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विशेष: जुमले बाजी राजनीति का आधार नही: रघुठाकुर
नई-दिल्ली: आज-कल के राजनैतिक हालात और विशेषकर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व सत्ताधारी नेताओ द्वारा जुमलेबाजी को राजनीति का आधार बनाने पर प्रतिक्रिया ब्यक्त करते हुए प्रख्यात समाजवादी चिंतक व विचारक तथा लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- रघु ठाकुर ने कहा कि, आज-कल देश में राजनैतिक नेताओं को जुमले फेंकने की आदत ज्यादा हो गई, संभवत इसके तीन कारण हो सकते है:-
1. जुमले प्रचार तंत्र में आसानी से स्थान पा लेते है और आम लोग भी उन्हें चटकारा लेकर ग्रहण कर लेते है।
2. इन जुमलों के पीछे कोई गम्भीर सोच, चिंतन, मनन या संकल्प नही होता है।
3. भारतीय राजनीति जिस अगंभीर प्रचार प्रसार के दौर से गुजर रही है उसमें इससे बच कर निकलने का आसान तरीका होता है।
श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक यह भी पक्ष सामने आया है कि प्रधानमंत्री स्वतः भी आये दिन अपने भाषणों को सूत्र बध जुमले बना देते है उनके कहे हुये सूत्र भाषणो के रुप में दर्ज तो होगे, क्योंकि वे जिस पद पर है उस पद के कुछ विषेष अधिकार है परन्तु इन जुमलो पर देष के षासन और प्रषासन को उतारना न उनका लक्ष्य है और न ही तंत्र का। जनता भी उनके इन सूत्रबध भाषणो को आंरभिक दौर में तो सुनकर खुष होती है और अब उन्हें या तो पढ़ती नही है या फिर विस्मृति कर देती है।
बहरहाल श्री मोदी जी ने जो भाषण संस्कृति विकसित की है उससे अन्य पार्टियाॅ तो प्रभावित हुई ही है साथ ही अन्य कई दलो के राजनेता भी अपने जुमलों को अखवारी कालम में छपे समाचार को पढ़ कर खुष होते है, परन्तु उनके अपने दल के मुख्यमंत्री और मंत्रियो ने तो इसे शैली के रुप में अपना लिया है और इसलिये राजनीति जुमला राजनीति बन गई।
अभी हाल में 13 सितम्बर को माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी जी ने टी.डी कालेज प्रांगण यू•पी• में पूर्व मंत्री उमानाथ सिंह के श्रद्वांजलि समारोह को सम्बोधित करते हुये कहा कि देश, समाजवाद, साम्यवाद से नही बल्कि रामराज्य से चलेगा।
उन्होंने अपने इस चिर-शब्दीय जुमलों में एक तरफ समाजवाद को विचारधारा के तौर पर नकारने का प्रयास किया और दूसरी तरफ अपनी व अपने दल की सरकारो को रामराज्य की सरकारें बताने का प्रयास किया। उन्होंने उदाहरण देते हुये यह भी कहा कि पहले केन्द्र सरकार जो पैसा देती थी उसमें एक रुपये में से केवल 15 पैसे लोगो तक पहॅुचते थे और अब सरकार पूरा एक रुपया सीधे खाते में भेज रही है।
1985 में बतोैर प्रधानमंत्री स्व राजीव गाॅधी ने यह रहस्योद्घाटन जुमले के रुप में किया था कि केन्द्र एक रुपया भेजता है उसका मात्र 15 पैसे आम जनता तक पहॅुचता है, शेष भ्रष्टाचार में चला जाता है। लोगो ने उनकी इस स्वीकृति की बड़ी तारीफ की और विशेषतः उस समय के मीडिया ने तो उन्हें इस एक जुमले के नाम पर मिस्टर क्लीन की उपाधि दे डाली थी, हालांकि इसी मीडिया ने 1989 में उनसे उस स्वछता का तमका छीन कर बोफोर्स घोटाले का दोषी उन्हें आमजन की नजरो में सिद्व कर दिया और राजनैतिक सूली पर टाॅग दिया था। हमारे देश के मीडिया और देश ही क्या दुनिया के मीडिया की यह विशेषता है कि, वह ज्ञात-अज्ञात कारणो से या अपने अंतर निर्धारित लक्ष्य की बजह से किसी भी व्यक्ति को सूली पर टाॅग देता है और अगर बाद में मीडिया रपट निराधार पाई जाये तब खेद प्रगट करना तो दूर उसकी चर्चा भी नही करता।
