लहू बोलता भी है: जंगे-आजादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- हाजी उस्मान सेठ
आइये, जानते हैैं,
जंगे-आजादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- हाजी उस्मान सेठ को________
हाजी उस्मान सेठ ;खिलाफतवालेद्ध
आपकी पैदाइश सन् 1900 में बंगलौर के सबसे रईस बिजनैसमैन के घर में हुई थी।
आपका कारोबार हिन्दुस्तान व बाहर के मुल्को मे भी फैला हुआ था।
आपने सन् 1919 में खिलाफत मूवमेंट में हिस्सा लेकर मुल्क की आज़ादी में कदम रखा तो फिर जब तक जिन्दा रहे आंदोलन के ही होकर रहे।
बंगलोर में कारोबार शुरू करने से पहले आपके वालिद का कच्छ में कपड़ो का कारोबार था।
बंगलोर में हिन्दुस्तान का पहला मॉल या डिपार्टमेंटल स्टोर ष्कैश बाज़ारष् के नाम से हाजी उस्मान सेठ ने ही खोला था।
मूवमेंट में शामिल होने के बाद आपके मोहम्मद अली जौहर से बहुत क़रीबी ताल्लुक़ात हुए।
उसके बाद महात्मा गांधीजी से बहुत नज़दीकी हुई।
गांधीजी से असरअंदाज़ होकर ही आपने स्वदेशी आंदोलन की शुरूआत अपने कैश बाज़ार में से अपना विदेशी कपड़ा आग के हवाले करके किया था। उस ज़माने में उन कपड़ो की कीमत लाखों की थी।
सन् 1920.1921 में अंग्रेज़ी स्कूलों के बाईकाट के मूवमेंट मे आपने इण्डियन नेशनल स्कूल खोलकर स्वदेशी पढ़ाई का इंतज़ाम किया।
सन् 1920 में आज़ादी के आंदोलन में जब फण्ड की कमी हुई तो महात्मा गांधी, पं• जवाहरलाल नेहरू और अली बिरादरान आपके पास मदद के लिए आये तो आपने इण्डियन नेशनल कांग्रेस के नाम एक ब्लैंक चेक व दस किलो सोने के जेवरों का बैग गांधीजी को दिया और कहा कि आप बेफिक्र रहें, मेरे पास जो कुछ भी है वो मैं मुल्क की आज़ादी के लिये है। जब जरूरत हो मैं देने के लिये तैयार हूं और बाद में आपने अपने कीमती 27 बंगलो को बेचकर गांधीजी को दान में दिया इन बंगलो की आज की कीमत 10 हजार करोड़ रुपये होती है।
आप कांग्रेस के ऐक्टिव मेम्बर रहते हुए आंदोलनो में भी हिस्सा लेते रहे तथा तीन आंदोलनो में जेल भी गये।
मूवमेंट में मदद करने की वजह से अंग्रेज़ अफसरों की नाराज़गी के भी शिकार रहे।
आहिस्ता.आहिस्ता उस वक़्त का सबसे बड़ा कारोबारी हाजी उस्मान सेठ तंगहाली में आ गया लेकिन मूवमेंट से क़दम पीछे नही हटाया।
आप मैसूर स्टेट कांग्रेस कमेटी के 15 साल तक सदर रहे।
एक बार आज़ादी के मूवमेंट में सन् 1930 में इण्डियन नेशनल कांग्रेस कमेटी को फण्ड की ज़रूरत हुई तो जवाहरलाल नेहरू ने उस्मान सेठ साहब को मदद के लिए कहा। आपने अपनी उस वक़्त की कारोबारी तंगहाली और बर्बादी की फिक्र नहीं की और अपने बड़े बेटे इब्राहिम को गिरवी रखकर जो रक़म हासिल की उसे कांग्रेस कमेटी के पार्टी फ़ण्ड में जमा कर दिया।
ये बात जब गांधीजी को पता चली तो उन्होंने कांग्रेस कमेटी के इजलास में हाजी उस्मान सेठ की कुर्बानियों का हवाला देते हुए कहा कि हाजी उस्मान सेठ के हम सभी कर्ज़दार हैं। इनके एहसानों का बदला चुकाया नहीं जा सकता है। माली हालात से कमज़ोर होने के बाद आप बिमार रहने लगे और सन् 1932 में बंगलौर में ही इंतक़ाल कर गये।
आज़ादी के बाद सन् 1949 में प्रधानमंत्री पं• जवाहरलाल नेहरू नें हाजी साहब के बेटे को 300 एकड़ ज़मीन देने की पेशकश की जिसे आपके बेटे ने लेने से इंकार कर दिया
तब जवाहरलाल नेहरूजी ने आपके बेटे इब्राहिम को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया। उस मीटिंग में हाजी साहब के बेटे ने कहा कि हमारे वालिद हाजी उस्मान सेठ ने अपने आख़ीर दिनों में कहा था कि हम तुम लोगो के लिए कुछ छोड़कर नहीं जा रहे हैं। हमने वतन को आज़ाद कराने के लिए तुम्हारे साथ ज़्यादती ज़रूर की है। तुम ख़ुद अपने पैरों पर खड़े हो और जब तक ज़िंदा रहो मुल्क के लिये और अगर जरूरी हो तो मौत को भी गले लगाओ तो मुल्क के लिये।
आपके वारिसों में अभी आपके पोते जनाब मोहम्मद अली जावेद और जनाब मोहम्मद अली यूसुफ बंगलौर में ही रहकर औसत दर्जे की ज़िंदगी बिता रहे हैं लेकिन तीसरी पीढ़ी को भी अपने दादा की कुर्बानी पर फख्र है।
swatantrabharatnews.com