लहू भी बोलता है: आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- डॉ. ज़ैनुल आबदीन अहमद
आईये जानते हैं
आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- डॉ. ज़ैनुल आबदीन अहमद (जेड. अहमद)
डॉ. ज़ैनुल आबदीन अहमद (जेड. अहमद)
जैनुल आबदीन की पैदाइश 29 सितम्बर सन् 1907 को उमरकोट (सिंध) के एक तालीमयाता रईस खानदान में हुई थी। आपके वालिद का नाम ज़ियाउद्दीन अहमद था, जो ब्रिटिश हुकूमत में बड़े ओहदे पर फ़ायज़ थे। आपकी वालिदा का नाम इक़बाल बेगम था, लेकिन उनका इंतक़ाल आपके बचपने में ही हो गया था।
जेड. अहमद ने अपनी शुरुआती तालीम खत्म करके सन् 1923 में अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया और बी.ए. (आनर्स) की डिग्री लेकर सन् 1928 में इंग्लैण्ड गये, जहां लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनामिक्स से एम.ए. फिर डॉक्टरेट की डिग्री लेकर सन् 1936 में हिन्दुस्तान लौट आये। वहां से लौटने के बाद डॉ. अहमद नेशनल मूवमेंट और ट्रेड यूनियन के तंज़ीमी कामों में दिलचस्पी लेने लगे।
इन्हीं दिनों आपको ब्रिटिश हुकूमत की तरफ़ से गवर्नमेंट कॉलेज में प्रिंसिपल के लिए ऑफर मिला, लेकिन आप चूंकि नेशनलिस्ट ख़्याल के थे, इसलिए इस ओहदे को फ़ौरन ठुकरा दिया। जब आप लंदन में थे तो वहां जे़रे-तालीम रहीं बेगम हाजरा से आपकी मुलाक़ात हुई थी और बाद में उन्हीं से आपकी शादी हो गयी।
आप यू.पी. कांग्रेस कमेटी के सेक्रेटरी बनाये गये और इक्नामिक्स अफ़ेयर के लिए एडवाइज़र भी बने। आप कम्युनिस्ट ख्याल के थे, इसलिए आपको कांग्रेस के एक ग्रुप की मुख़ालिफ़त भी झेलनी पड़ती थी। आपको पार्टी से निकालने की भी कोशिशें हुई; लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने ऐसा करने से सख़्ती से मना कर दिया। कांग्रेस के नेशनल मूवमेंट में आप बहुत सरगर्मी से हिस्सा लेते थे। एक मुज़ाहिरे के दौरान डॉ. अहमद और हाजरा बेगम दोनों ही गिरफ्तार कर लिये गये। आप दोनों पर बहुत-सी दफ़ाओं में मुक़दमे चले।
जेल की सज़ा और मुक़दमे के दौरान कांग्रेस के एक ग्रुप ने आपके साथ बेहतर बर्ताव नहीं किया, जिसकी वजह से जेल से छूटने के बाद दोनों लोगों ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। दोनों लोगों ने दोबारा कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली और उस पार्टी में अहम लीडरों में आपकी गिनती होने लगी। आप दोनों ने इसके बाद भी नेशनल मूवमेंट में अपनी दिलचस्पी बरक़रार रखी।
सन् 1958 और 1996 में आप दो बार राज्यसभा के लिए चुने गये। डॉ. अहमद ने राज्यसभा में किसानों और मज़दूरों की भरपूर नुमायंदगी की; साथ ही, पार्लियामेंट के बाहर भी किसानों की परेशानियों के लिए आंदोलन करते रहे और आज़ाद हिन्दुस्तान में भी जेल गये। आप आॅल इण्डिया किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। आपके साथ आपकी बेगम हर आंदोलनों में शामिल रहती थीं। सन् 1999 की 17 जनवरी को आप इस दुनिया को अलविदा कह गये।
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