
लहू बोलता भी है: जंगे-आजादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलाना आज़ाद सुभानी
आइए, जानते हैं, जंगे-आजादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलाना आज़ाद सुभानी को
आज़ाद सुभानी सिकन्दपुर बलिया के रहनेवाले थे। इब्तिदाई तालीम हासिलकर आला तालीम के लिए आप कानपुर चले गये जहां आपने उर्दू, अंग्रेज़ी, अरबी और फ़ारसी जुबान में महारत हासिल की। आप उस ज़माने में बड़े आलिमों और क़ाबिलों में शुमार किये जाते थे। आप पूरी तरह नेशनलिस्ट सोच और जे़हन के थेय साथ ही, मुसलमानों के मसायल और हकूक के लिए भी जद्दोजहद किया करते थे। आपकी दिलेरी और अवामी क़यादत उस वक्त खुलकर मंज़रे-आम पर आयी जब सन् 1913 में अंग्रेज़ी फौज ने कानपुर में कैण्ट की मस्ज़िद का कुछ हिस्सा शहीद कर दिया। तब आप बिना कुछ सोचे-समझे मौके पर पहुंचे और अंग्रेज़ अफ़सरों को रोका और उनसे बहस-मुबाहिसा किया। उसके बाद मस्ज़िद का जितना हिस्सा अंग्रेज़ तोड़ चुके थे, उसे वहीं छोड़कर आपकी मुख़ालिफ़त की वजह से उन्हें तोडफोड़ रोकनी पड़ी। दूसरे दिन एक बड़ी तादात के साथ आप बाशक्ल जुलूस क़यादत करते हुए मस्ज़िद की तामीर का एलान करके मौके पर पहुंचे, जहां अंग्रेज़ी पुलिस से मुक़ाबला हुआ। पुलिस ने गोली चला दी, जिससे काफ़ी लोग जख़्मी और शहीद हो गये। आपको हिरासत में ले लिया गया। इस वाक़ये के बाद आपका नाम कांग्रेस के बड़े रहनुमाओं में शुमार होने लगा। आप मुल्क की जद्दोजहद-ए-आज़ादी की हर तहरीक में सफे अव्वल दिखायी देते थे। आपके ख़िलाफ़ रेशमी रूमाल तहरीक में भी मुक़दमा क़ायम हुआ लेकिन जुर्म साबित नहीं हो सका। फिर भी अंग्रेज़ी हुकूमत आपको दुश्मनों की लिस्ट में शुमार करती थी। आप दौराने तहरीक इंग्लैण्ड भी गये थे, आप मुल्क के बंटवारे के ज़बरदस्त मुख़ालिफ़ थे। जवाहरलाल नेहरू और मौलाना आज़ाद भी आपसे अहम मामलों पर राय-मशविरा किया करते थे। लेकिन आपने बाद में कांग्रेस के नेताओं से भी बदज़न होकर कांग्रेस की मीटिंगों में जाना बन्द कर दिया था, जिसकी बिना पर कुछ लोग आपको पाकिस्तान का हामी कहकर बदनाम करने लगे थे। शख्सियत और जद्दोजहद के मुताबिक़ आपको अहमियत नहीं मिलने की बिना पर आपने सियासी ज़िंदगी से किनारा कर लिया और तब तक आप कुछ ज़ेहनी बीमारियों का भी शिकार हो गये थे।
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