श्री लंका में संसद को भंग करने के कदम को न्यायालय ने बताया असंवैधानिक
कोलंबो: बृहस्पतिवार को श्रीलंका के उच्चतम न्ययालय ने बृहस्पतिवार को दिये एक निर्णय में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना द्वारा संसद को भंग करने के कदम को सर्वसम्मति से असंवैधानिक ठहराया।
अदालत का यह फैसला राष्ट्रपति के लिए तगड़ा झटका माना जा रहा है। उनके विवादास्पद फैसलों के चलते देश अभूतपूर्व संवैधानिक संकट में फंस गया था।
सात सदस्यों वाली पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति संसद को तब तक भंग नहीं कर सकते जब तक संसद का साढ़े चार वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं हो जाता।
मामले की संवेदनशीलता के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय के चारों ओर सुरक्षा घेरा बनाया गया था और इलाके में विशिष्ट स्पेशल टॉस्क फोर्स को तैनात कर दिया गया था।
यूनाइटेड नेशनल फ्रंट के उपनेता सजीथ प्रेमदासा ने बताया कि सात न्यायधीशों की खंडपीठ ने एक राय से यह फैसला दिया है। उन्होंने सभी पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील भी की।
विवाद की शुरूआत तब हुई जब सिरिसेना ने 26 अक्ट्रबर को एक विवादित कदम उठाते हुये प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर उनके स्थान पर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को नियुक्त कर दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने संसद को भंग करके पांच जनवरी को अगला आम चुनाव करवाने का ऐलान भी कर दिया था।
सिरिसेना ने यह कदम तब उठाया था जब उन्हें लगा कि 225 सदस्यों वाली संसद में राजपक्षे 113 सांसदों का समर्थन हासिल नहीं कर पायेंगे और विक्रमसिंघे का पक्ष मजबूत बना रहेगा।
विकमसिंघे ने बुधवार को संसद में 117 सांसदों का समर्थन हासिल करके विश्वास मत हासिल कर लिया था।
सिरिसेना कह चुके हैं कि उन्होंने देश और लोगों के सर्वश्रेष्ठ हित को ध्यान में रख कर ही निर्णय लिये हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि वह अदालत के फैसले का सम्मान करेंगे।
उन्होंने नौ दिसम्बर को ट्वीट करके कहा था, "मैं सुप्रीम कोर्ट के संविधान की व्याख्या करने को उत्सुकता से देख रहा हूं। जैसा भी होगा, मैं मातृभूमि के सर्वश्रेष्ठ हित में भविष्य के राजनीतिक फैसले उसी हिसाब से लूंगा ताकि किसी व्यक्ति, समूह या दल को लाभ नहीं पहुंचे।"
सर्वोच्च अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये बर्खास्त प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने कहा, "हमें इस पर भरोसा करना होगा कि राष्ट्रपति अदालत के फैसले का यथोचित सम्मान करेंगे।"
उन्होंने ट्वीट करके कहा, "विधायिका, न्यायालय और कार्यपालिका एक लोकतंत्र के तीन महत्त्वपूर्ण स्तंभ हैं और उनमें जो शक्ति संतुलन है वह उससे अपने नागरिकों को संप्रभुता प्रदान करते हैं।"
उच्चतम न्यायालय में इस मामले में सुनवाई के लिए 13 याचिकाएं दायर की गयी थीं।
संसद का कार्यकाल पूरा होने में करीब 20 महीनों का समय शेष है। यानी अगले आम चुनाव फरवरी 2020 से पहले नहीं हो सकेंगे।
उच्चतम न्यायालय ने गत 13 नवम्बर को एक अंतरिम आदेश जारी करके सिरिसेना की गजट अधिसूचना को अस्थायी तौर पर अवैध घोषित करके आम चुनाव की तैयारियों पर रोक लगा दी थी।
हालांकि संसद अभी भी दो तिहाई बहुमत से चुनाव कराने का प्रस्ताव कर सकती है।
राष्ट्रपति यह पहले ही कह चुके हैं कि वे विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद पर दोबारा नियुक्त नहीं करेंगे। हालांकि विक्रमसिंघे की पार्टी का कहना है कि उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है।
(साभार- भाषा)
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