दुनिया में ईराक में मीडिया के इस प्रयोग को लोगो ने देखा है और ईराक का सर्वनाश कर सद्दाम को मौत मारक हथियारो के रखने के नाम पर मौत दे दी गई थी।
सद्दाम हुसैन स्वतः निहत्था मारा गया और हमला करने वाले देशों के द्वारा जाॅच में कोई मौत मारक हथियार ईराक में नही पाये, गये परन्तु इस मीडिया ने इस मामले पर मौन धारण कर लिया, लगता है कि, इस प्रकार के मामलों में मीडिया में बड़ी एकता है।
श्री योगी जी ने राम राज्य सिद्ध करने के लिये जो उदाहरण दिया है वह अधूरा है। इसलिये यह एक तथ्य है कि सरकार ने जो जन-धन खाते खुलवाये है जिनकी संख्या करोड़ो में है तथा विभिन्न प्रकार के अनुदान सीधे खाते में डालना तकनीकी माध्यम से सुरु किया है इससे उपभोक्ताओं को लगभग पूरा पैसा मिलना सुरू हुआ है और इसके लिये मैं प्रधानमंत्री जी को साधुवाद दूगाॅ, परन्तु ठेकेदारी प्रथा, आउट सोर्सिंग, अस्थाई दैनिक कर्मचारियों के नाम पर देश के करोड़ो कर्मचारी जो सरकारी, अर्धसरकारी या सरकारी वित्त पोषित संस्थाओं में काम करते है उनकी लूट, षोषण और भ्रष्टाचार से बचाने का कोई उपाय सरकार द्वारा नही किया गया। किसी स्थानीय संस्था, सरकारी या अर्धसरकारी संस्था में काम करने वाले एक सुरक्षा गार्ड के उदाहरण से हम इन करोड़ो लोगो की पीड़ा और भ्रष्टाचार को समझ सकते है। दिल्ली में सरकारी संस्थानो की सुरक्षा के लिये निजी सुरक्षा कम्पनियो के माध्यम से सुरक्षा गार्ड लगाये जाते है और इन्हें सरकार के अनुसार औसतन 12 से 15 हजार रुपया प्रतिमाह दिया जाता है और उनके वेतन का पैसा कम्पनियो के मालिको के खातो में जाता है और वे लगभग 4-5 हजार रुपया प्रतिमाह इसमें से काट कर 8-10 हजार रुपया प्रतिमाह ही उन्हे देते है। अकेले दिल्ली शहर में सरकारी व्यवस्था में काम करने वाले सुरक्षा प्रहरियो की संख्या 10 लाख के आसपास है याने औसतन एक हजार करोड़ रुपया प्रतिमाह का खुला भ्रष्टाचार। तात्पर्य कि साल का 12 हजार करोड़ रुपया इन कम्पनियों के द्वारा बचा लिया जाता है।
क्या जिस प्रकार उपभोक्ता के खाते में सरकार ने अनुदान का पैसा डालने का सिलसिला षुरु किया है क्या वही तरीका इन सुरक्षा प्रहरियो के मामले में लागू नही किया जा सकता? चूॅकि देश के सभी सरकारी अर्धसरकारी क्षेत्रों में ठेकदारी प्रथा या आउट सोर्सिंग प्रथा बकायदा सरकार के द्वारा लागू की गई, इसके चलते समूचे देष में लगभग 6 लाख करोड़ रुपया प्रतिवर्ष का भ्रष्टाचार हो रहा है। समूचे देष में केन्द्र व राज्य को मिलाकर लगभग 4 से 5 करोड़ कर्मचारी ठेकेदारी प्रथा या आउट सोसिंग के तहत काम कर रहे है। याने अधिकारियो और ठेकेदारों के बीच इस 6 लाख करोड़ भ्रष्टाचार के पैसे का बॅटवारा हो रहा है। उ.प्र. भी इससे अछूता नही है। अब इस तथ्य के आधार पर योगी जी अपने जुमले का पुनः अवलोकन क्यों न करे।
महात्मा गाॅधी ने राम-राज्य की कल्पना की थी और उनका राम-राज्य क्या था, इसका अनुमान तुलसी रचित रामायण कि एक चौपाई से किया जा सकता है_____
’’दैहिक दैविक भौतिक तापा, रामराज्य काॅहू नही व्यापा’’
याने राम राज्य से मतलब कोई मंदिर के नाम पर वोट माॅगने वाला राज्य नही है बल्कि ऐसे राज्य की कल्पना है जिसमें राज्य के नागरिको को शारीरिक, प्राकृतिक और किसी भी प्रकार का भौतिक या सांसारिक दुख न हो।
