विशेष: पुनर्जागरण के अग्रदूत थे विवेकानंद....
स्वामी विवेकानंद पर विशेष प्रस्तुति
पुनर्जागरण के अग्रदूत थे- स्वामी विवेकानंद पुनर्जागरण के अग्रदूत थे। उनमें अदम्य साहस था। भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में पवित्र मकर संक्रांति के दिन हुआ था। भारत में प्रत्येक वर्ष के 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानन्द के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था। नरेंद्र नाथ विचारशील थे। 15 अगस्त की 1886 के मध्य रात्रि को श्री रामकृष्ण परमहंस समाधि में लीन हो गए। रामकृष्ण परमहंस विवेकानन्द के गुरु थे। रामकृष्ण द्वारा सौंपे गए कार्य को निभाने का उत्तरदायित्व नरेंद्र नाथ पर आ पड़ा। नरेन्द्र नाथ 25 वर्ष की आयु में परिव्रज्या ग्रहण कर वह समग्र भारत की यात्रा पर निकल पड़े। वे अब स्वामी विवेकानन्द के नाम से प्रसिद्ध हो गए। स्वामी विवेकानंद सदैव यही आग्रह किया करते थे कि यदि हमें इस देश की समस्या का सही निदान ढूढ़ना है तो सर्वप्रथम इस देश को देखना होगा। विवेकानंद ने भारत यात्रा में भारतीय जनता का वास्तविक रूप देखा।
भारत माता के इस स्वरुप को देखकर उन्होंने भारतीय युवकों को सन्देश दिया। आगामी 50 वर्षो तक तुम लोग अपनी जननी जन्म भूमि की अराधना करो। इस समय तुम्हारा एक मात्रा देवता है तुम्हारा राष्ट्र। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आध्यात्मिक शक्ति से ओतप्रोत स्वामी विवेकानंद जी राष्ट्र भक्त भी थे। अमेरिका के शिकागो नगर में 1893 ई• के सितम्बर माह में एक सर्व सर्व धर्म सम्मेलन होने वाला था, जिसमें भाग लेने के लिए स्वामी विवेकानन्द 1893 ई• मई में जहाज से निकले। वैसे सम्मेलन समिति की ओर से उन्हें प्रतिनिधि के रूप में निमंत्रण नहीं किया गया था, किन्तु काफी असुविधाएं सहन करने के बाद उन्हें सम्मेलन में प्रवेश मिला। पहले ही दिन भाषण से उन्होंने सारे अमेरिका को जीत लिया। ऐसे विशाल समूह के समक्ष भाषण देने का उनका यह पहला अवसर था। उन्होंने प्रारम्भ में अमेरिका वासियों को बहनों और भाइयों जैसे शब्दों से वहां के श्रोताओं को सम्बोधित किया। उनके इस सम्बोधन ने पाश्चात्य जगत को मंत्र मुग्ध कर डाला। स्वामी विवेकानन्द का सन्देश जनजीवन का सन्देश था। स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय और पाश्चात्य सभ्यता को जोड़ने में सेतु का कार्य किया। स्वामी जी ने अपने जीवन में जो कार्य किया उसके दो पहलू हैं- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय। इन दोनों क्षेत्रों में उन्होंने जो कार्य किया तथा जो शिक्षा दी वह सचमुच ही अलौकिक है। स्वामी विवेकानन्द वास्तव में अद्वितीय छवि के दूत थे।
(लेखक- डॉ• शंकर सुवन सिंह, वार्नर कॉलेज ऑफ़ डेरी टेक्नोलॉजी- सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर एंड प्रॉक्टर हैं।)
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