से ना लड़ने के उनके फैसले ने सभी को हैरान कर दिया है। इतने अच्छे रिकॉर्ड के बाद अब इस सीट से कौन लड़ेगा- उनके बेटे चिराग पासवान या उनके भाई पशुपति कुमार पारस?-
ऐसी अटकलें हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा उन्हें राज्यसभा सीट दे सकती है।
उनके बेटे चिराग पासवान 2014 में जमुई सीट से चुनाव लड़े और पहली बार सांसद बने।
लोजपा 2014 में सात सीटों पर लड़ी थी, जिनमें छह सीटों पर उसे जीत मिली।
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