राम-राज्य के सूत्र स्वतः राम ने उन प्रश्नों के रुप में प्रस्त्तुत किये है जिन्हें उन्होंने भरत मिलाप के समय भरत से प्रश्नों के रुप में पॅूछे थे, क्योंकि भरत ही उस समय अयो ध्या के शासक थे। श्री राम ने भरत से पूछा था कि राज्य में कोई भूखा तो नही सोता, कोई शिक्षक, कर्मचारी दुखी तो नही है अगर राम की वर्णित कसौटियो पर योगी मोदी राज्य की चर्चा करे तो उनके राज्य को राम राज्य कहा जाये या अन्य प्रकार का राज्य कहा जाये इसका फैसला वे कर सकते है। जिस उ.प्र. में सैकड़ो बच्चे स्वतः गोरखपुर में मस्तिष्क ज्वर व आक्सीजन की कमी से मर गय थे। दवाओं की खरीद और घोटालो के नाम पर खजाने का करोड़ो रुपया भ्रष्टाचार में चला गया। जहाॅ देवरिया से लेकर अनेको स्थानो पर बालिका गृह में लाचार बेटिया सुरक्षित नही है, जो बेसहारा है या किसान कर्ज पीड़ित होकर आत्महत्याये कर रहे है।
जहाॅ सारे आम अपराधी, गुण्डे आम इंसानो को गोलियो से भून देते है, जहाॅ आमजन से लेकर व्यापारी तक असुरक्षित है, किसान से लेकर कर्मचारी तक दुखी है, ये कैसा राम-राज्य है।
योगी जी या तो दम्भ में या नासमझी में श्री राम को बदनाम कर रहे है। क्योंकि जिसने श्री राम द्वारा निर्धारित कसौटियो को नही पढ़ा होगा वह समझेगा कि शायद राम का राज्य भी ऐसा ही होगा।
श्री योगी जी को समाजवाद के बारे में टिप्पणी करने के पहले कुछ पढ़ने की जहमत उठानी थी। समाजवाद एक ऐसे राज्य की कल्पना है जिसमें इन्सान-इंसान के बीच जन अर्पित राजनीति, लिंग, धर्म आदि के आधार पर कोई भेद नही होता बल्कि मानव मानव को समान माना जाता है।
समाजवाद कहता कि व्यक्ति को उसकी जरुरत अनुसार और व्यक्ति से उसकी क्षमता अनुसार देश को देना और लेना चाहिये। समाजवाद रुपी राज्य की कल्पना श्री योगी जी स्व.डाॅ.लोहिया की ’’सप्तक्रांति पुस्तक’’ को पढ़कर करे तभी वह समझ पायेगे कि, लोहिया की सप्तक्रातियाॅ ही रामराज्य के बुनियादी आधार है।
समाजवाद एक शोषण विहीन समाज की कल्पना करता है जिसमें राजा या शासक हुकुमरान नही बल्कि आमजन का रक्षक, कोष का प्रबंधक और अपनी न्यूनतम जरुरतो की पूर्ति के लिये है। शासकीय खजाने से सहायता लेने का अधिकारी है।
रामराज्य में एक सामान्य व्यक्ति भी राजा के ऊपर अपने मत के अनुसार सही या गलत टिप्पणी कर सकता है और शासक अपने मत या समयानुसार उस पर विचार कर निर्णय करता था। परन्तु आमजन का टिप्पणी का अधिकार सुरक्षित था जिसके आधार पर उसे दण्डित नही किया जाता था, यह लोकतंत्र था और आज योगी मोदी सरकार में शासक की अलोचना करना एक जोखिम भरा काम हो गया है। आलोचना करने वाले को गिरफ्तारी से लेकर प्रताड़ना का शिकार तक बनाया जाना एक आम चरित्र हो गया है। असहमत अलोचना के अधिकार को लगभग समाप्त जैसा किया जा रहा है।
मै श्री योगी जी से अपील करुगाॅ कि वे एक बार लोहिया के भारतीय समाजवाद को पढ़ने का कष्ट करे, और अपनी भ्रांति दूर करने का प्रयास करें।
लोहिया का समाजवाद भारतीय सभ्यता, और वैदिक कालीन सभ्यता मानव जीवन मूल्यो और आजादी के साथ समता के सिद्धांतों पर खड़ा है। समाजवाद की व्यवस्था ही सच्चे राम राज्य की कल्पना है।
कृपया योगी जी अपने प्रदेश के शासको या विरोधियो या पार्टियो के नाम से समाजवाद की व्याख्या न करे, बल्कि विचार के तौर पर समझने का प्रयास करे।
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