शक्तियों का अत्यधिक केंद्रीकरण भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक: रघुराम
- आरबीआई के पूर्व गवर्नर -रघुराम राजन ने कहा कि, बहुत सारे निर्णयों के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय की सहमति लेनी होती है, भारत एक केंद्र से काम नहीं कर सकता है, भारत तब काम करता है जब कई लोग मिलकर बोझ उठा रहे हों।
वाशिंगटन: भारतीय रिज़र्व बैंक, आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि, "भारत में राजनीतिक निर्णय लेने में शक्ति का अत्यधिक केंद्रीकरण प्रमुख समस्याओं में से एक है।"
इस संबंध में उन्होंने गुजरात में हाल ही में अनावरण की गई सरदार पटेल की मूर्ति "स्टैैैैच्यु ऑफ यूनिटी" परियोजना का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के लिए भी प्रधानमंत्री कार्यालय की मंज़ूरी लेने की ज़रूरत पड़ी।
बर्कले में बीते नौ नवंबर को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में राजन ने कहा कि, "भारत में समस्या का एक हिस्सा यह है कि वहां राजनीतिक निर्णय लेने की व्यवस्था हद से अधिक केंद्रीकृत है"।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार वल्लभभाई पटेल की 143वीं वर्षगांठ पर 31 अक्टूबर को गुजरात के नर्मदा ज़िले में "स्टैच्यू ऑफ यूनिटी" का अनावरण किया था।
विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति कही जा रही 182 मीटर की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को 2,989 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया। इसे महज़ 33 महीने में तैयार किया गया।
राजन ने कहा, "भारत एक केंद्र से काम नहीं कर सकता है। भारत तब काम करता है जब कई लोग मिलकर बोझ उठा रहे हों, जबकि आज भारत में केंद्र सरकार के पास शक्तियां अत्यधिक केंद्रीकृत हैं।"
उन्होंने कहा, "इसका उदाहरण है कि बहुत सारे निर्णय के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय की सहमति लेनी होती है। जब तक प्रधानमंत्री कार्यालय से अनुमति नहीं मिल जाती है, कोई निर्णय नहीं लेना चाहता। इसका अर्थ यह है कि प्रधानमंत्री यदि प्रतिदिन 18 घंटे भी काम करें तो भी उनके पास इतना ही समय है। हालांकि वह काफी मेहनती प्रधानमंत्री हैं।"
राजन ने कहा, उदाहरण के लिए हमने सरदार पटेल की इस इतनी बड़ी मूर्ति को समय पर पूरा किया। इस पर सभागार में हंसी के ठहाके और तालियों की गड़गड़ाहट सुनायी दी।
उन्होंने कहा, "यह दिखाता है कि जब चाह होती है तो राह भी है लेकिन क्या इस तरह की चाह हम अन्य चीज़ों के लिए भी देख सकते हैं।
शक्ति के अत्यधिक केंद्रीकरण के अलावा उन्होंने भारत में नौकरशाही की अनिच्छा को एक बड़ी समस्या बताया।सार्वजनिक क्षेत्र में पहल को लेकर अनिच्छा को भी उन्होंने बड़ी समस्या बताया।
उन्होंने कहा कि, "जब से भारत में भ्रष्टाचार के घोटाले उजागर होने शुरू हुए, नौकरशाही ने अपने क़दम पीछे खींच लिए"।
भोपाल में 1963 में जन्मे राजन भारतीय रिज़र्व बैंक के 23वें गवर्नर रहे हैं। वह सितंबर 2013 से सितंबर 2016 तक बैंक के गवर्नर रहे।
इसी कार्यक्रम में रघुराम राजन ने नोटबंदी और माल एवं सेवा कर (जीएसटी) को देश की आर्थिक वृद्धि की राह में आने वाली ऐसी दो बड़ी अड़चनें बताया जिसने पिछले साल वृद्धि की रफ्तार को प्रभावित किया।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि सात प्रतिशत की मौजूदा वृद्धि दर देश की ज़रूरतों के हिसाब से पर्याप्त नहीं है।
राजन ने बर्कले में शुक्रवार को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में कहा कि, "नोटबंदी और जीएसटी इन दो मुद्दों से प्रभावित होने से पहले 2012 से 2016 के बीच चार साल के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि काफी तेज़ रही।"
राजन ने कहा, "नोटबंदी और जीएसटी के दो लगातार झटकों ने देश की आर्थिक वृद्धि पर गंभीर असर डाला। देश की वृद्धि दर ऐसे समय में गिरने लग गई जब वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर गति पकड़ रही थी।"
(साभार- भाषा & द वायर)
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