विशेष: रायबरेली रेल हादसा: जिम्मेदार कौन - मृतक यात्रियों के आश्रितों को 50 लाख मुवावजा और नौकरी की माँग
- रेल हादसा: रायबरेली में न्यू फरक्का एक्सप्रेस की 9 बोगी पटरी से उतरी, 7 की मौत 50 से अधिक घायल।
- मृतक यात्रियों के आश्रितों को 50 लाख रुपये व एक आश्रित को नौकरी तथा गम्भीर रूप से घायलों को कम से कम10 लाख रुपये का मुआवजा देने की माँग।
- भारत की आजादी के दिन-15अगस्त 1947 से 31मार्च 2010 तक 63 वर्षों में रेल दुर्घटनाओं की स्थिति और दुर्घटनामुक्त रेल संचालन के लगभग 15 वर्ष।
- ठेकेदारी, मशीनीकरण, आधुनिकीकरण और मानव रहित विकास से बढ़ा भ्रष्टाचार और रेल हुई बर्बाद और 1अप्रैल 2010 से दुर्घटनायें बढ़नी सुरू हुई और आज की स्थिति....।
- दुर्घटना का मुख्य कारण रेल मंत्रालय की गलत नीतियाँ, ठेकेदारी प्रथा तथा उच्च स्तर पर भारी भ्रष्टाचार और लगभग 20 लाख रेल कर्मचारियों की कमी है।
[सच्चिदानन्द श्रीवास्तव, रिटायर्ड रेलवे इंजीनियर तथा प्रदेश अध्यक्ष (उ• प्र•)- लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी]
लखनऊ:10अक्टूबर 2018 को सबेरे लगभग 06:05 बजे उत्तर रेलवे के रायबरेली में हरचंदपुर रेलवे स्टेशन के पास एक बड़ा रेल हादसा हो गया, जिसमें अब-तक कम से कम एक महिला और एक बच्चा सहित सात यात्रियों की मौत हो गई है और पचास से अधिक यात्री घायल हो गये।
आखिर इन रेल दुर्घटनाओं का जिम्मेदार कौन है ?-
लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी सबसे पहले मृतकों के प्रति गहरी संवेदना ब्यक्त करते हुए घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता है तथा साथ ही मृतकों को 50 लाख रुपये व एक आश्रित को नौकरी तथा गम्भीर रूप से घायलों को कम से कम 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की माँग करता है।
पार्टी का यह मानना है कि मृतक यात्रियों के परिवार के लिए यह अपूर्णीय क्षति है जिसे पैसे से अर्थात 2 लाख व 5 लाख रुपये देने की घोषणा करके तथा छोटे कर्मचारी- सहायक स्टेशन मास्टर को निलम्बित करके भरपाई नहीं की जा सकती है और इससे DRM व G.M से लेकर रेल मंत्री तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री तक की जिम्मेदारी समाप्त नहीं हो जाती है।
आईये, देश की आजादी की तिथि 15 अगस्त 1947 से अब-तक के भारतीय रेल दुर्घटनाओं के उपलब्ध आँकड़ों पर एक नजर डालते हैं और निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास करते हैं कि आखिर इन हादसो का जिम्मेदार कौन है:-
1. आजादी के दिन-15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 2010 तक 63 वर्षों में रेल दुर्घटनाओं की स्थिति, जब रेलवे पूर्ण रूप से विभागीय कर्मचारियों से संचालित था, निचे दर्शाया जा रहा है:
अ) उक्त 63 वर्षों में लगभग निम्न के 15 वर्षों में रेलवे में कोई दुर्घटना नहीं हुई:-
15अगस्त 1947 आजादी के दिन से 31मार्च 1950 (पौने तीन वर्ष); वर्ष1952-53, 1955-56, 1959-60, 1963-64, 1970-72(दो वर्ष), 1974-77 (तीन वर्ष ), 1987-88, 2000-01, 2002-03= लगभग15 वर्ष दुर्घटनामुक्त रेल संचालन रहा।
ब) उपरोक्त 63 वर्षों में से ऊपर दर्शाये गये 15 वर्षों के अतिरिक्त वर्षों में कुल 84 रेल-दुर्घटनायें अर्थात 1.25 दुर्घटना प्रति वर्ष हुई अर्थात संरक्षा, सुरक्षा व समय-पालन तीनो सिद्धांतों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाता था जो आज परिलक्षित नहीं होता है।
स) 1अप्रैल 2010 से दुर्घटनायें बढ़नी सुरू हुई और आज की स्थिति आपके सामने है।
