लहू भी बोलता है: जंगे-आज़ादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- अब्दुल रहीम: सैयद शाहनवाज अहमद कादरी
आईये जानते हैं, जंगे-आज़ादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- अब्दुल रहीम को ____
"लहू बोलता भी है" के लेखक- लोकबन्धु राजनारायण के लोग संस्था के संस्थापक- सैयद शाहनवाज अहमद कादरी ने जंगे-आजादी-ए-हिन्द के क्रान्तिकारी मुस्लिम किरदारों को एक माला के रूप में इस पुस्तक में पिरोने का अभूतपूर्व ऐतिहासिक कार्य किया है और उसी में एक किरदार अब्दुल रहीम हैं।
अब्दुल रहीम के वालिद का नाम अब्दुल करीम था। आप तमिलनाडु के रहनेवाले थे।
आप शेरे-मैसूर (टीपू सुल्तान) के बेगम के रिश्तेदारों में थे, जो अंग्रेजी हुकूमत की नज़रों में दुश्मन नम्बर एक माने जाते थे।
अब्दुल रहीम साहब कांग्रेस की तंज़ीम से जुड़े रहे और हर आंदोलन मंे हिस्सा लेते रहते थे। आप तमिलनाडु के सरगर्म सियासी रहनुमाओें में से थे।
आपकी इंक़लाबी तक़रीरों से अंग्रेज़ अफ़सर बहुत नाराज रहते थे। आपको एक जलसे के बाद गिरफ़्तार किया गया और मुक़दमा चला।
आप पर बग़ावत के लिए उकसाने का इल्ज़ाम था, सो पांच साल सख़्त कै़द की सज़ा हुई।
जेल से छूटकर आने पर आप जेल की अज़ीयत के चलते कुछ दिनों बीमार रहे। उसके बाद फिर से जंगे-आज़ादी की अपनी जद्दोजहद में लग गये।
आपको दोबारा भी गिरफ़्तार किया गया। लेकिन आप फिर भी अपनी इंक़लाबी तहरीक में लगे रहे। आम अवाम में बहुत ही मशहूर थे।
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