लहू भी बोलता है: मौलना मिन्नतुल्ला रहमानी - आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार
आईये जानते हैं
आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलना मिन्नतुल्ला रहमानी को......
मौलना मिन्नतुल्ला रहमानी:
मौलाना मिन्नतुल्ला रहमानी पैदाइश सन् 1912 में बिहार में हुई थी। आपने अपनी तालीम पूरी करने के बाद से ही अपनी ज़िन्दगी का पूरा वक़्त जंगे-आज़ादी के कामों में वक्फ कर दिया था। आप मुसलमानों में बड़े पैमाने पर तबलीग़ कर यह बताते थे कि हर मुसलमान का कौमी और इस्लामी फ़रीज़ा है कि वह अपने मादरे-वतन की आज़ादी की लड़ाई लड़े। आपने अपने घर ख़ानकाहे-रहमानिया को जंगे-आज़ादी के ख़ुफ़िया कामों के लिए दे रखा था। कोई भी मुजाहिद अंग्रेज़ी हुकूमत से बचने के लिए या नयी प्लानिंग के लिए ख़ानकाहे रहमानिया का दरवाज़ा हर वक्त खुला रहता था।
उन दिनो नेशनल मूवमेंट के लिए हर नयी स्कीम या मुहिम मौलाना रहमानी की राय-मशवरे के बगै़र अधूरी मानी जाती थी। आपने टोटल इन्डीपेंडेंस की काल के साथ कई जलसे किये, जिसकी वजह से अंग्रेज़ों ने गिरफ्तार कर लिया। छूटकर आये, फिर कुछ दिनों के बाद आप इस इल्ज़ाम में पकड़े गये कि ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ जो भी कागज़ात या मज़मून बनते थे उसकी साजिश मौलाना के ज़रिये और उन्हीं के घर पर होती है, जो कि सच भी था। गिरफ्तारी के वक़्त जो कागज़ात बरामद हुए थे वे रहमानी साहब के ही लिखे हुए थे।
इस बार भी आपको 6 माह की सज़ा हुई। इस बार जब जेल से छूटे तो आपके घर ख़ानकाहे-रहमानिया आकर मिलनेवालों में महात्मा गांधी और मौलाना आज़ाद के अलावा दीगर बड़े लीडरान भी थे। जब बिहार में भूकम्प आया तब आपका घर तो स्वतंत्रता-संग्राम के सेनानियों के लिए रियूजी कैम्प बन गया और बाकी अवाम की ख़िदमत के लिए मौलाना रहमानी की क़यादत में सभी स्वतंत्रता-सेनानी इमदाद के काम में जी-जान से जुट गये।
सन् 1934 के आखिरी दिनों में जब भूकम्प की परेशानी से फुर्सत मिली तब खानक़ाहे-रहमानिया में कांग्रेस के बड़े लीडर आज़ादी को आंदोलन के दोबारा शुरू करने की स्कीम बनाने के लिए इकट्ठा हुए। उनमें महात्मा गांधी, ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार, जवाहरलाल नेहरू जैसे बड़े रहनुमा भी थे।
मौलाना रहमानी जमात-ए-उलमा-ए-हिन्द के नेशनल मूवमेंट में भी अपनी खि़दमात देते रहे। आप सन् 1936 में मुस्लिम इन्डीपेडेन्ट पार्टी की तरफ से चुनाव लड़कर एसेम्बली के मेम्बर हुए। जब आज़ादी के दिन करीब आये तब आपने अपनी खि़दमात सियासत से हटाकर मुस्लिम एजुकेशन और सोशल डेवलपमेंट के लिए देनी शुरू कर दीया और ख़ानकाहे रहमानिया जो कि आंदोलन का सेन्टर था उसे सेन्टर फ़ार इस्लामिक नालेज बना दिया।
जब बिहार में पहली आज़ाद सूबाई सरकार श्रीड्डष्ण सिन्हा की क़यादत में बनी, तब जवाहरलालजी के कहने पर श्रीड्डष्ण सिन्हा मौलाना रहमानी के घर आये और राज्यसभा के लिए दावत दी, लेकिन मौलाना ने इंकार कर दिया और कहा कि मुझे सरज़मीन की आज़ादी तक सियासत में हिस्सा लेना था, जो मैंने लिया। अब मुझे अपनी क़ौम को तालीमयाफ़्ता करना ज़्यादा ज़रूरी है, इसलिए मैं उसी काम में लगा हूं। मौलाना ने कई किताबें भी लिखीं। आपको लोग अमीरे-शरियत कहकर बात करते थे। आपका इन्तक़ाल सन् 1991 में हुआ।
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