दागी नेताओं को चुनाव लड़ना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट आज सुना सकता है फैसला
नई-दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुना सकता है जिसमें सवाल उठाया गया है कि आपराधिक सुनवाई का सामना कर रहे विधि निर्माताओं को उनके खिलाफ आरोप तय होने पर चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया जा सकता है या नहीं। फिलहाल, विधि निर्माताओं पर जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत किसी आपराधिक मामले में दोषसिद्धि के बाद ही चुनाव लड़ने पर पाबंदी है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 28 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख दिया था और यह फैसला आज सुनाया जा सकता है। इससे पहले पीठ ने संकेत दिए थे कि मतदाताओं को उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि जानने का अधिकार है और चुनाव आयोग से राजनीतिक दलों को यह निर्देश देने के लिए कहा जा सकता है कि आरोपों का सामना कर रहे लोग उनके चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़ें।
सांसद, विधायकों के वकालत करने पर पाबंदी पर फैसला
वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट विधि निर्माताओं (सांसद, विधायक) के देशभर की अदालतों में अधिवक्ता के तौर पर वकालत करने पर रोक लगाने की मांग वाली एक याचिका पर भी अपना फैसला मंगलवार को सुना सकता है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने नौ जुलाई को भाजपा नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर उस जनहित याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा था जिसमें विधि निर्माताओं के विधायिका में कार्यकाल के दौरान अदालतों में वकालत करने पर पाबंदी लगाने की मांग की गई है।
पीठ ने केन्द्र की इस दलील पर संज्ञान लिया था कि सांसद या विधायक निर्वाचित जनप्रतिनिधि होता है, सरकार का पूर्णकालिक कर्मचारी नहीं होता और इसलिए याचिका विचार योग्य नहीं है। हालांकि, उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाडे ने अदालत से कहा था कि विधि निर्माता सरकारी खजाने से वेतन प्राप्त करते हैं जबकि बार काउन्सिल ऑफ इंडिया ने वेतनभोगी कर्मचारी के अदालत में वकालत करने पर पाबंदी लगा रखी है।
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