उच्चतम न्यायालय ने मोदी सरकार से कहा - हमें बताएं कि राफेल पर कैसे फैसला किया
नई-दिल्ली: (भाषा) राफेल करार के मुद्दे पर जारी राजनीतिक विवाद के बीच उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को मोदी सरकार से कहा कि वह फ्रांस सरकार के साथ हुए राफेल सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया का विवरण सीलबंद लिफाफे में 29 अक्टूबर तक पेश करे। साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसे इसकी कीमत और तकनीकी विवरण के बारे में जानकारी नहीं चाहिए। इस बीच, सरकार ने राफेल करार के मुद्दे पर दायर जनहित याचिकाएं खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि वे ‘‘राजनीतिक याचिकाएं’’ हैं।
दो याचिकाओं में दी गई दलीलों को ‘‘अपर्याप्त’’ करार देते हुए प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यह भी कहा कि वह केन्द्र को औपचारिक नोटिस जारी नहीं कर रही है क्योंकि उसने दो वकीलों द्वारा अलग-अलग दायर जनहित याचिकाओं में कथित भ्रष्टाचार के आरोपों पर विचार नहीं किया है।
न्यायालय इस मामले में अब 31 अक्टूबर को आगे विचार करेगा।
शीर्ष न्यायालय के निर्देशों के बीच मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह करार पर ऐतराज जताने वाले नौकरशाहों को ‘‘दंडित’’ करके और ‘‘मदद करने वाले अधिकारियों’’ को इनाम देकर राफेल समझौते की प्रक्रिया में ‘‘जोड़तोड़’’ कर रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की फ्रांस यात्रा पर भी सवाल उठाए और आरोप लगाया कि फ्रांसीसी एयरोस्पेस कंपनी दशॉ एविएशन से राफेल विमान खरीदने के प्रधानमंत्री मोदी के फैसले को सही ठहराने के लिए काम शुरू कर दिया गया है।
राहुल ने ट्वीट कर कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने राफेल सौदे के निर्णय के बारे में पूछा है। यह बहुत ही आसान है.. (कि) प्रधानमंत्री ने फैसला किया।’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘प्रधानमंत्री के निर्णय को सही ठहराने की प्रक्रिया का अभी पता लगाया जा रहा है। परंतु काम आरंभ हो चुका है।’’
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘‘इसी संदर्भ में रक्षा मंत्री (निर्मला सीतारमण) आज रात फ्रांस के लिए रवाना हो रही हैं।’’
सीतारमण फ्रांस की तीन दिवसीय यात्रा पर रवाना हो रही हैं। इस यात्रा की शुरुआत कल से होगी।
राहुल ने राजस्थान के बीकानेर में अपनी रैली में एक बार फिर राफेल विमान सौदे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा और केंद्र सरकार पर देश के 10-15 बड़े उद्योगपतियों के लिए ही काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने अपने इस आरोप को दोहराया कि राफेल करार से जुड़े ऑफसेट अनुबंध से अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप को फायदा पहुंचाया गया।
उन्होंने पहले भी धौलपुर, भरतपुर और दौसा जिलों में ऐसे ही आरोप लगाए थे। मोदी सरकार और रिलायंस ने राहुल के आरोपों को नकारा है।
बहरहाल, इस मामले पर सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने केन्द्र से पूछा कि यदि वह राफेल लड़ाकू विमानों के तकनीकी विवरण और कीमतों के बगैर ही निर्णय लेने की प्रक्रिया का विवरण मांगे तो क्या होगा।
केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि इस सौदे का विवरण राष्ट्रहित और रक्षा सामान खरीद की प्रक्रिया में शामिल दूसरे मुद्दों के मद्देनजर किसी को भी दिखाया नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि राफेल सौदा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है और ऐसे मुद्दों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है।
केन्द्र ने इन जनहित याचिकाओं का विरोध करते हुये उन्हें खारिज करने का अनुरोध किया और कहा कि सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने के लिए ये दाखिल की गई हैं।
न्यायालय राफेल विमान सौदे को लेकर दायर कई याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इन याचिकाओं में राफेल सौदे के ब्योरे और संप्रग और राजग सरकार के कार्यकाल के दौरान सौदे की तुलनात्मक कीमतों का विवरण सीलबंद लिफाफे में शीर्ष अदालत को सौंपने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
इस बीच, कांग्रेस नेता और आरटीआई कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे के संबंध में दायर अपनी जनहित याचिका वापस ले ली है।
अधिवक्ता विनीत ढांडा ने अपनी याचिका में 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिये 58,000 करोड़ रूपए के भारत और फ्रांस की कंपनी दशॉ एविएशन के बीच हुये समझौते को लेकर हाल ही में उठे विवाद पर विराम लगाने के लिये न्यायिक हस्तक्षेप का अनुरोध किया है।
एक अन्य अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने भी एक याचिका दायर कर राफेल सौदे पर रोक लगाने और भारत तथा फ्रांस सरकार के बीच हुआ समझौता रद्द करने का अनुरोध किया है। उन्होंने याचिका में कहा है कि यह सौदा ‘भ्रष्टाचार का नतीजा’ है और संसद ने भी इसकी पुष्टि नहीं की है।
इसके अलावा, आप पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी एक याचिका शीर्ष अदालत में दायर कर रखी है जिसमें इस सौदे की न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल से जांच कराने का अनुरोध किया गया है।
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