विशेष: 27 अक्टूबर: करवाचौथ का व्रत, जानें किस समय पूजा करना रहेगा शुभ
लखनऊ: 27 अक्टूबर को करवाचौथ का पर्व मनाया जा रहा है।
शनिवार को पड़ने वाले इस व्रत को सुहागिनें पूरी श्रद्धा के साथ रखती हैं और रात में चांद निकलने के बाद उसे अर्घ्य देकर अपना व्रत तोड़ती हैं।
इसी के साथ ही पति के हाथ से पानी और खाने का पहला निवाला लेने की परंपरा भी है।
खास बात ये है कि इस बार करवा चौथ का व्रत संकष्टी गणेश चतुर्थी के साथ पड़ रहा है जिससे इसका महत्व और भी बढ़ गया है।
भारत में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं जिसमें से करवा चौथ एक है।
महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं।
यह व्रत पति के दीर्घायु के लिए रखा जाता है। एक बात का ख्याल रहे कि महिलाएं चांद को भी अर्ध्य देने के बाद पति के हाथों से ही जल पिएं।
इस प्रकार पति पत्नी के जन्म जन्मांतर तक चलने वाले इस अमर प्रेम में यह व्रत महती भूमिका निभाता है।
करवा चौथ का शुभ मुहूर्त:
05 बजकर 36 मिनट से 06 बजकर 53 मिनट तक
ब्रत खोलने का समय:
चंद्रोदय यानी चांद के दिखने का समय रात्रि 7 बजकर 55 मिनट पर होगा। चांद को अर्घ्य देकर ही व्रत खोलें।
करवा चौथ की पूजा-अर्चना विधि:
इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। सोलह श्रृंगार में माथे पर लंबी सिंदूर अवश्य हो क्योंकि यह पति की लंबी उम्र का प्रतीक है। मंगलसूत्र, मांग टीका, बिंदिया ,काजल, नथनी, कर्णफूल, मेहंदी, कंगन, लाल रंग की चुनरी, बिछिया, पायल, कमरबंद, अंगूठी, बाजूबंद और गजरा ये 16 श्रृंगार में आते हैं।
सोलह श्रृंगार में महिलाएं सज धजकर चंद्र दर्शन के शुभ मुहूर्त में छलनी से पति को देखती हैं। चंद्रमा को अर्ध्य देती हैं। चंद्रमा मन का और सुंदरता का प्रतीक है।
महिलाएं चंद्रमा के समकक्ष सुंदर दिखना चाहती हैं क्योंकि आज वो अपने पति के लिए प्रेम की खूबसूरत चांद हैं। इससे पति का पत्नी के प्रति आकर्षण बढ़ता है। पति भी नए वस्त्र में सुंदर दिखने का प्रयास करता है।
यह व्रत समर्पण का व्रत है। जीवात्मा महिला होती है। परमेश्वर पुरुष है। जो समर्पण एक भक्त का भगवान के प्रति होता है वैसा ही भाव आज पत्नी का पति के प्रति है।
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