अर्थात एक तरफ रेलवे लाईनों की डबलिंग होने, रेल विद्युतीकरण, पुलों, रेलगाड़ियों व प्लेटफार्म आदि की संख्या में बृद्धि और दूसरी तरफ अस्सी के दशक से जैसे- जैसे कर्मचारी कम होते गये विभागीय कार्यों पर ठेकेदारों का कब्जा बढ़ता गया और साथ ही ठेकेदारी, मशीनीकरण, आधुनिकीकरण और मानव रहित विकास से भ्रष्टाचार बढ़ता गया, रेल का मजबूत ढांचा धीरे-धीरे चरमराने लगा और रेल बर्बाद होती गई जिसकी भरपाई यात्रियों को अपनी जान देकर तथा अपाहिज बनकर चुकानी पड़ रही है।
2. अब यदि वर्ष 2017-18 में ट्रेनों के संचालन का आँकड़ा देखा जाय तो हम देखेंगे कि पूरे वर्ष में लगभग 5 लाख से अधिक ट्रेनों को पूर्णतया व आंशिक रूप से निरस्त कर दिया गया और बिलम्बित होने की तो बात ही न करें। फिर भी लगभग रोज कहीं ना कहीं छोटी-बड़ी मालगाड़ी/सवारी/ मेल/ एक्सप्रेस ट्रेन दुर्घटना होती रहती है जिसे दबा दिया जाता है। जाँच के आदेश होते हैं और फिर लीपा-पोती।
क्या रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष या रेल मंत्री या रेलवे के मुख्य सुरक्षा आयुक्त बतायेंगे कि, आज-तक हुए रेल दुर्घटनाओं में से कितनी जाँच हुई और किसमें किस अधिकारी की जिम्मेदारी तय हुई और सजा हुई?-
लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी का मानना है कि यह दुर्घटना नहीं सामुहिक हत्या है और जब तक उच्च पदस्थ जिम्मेदारी तय कर सख्त कार्यवाही नहीं होगी तब-तक न भ्रष्टाचार रुकेगा, न रेल का ढाँचा दुरूस्त होगा और ना ही रेल दुर्घटना रुकेगी।
आज मैं फिर पूरी जिम्मेदारी से कहना चाहूँगा कि रेलवे की अधोसंरचना चरमरा गई है। रेलवे के पास निरीक्षण और अनुरक्षण से लेकर संचालन के कार्य करने हेतु रेलगाड़ियों की संख्या, रेलवे लाइन की लम्बाई, पुलों की संख्या, ओ•एच•ई•, स्टेशनों और प्लेटफार्म की संख्या, रनिंग शेड व रेलवे कारखानों आदि के अनुपात में लगभग 20 लाख रेलवे कर्मचारी कम है क्योंकि 80 के दशक के बाद से ही रिटायरमेन्ट, आकस्मिक मृत्यु, व पदोन्नति से रिक्त होने वाले पदों पर भर्ती लगभग बन्द हो गई।
दुर्घटना का मुख्य कारण रेल मंत्रालय की गलत नीतियाँ, ठेकेदारी प्रथा तथा उच्च स्तर पर भारी जभ्रष्टाचार और लगभग 20 लाख रेल कर्मचारियों की कमी है।
लखनऊ मंडल की बात करें तो यहाँ उत्तर रेलवे के लखनऊ मंडल की तो बात ही अलग है। यहाँ डी•आर•एम• सतीश कुमार के संरक्षण में भ्रष्टाचार चरम पर है। यहाँ तक कि ईमानदार कर्मचारी तक को उनके ईमानदारी की सजा उसके रिटायरमेन्ट पर चार्जशीट देकर सात- सात साल तक जाँच सुरु नहीं होती और चार्जशीट के नाम पर उसकी ग्रैच्युटी आदि सेटलमेन्ट ड्यूज तक सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश और मानवाधिकार का खुला उल्लंघन करके रोक लिया जाता है तथा सफाई के नाम पर फर्जी भर्ती करके उन्हें पदोन्नति दी जाती है।
अतः लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी माँग करती है कि, दुर्घटना की उच्च स्तरीय जिम्मेदारी तय करते हुए कम से कम उत्तर रेलवे के G.M. और DRM को अविलंब गिरफ्तार कर आपराधिक कार्यवाही की जाय तथा रेलवे में ठेकेदारी प्रथा पर पूर्ण बिराम लगाते हुए रेल के अधोसंरचना के अनुपात में रिक्त लगभग 20 लाख कर्मचारियों की भर्ती की जाय और पहले की तरह रेल के स्थाई व कुशल विभागीय कर्मचारियों से ही निरीक्षण, अनुरक्षण से लेकर संचालन तक के कार्य कराकर रेलवे में संरक्षा, सुरक्षा व समय पालन के प्राथमिक उद्देश्य की पूर्ति कर यात्रियों को सुरक्षित रेल यातायात मुहैया कराया जाय।
लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष- सच्चिदानन्द श्रीवास्तव ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, रेलमंत्री व रेलवेबोर्ड के अध्यक्ष को ट्वीट करके भी इस दुर्घटना की उच्च स्तरीय जिम्मेदारी तय करते हुए तथा इस दुर्घटना को सामुहिक हत्या मानते हुए उत्तर रेलवे के GM और DRM लखनऊ को अविलंब गिरफ्तार करने तथा आपराधिक कार्यवाही करने की माँग की है।
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