
लहू बोलता भी है: जंगे आज़ादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार - जलालुद्दीन
आइये, जानते हैंं
जंगे आज़ादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- जलालुद्दीन (बिजनौर के नवाब का टकराव) को_____
मुजाहेदीन ने 19 मई सन् 1857 को मुरादाबाद की जेल पर हमला करके सभी मुजाहेदीन को छुड़ा लिया था।
इस वाक़ये के बाद अंग्रेज़ अफसर बहुत घबरा गये थे।
अंग्रेजो को जब यह पता चला कि मुजाहेदीन बिजनौर की तरफ़ आ रहे हैं, तो उनकी सेना और अफ़सरों में भगदड़ मच गयी। दूसरी ओर मुरादाबाद व नगीना-रुड़की और आसपास के मुजाहेदीन व बाग़ी सिपाही नजीबाबाद के नवाब महमूद खान की कोठी में इकट्ठा होने लगे।
ज़िले के हालात देखकर सभी अंग्रेज़ अफ़सर भाग गये। यहां तक कि जिला मजिस्ट्रेट भी एक जागीरदार की मदद से भाग निकला। पूरा ज़िला नवाब महमूद खान के कब्ज़े मे आ गया, जिसे फ़ौरन आज़ाद घोषित कर दिया।
अंग्रेज़ों के जाने के बाद नवाब ने राजकाज चलाने की बहुत कोशिशें कीं, लेकिन मुक़ामी ज़मींदारों और ताल्लुक़ेदारों ने आपकी मुख़ालिफ़त जारी रखी। इसके पीछे अंग्रेज़ों का उन ज़मींदारों के साथ होना बताया जाता है।
यह तब सच साबित हुआ, जब 6 अगस्त सन् 1857 को हल्दौर के चैधरी ने दीगर ताल्लुक़ेदारों की मदद और पीछे से अंग्रेज़ांे का साथ पाकर बिजनौर पर हमला बोल दिया।
इस अचानक के हमले से नवाब की सेना बिखर गयी।
अंग्रेज़ों की मदद से चैधरियों की सेना में आदमी और असलहे भी भारी तादात में थे।
नवाब के सैनिक बोख़ारा के बाग़ में बहुत देर तक उनका सामना न कर सके और नवाब को हार मानना पड़ा। नवाब महमूद खान किसी तरह बिजनौर से निकलने में क़ामयाब हो गये।
नवाब की सेना ने तीन हिस्सों में मोर्चा सम्भाला। इनमें नवाब के भतीजे शफ़ीउद्दीन खान की क़यादत में सेना ने नजीबाबाद के मोर्चे पर, अहमदुल्लाह खान के साथ सेना ने नांगल घाट के पास और जलालुद्दीन खान के क़यादत में सेना ने दारानगर घाट के पास मोर्चा संभाला।
इन लोगों के साथ मुक़ामी अवाम ने भी मिलकर मोर्चा लेने की कोशिश की, लेकिन अंग्रेज़ी सेना और ज़मींदारों की मदद के आगे ये टिक नहीं सके।
17 अप्रैल सन् 1858 तक काफ़ी तादात में अंग्रेज़ी अफ़सरान ने पूरी तैयारी से बिजनौर पर कब्ज़ा जमा लिया।
बिजनौर की लड़ाई के लिए नवाब के छोटे भाई जलालुद्दीन को फ़ौजी अदालत ने बग़ावत के जुर्म में फांसी की सज़ा दे दी और दीग़र गिरफ़्तार लोगों को जंगल में छुड़वा दिया, जिनकी बाद में कोई ख़बर नहीं मिली।
बाद में नवाब महमूद खान मेरठ में गिरफ़्तार हुए और उन्हें उम्रक़ैद का हुक़्म हुआ लेकिन अण्डमान जाने से पहले ही मेरठ की जेल में इतनी अज़ीयत दी गयी की आप इंतक़ाल कर गये।
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