पितृ पक्ष 2018: आईये जानें श्राद्ध से जुड़ी 5 महत्वपूर्ण बातें
लखनऊ: श्रद्धापूर्वक जो किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं। श्रद्धा शब्द में ‘श्रत्' अर्थात् सत्य और ‘धा' यानी धारण करना शामिल है। श्राद्ध का सरलतम अर्थ सत्य को धारण करना है, और जीवन का सबसे बड़ा सत्य ‘यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे' है। तैतरीय उपनिषद् के अनुसार मिट्टी से निर्मित इस शरीर के विविध तत्वों का मृत्यु उपरांत ब्रह्मांड में विलय हो जाता है, पर मोह के धागे नहीं छूटते हैं। मरणोपरान्त भी आत्मा में मोह, माया का अतिरेक होता है और यह प्रेम ही उन्हें पितृ पक्ष में धरती पर वंशजों के पास खींचता है।
1.ऐसी मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष के 15 दिनों में (प्रतिपदा से लेकर अमावस्या) तक यमराज पितरों को मुक्त कर देते हैं और समस्त पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए अपने वंशजों के समीप आते हैं, जिससे उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
2.पितर का अर्थ पितृ या श्रेष्ठजन होता है और बृहदारण्यक उपनिषद् के अनुसार ‘पुत्र' वह है, जो न किए गए कार्यों से अपने पिता की रक्षा करता है। ‘पुत्' का अर्थ पूरा करना है और ‘त्र' का अर्थ रक्षा करना है। इसीलिएपुत्रया पुत्री, जिसे वृहद अर्थों में समझें तो प्रत्येक मनुष्य पर तीन ऋण होते हैं- पितृ ऋण, दैव ऋण और गुरु ऋण। मनुष्य लोक में पिता मृत्यु समय अपना सब कुछ पुत्र या पुत्री को सौंप देते हैं। इसलिए संतान पर पितृ ऋण होता है। हम सभी को श्राद्ध पक्ष एक अवसर देता है कि हम अपने पितरों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकें।
3.श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है। ‘पिंड' एक प्रतीक है, जीवन की शुरुआत का। ‘पिंड' का अर्थ शरीर है, जिसमें समग्र ब्रह्मांड की छवि आलोकित है और उस सत्य की अभिव्यक्ति छान्दोग्य उपनिषद् में वर्णित ‘तत्-त्वम्-असि' शब्दों के द्वारा होती है। इसका अर्थ है कि ‘तुम' में वह ब्रह्म आलोकित है, जैसे नमक जल में विलीन हो जाता है, पर उसका अस्तित्व नष्ट नहीं होता है, वैसे ही ब्रह्म शरीर में व्याप्त है, वह दिखाई नहीं देता है। उसकी अभिव्यक्ति प्राण में है और जीवों की प्रियता ‘प्राण' द्वारा प्रकट होती है। इसलिए जो मन को अति प्रिय होता है, उसके हेतु ‘प्राण-प्रिय' शब्द का प्रयोग किया जाता है।
4.श्राद्ध पक्ष में जल और अन्न से तर्पण करना चाहिए। वस्तुत: पितर सूक्ष्म शरीर हैं अर्थात् ब्रह्म की ज्योति हैं, पर अभी मुक्त नहीं हुए हैंं। उनका प्राण ‘प्रिय' में यानी कि वंशजों में, उत्तराधिकारियों में उलझा हुआ है।
5.श्राद्ध पक्ष में जल का अर्घ्य दिया जाता है। जल से ही विश्व जन्म लेता है, उसके द्वारा सिंचित होता है और फिर उसमें लीन हो जाता है। तर्पण में जल में अन्न मिलाकर अर्पित करने का प्रावधान है, क्योंकि यह शरीर अन्न से अनुप्राणित होता है। भक्ति भाव से पितरों को जब जल और अन्न द्वारा श्राद्ध पक्ष में तर्पण किया जाता है, तब उनकी आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीष कुटुंब को कल्याण के पथ पर ले जाता है।
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