विशेष: चित्रगुप्त भगवान: प्रतिदिन माता-पिता का चरण-स्पर्श करने और चित्रगुप्तवार (गुरूवार) को नियमित पूजन से घर मे होता है सुख, शांति, समृद्धि व विद्या का वास
चित्रगुप्त भगवान पर नोएडा से अनिल कुमार श्रीवास्तव, संवाददाता व समाजसेवी की विशेष प्रस्तुति:
कायस्थ कुल में जन्मा तो भगवान श्री चित्रगुप्त की वार्षिक पूजा स्वाभाविक है। लेकिन सामाजिक आस्था में समाज द्वारा भगवान श्री चित्रगुप्त को महत्वपूर्ण स्थान न दिए जाने के लिए मन तमाम देवी देवताओं में भटकता रहा।
हालांकि हमारे पूर्वज नियमित रूप से भगवान श्री चित्रगुप्त के चित्र को पूजास्थली में स्थापित कर पूजते थे, लेकिन आधुनिक चन्चलायमान मन किसी की सुनता कहा है। मन तो टीवी, पिक्चरों व समाज के अन्य कामो में लग रहा था। वैसे भी समाज मे भगवान श्री चित्रगुप्त मुंशी के रूप में प्रचारित थे और महाराज का दर्जा दिया जा रहा था रही सही कसर फिल्मों ने पूरी कर दी।कुछ फिल्में महान सेंसर बोर्ड ने पास की जिसमे भगवान श्री चित्रगुप्त को एक हास्य रूप में यमराज का सहयोगी बनाया गया। किशोरावस्था में जब थोड़ी समझ आयी तो पापा से भगवान श्री चित्रगुप्त के विषय पर गम्भीरता से चर्चा हुई।हालांकि मेरे पिता दिवंगत हैं, लेकिन उन्होंने कुछ तथ्यपूरक ऐसी बातें रखी कि भगवान श्री चित्रगुप्त के प्रति आस्था की ऐसी अलख जगी की भक्त के साथ साथ भगवान श्री चित्रगुप्त की आस्था के प्रसार का संकल्प ले लिया।
भगवान राम, भगवान श्री कृष्ण व अन्य देवी देवताओं का पुराणों में उल्लेख मिलता है कि द्वापर, त्रेता आदि लगभग 1600,5500 सौ वर्ष पूर्व अवतार लेकर असुरों का संहार किया और अपने अपने समय खुशहाली कायम की, लेकिन सोचिए इनसे पूर्व भी तो कोई भगवान होगा जिसे ये देवता भी पूजते होंगे।
अब बताता हूँ पृथ्वी जब से अस्तित्व में आई तब से सभी जीवधारियों के सम्पूर्ण लेखा-जोखा की जिम्मेदारी भगवान श्री चित्रगुप्त को मिली है ये अपना काम विधिक तरीके से करके सबके पाप पुण्य आदि कर्मो का लेखा-जोखा रखते हैं।
इनका यह कार्य जब तक पृथ्वी पर जीवधारी हैं अनवरत चलता रहेगा इसीलिए इन्हें जीवित भगवान की संज्ञा भी दी गयी है।
भगवान श्री चित्रगुप्त की संतान हैं कायस्थ। कायस्थ अन्य समुदायों की तरह की भगवान के अनुयायी नही वो अपने भगवान की संतान हैं या यूं कह लीजिए भगवान श्री चित्रगुप्त कायस्थों के पिता हैं। क्या कोई पिता अपने पुत्र की मांग को नजरअंदाज कर सकता है?- नही, बस सच्चे मन से पुकार कर बेटा अपने पिता तक मांग पहुंचा पाये।
भगवान श्री चित्रगुप्त की उपासना तो त्रेता युग मे स्वयं मर्यादापुरुषोत्तम पुरुषोत्तम श्रीराम ने माता जानकी के साथ विवाहोपरांत उपासना की थी। वह मन्दिर तुलसी उद्यान के पास अयोध्या में आज भी मौजूद हैं, जहाँ विवाह के बाद भगवान राम देवी सीता के साथ भगवान श्री चित्रगुप्त का आशीर्वाद लेने गए थे। जैसा कि ऊपर बताया गया कि कायस्थ भगवान चित्रगुप्त की संतान हैं। यदि किसी बड़ी मुसीबत में पड़ता है तो पुत्र सबसे पहले पिता को याद करता है। हमे नियमित रूप से अपने पिता भगवान श्री चित्रगुप्त का स्मरण करना चाहिए। सुबह शाम चित्रगुप्त स्मरणए स्तुति, अर्चना, आरती से ऐच्छिक मांग पूरी होती है। बस श्रद्धा सच्चे मन से हो। प्रयास किया जाय किसी की अच्छे कार्य का श्री गणेश भगवान चित्रगुप्त की स्तुति से हो। जैसे विवाह, मकान इत्यादि। सम्पूर्ण जीवधारियों के कर्मो का लेखा-जोखा रखने वाले जगत न्यायाधीश भगवान श्री चित्रगुप्त के विषय मे समाज को मुंशी की धारणा त्यागनी होगी। प्रत्येक जीवधारी यदि प्रतिदिन माता पिता का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद ले और भगवान श्री चित्रगुप्त की ध्यान लगाकर 16 चित्रगुप्तवार पूजा अर्चना कर ले तो निश्चित ही उनके घर मे सुख, शांति, समृद्धि और विद्या का वास होगा।
शिक्षा के साथ साथ बृम्हमुहूर्त में स्नान कर सुबह नियमित रूप से प्रतिदिन अपने माता-पिता का चरण-स्पर्श करने, उनका आदर व आज्ञापालन के साथ-साथ चित्रगुप्त भगवान् की नियमित पूजा करने से विद्यार्थियों में बुद्धि का विकास होता है।
भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा के बाद उठाया कलम वकीलों, दफ्तर के बाबुओं, शिक्षकों, जजों, अधिकारियों, लेखकों, पत्रकारों आदि में गजब का उत्साह लाता है, उनका दिन सफल हो जाता है। सभी कलमकारों को नियमित रूप से भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा कर कलम उठानी चाहिए। इससे उनकी कलम सकारात्मक दिशा में सार्थक रहती है। घर मे कलम-दवात व चित्रगुप्त की फोटो हर इंसान को रखनी चाहिए वो चाहे किसी भी जाति से सम्बन्ध रखता हो। ये चीजें रखने से घर मे सुख, शांति, समृद्धि, व खुशहाली रहती है।
चित्रगुप्तवार (गुरुवार) को भगवान श्री चित्रगुप्त को पूजने से बुद्धि के विकास के साथ साथ इंसान को स्वास्थ्य लाभ भी होता है। इस दिन बृह्ममुहूर्त में स्नानादि कर भगवान श्री चित्रगुप्त की स्तुति करनी चाहिए। भोर की पहली किरण के साथ भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा, अर्चना कर आरती करना चाहिए। इसी प्रकार सूरज ढले सांझ की पूजा भी शुभमुहूर्त में करने से भगवान श्री चित्रगुप्त प्रसन्न होते हैं।
माता-पिता का चरण-स्पर्श कर 16 चित्रगुप्तवार (गुरूवार) सच्चे मन से पूजा करने से बड़े से बड़े कार्य सफल हो जाते हैं।
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