लहू बोलता भी है: आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलाना शफ़ी दाऊदी.
आईये जानते हैं,
आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलाना शफ़ी दाऊदी को.............
मौलाना शफ़ी दाऊदी:
मौलाना शफी दाऊदी की पैदाइश 27 अक्टूबर सन् 1875 को दाऊदनगर (मुज़्ज़फपुर; बिहार) में हुई थी। आपके वालिद का नाम मोहम्मद हसन दाऊदी था। आपने मैट्रिक अपने इलाकाई स्कूल से पासकर सन् 1895 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी में हाई एजूकेशन के लिए एडमिशन लिया जहां से बी.ए. के बाद वकालत की डिग्री हासिल की और कलकत्ता में ही वकालत शुरू कर दी।
आप ब्रिटिश हुकूमत के ज़रिये आये दिन होनेवाले नये तरीके के जुल्मों से ज़ेहनी तरीके से परेशान रहा करते थे। सन् 1917 में महात्मा गांधीजी की कलकत्ता के वकीलों के बीच मीटिंग हुई, जहां आप भी मौजूद थे।
आपने मुल्क की आज़ादी के सिलसिले में गांधीजी से कई सवाल किये जिनका जवाब सुनकर आपने फ़ौरन फैसला किया और वकालत छोड़कर इण्डियन नेशनल कांग्रेस ज्वाइन कर ली। सन् 1917-1920 तक के हर आंदोलन में आपकी हिस्सेदारी बढ़-चढ़कर रही।
सन् 1920 के ख़िलाफ़त और नान कापरेटिव मूवमेंट पूरे बिहार प्रदेश में आपकी देख-रेख में हुए जो कि बहुत कामयाब रहे। अक्टूबर सन् 1920 में जब प्रदेश कांग्रेस कमेटी का चुनाव हुआ तो मौलाना दाऊदी सूबे की कांग्रेस कमेटी के सदर चुने गये। आपने गांधीजी की काॅल पर बिहार में कौमी सेवा दल और चरखा समिति बनायी।
आपने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार और खादी का इस्तेमाल करने की मुहिम भी चलायी। इस आंदोलन में आप गिरफ़्तार हुए और दो साल जेल में रहे।
उन्हीं दिनों कांग्रेस से अलग होकर मोतीलाल नेहरू और चितरंजनदास ने कांग्रेस स्वराज पार्टी बनायी। आप भी उन्हीं लोगों के साथ काम करने लगे।
मौलाना दाऊदी सेन्ट्रल लेजिसलेटिव एसेम्बली के मेम्बर चुने गये और सन् 1924 और 1927 में जीते।
सन् 1928 में नेहरू रिपोर्ट आने के बाद आपने स्वराज पार्टी से इस्तीफ़ा देकर जनाब फज़ले हसन साहब के साथ मिलकर आॅल इण्डिया मुस्लिम कांफ्रेंस बनायी। आपने इत्तहाद नाम से एक वीकली अख़बार निकाला, जिसके ज़रिये नेशनल मूवमेंट का प्रचार और प्रसार किया। आप सन् 1928-1935 तक सेन्ट्रल कौंसिल के मेम्बर रहे।
आप सन् 1931 की सेकेन्ड गोलमेज कांफ्रेंस मे मौलाना शौक़त अली के साथ लन्दन गये। बाद में सन् 1937 में मजलिसे अहरार में चले गये और चुनाव लड़े, लेकिन हार गये।
चुनाव हारने के बाद आपने पार्टी की सियासत से अलग होकर अपनी वकालत शुरू करके सोशल और एजुकेशनल कामों में वक़्त देने लगे, लेकिन बंटवारे के फैसले के वक़्त आपने मुसलमानों को पाकिस्तान न जाने-देने की भरपूर कोशिशें कीं जिनमें कुछ कामयाबी भी मिली, लेकिन मुल्क बंटने का मौलाना दाऊदी पर बहुत सदमा हुआ। आप 1 जनवरी सन् 1949 को इंतक़ाल कर गये।
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