केंद्रीय मजदूर यूनियनों की दो दिवसीय हड़ताल जारी
नई-दिल्ली: विभिन्न केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की दो दिन की राष्ट्रव्यापी हड़ताल मंगलवार को शुरू होकर दूूसरे दिन भी जारी है। इन यूनियनों ने सरकार पर श्रमिकों के प्रतिकूल नीतियां अपनाने का आरोप लगाया है।
हड़ताल में सत्ताधारी पार्टी द्वारा पोषित और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यूनियन- भारतीय मजदूर संंघ हड़ताल में शामिल नहीं हुुई।
हड़ताल में शामिल ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) की महासचिव अमरजीत कौर ने पीटीआई से कहा कि, "असम, मेघालय, कर्नाटक, मणिपुर, बिहार, झारखंड, गोवा, राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ और हरियाणा में- खास कर औद्योगिक इलाकों में हड़ताल का काफी असर दिख रहा है।"
उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में परिवहन विभाग के कर्मचारी और टैक्सी और तिपहिया आटो चालक भी हड़ताल में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि भोपाल में परिवहन विभाग पूरी तरह बंद है। हरियाणा राज्य परिवहन निगम के कर्मचारी भी हड़ताल पर हैं।
हड़ताल में शामिल रेल सेवक संघ केे महामंत्री- सच्चिदानन्द श्रीवास्तव और इंटक नेेता ने स्वतंत्र भारत न्यूज़ डाट काम को बताया कि, रेलकर्मियों ने काले फीते पहन कर अपने अपने कार्यस्थल के बाहर बैठकें कर इस हड़ताल को अपना समर्थन जताया है।
इस हड़ताल को 11 केंद्रीय श्रम संघों का समर्थन है। इनमें एटक, इंटक, एचएमएस, सीटू, एआईटीयूसी, टीयूसीसी, सेवाए, आईसीसीटीयू, एलपीएफ, यूटीयूसी और रेल सेवक संघ शामिल हैं। इन यूनियनों का दावा है कि हड़ताल में लगभग 20 करोड़ मजदूर शामिल हो रहे हैं।
अमरजीत कौर ने कहा कि दूरसंचार, स्वास्थ्य, शिक्षा, कोयला, इस्पात, बिजली, बैंक, बीमा और परिवहन क्षेत्र के कर्मचारी भी हड़ताल का समर्थन कर रहे हैं।
इन यूनियनों ने हड़ताल के दूसरे दिन बुधवार को राजधानी में मंडी हाउस से संसद की ओर विरोध रैली निकालने की घोषणा की है। उनका कहना है कि देश में अन्य स्थानों में भी जुलूस निकाले जाएंगे।
हड़ताली यूनियनों ने आरोप लगाया है कि सरकार ने श्रमिकों के मुद्दों पर उसकी 12 सूत्री मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया है। उनका यह भी कहना है कि श्रम मामलों पर वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में गठित मंत्रियों के समूह ने दो सितंबर 2015 के बाद यूनियनों को वार्ता के लिए एक बार भी नहीं बुलाया है।
ये यूनियनें श्रम संघ कानून 1926 में प्रस्तावित संशोधनों का भी विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि इन संशोधनों के बाद यूनियनें स्वतंत्र तरीके से काम नहीं कर सकेंगी।
रेल सेवक संघ के महामंत्री- सच्चिदानन्द श्रीवास्तव ने कहा कि, "भारत के मजदूरों की ताकत के आगे सरकार की दमनकारी नीतियां सफल नहीं हो सकती है। शर्त यह है कि मजदूरों और नेताओं में संघर्ष/आन्दोलन के प्रति ईमानदारी हो। यदि अब भी मजदूर नेेता और मजदूर नहीँ समझे और ईमानदारी से संंघर्ष को अंजाम नहीं दिए तो मजदूरों का विनाश निश्चित है।
(साभार- भाषा & SBNews द्वारा संपादित)
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