अंधविष्वासों का जाल तोडो: रघु ठाकुर
नयी दिल्ली: बढ़ रहे अंधविश्वास पर विख्यात समाजवादी चिंतक व विचारक तथा लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- रघुः ठाकुर के लेख को जनहित में उन्ही के शब्दों में प्रस्तुत किया जा रहा है.
18 वीं सदी के आरंभ से यूरोप में वैज्ञानिक सोच की ओर समाज बढ़ा था और उसके प्रभाव से भारत जैसे देष भी प्रभावित हुये थे। न केवल विचारो के क्षेत्र में बल्कि तकनीक और परंपरागत, विष्वासो के क्षेत्र में भी कई महत्वपूर्ण बदलाव इस सदी के बाद भारत व दुनिया में हुये। 21 वी सदी को भारत में उन्नत तकनीक के विकास की सदी के रुप में षुरुआत हुई यह देष ने न केवल उपभोक्ता क्षेत्र में साथ ही विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अपने कदम तेजी से बढ़ाये है।
परन्तु दूसरी तरफ देष में ऐसी घटनाये भी सामने आ रही है जो अवैज्ञानिकता और अंधविष्वास पर टिकी है। म.प्र. की विधानसभा का नया भवन जो राजधानी भोपाल में पहाड़ी पर बना है को भी सरकार और जनप्रतिनिधियो ने कई बार अषुभ घोषित कर दिया। क्यांेकि कई निर्वाचित विधायको की मृत्यु हो गई थी। यहाॅ तक की विधानसभा में अनेको जनप्रतिनिधियो ने विधायको की मौत का उल्लेख करते हुये कहा कि इस भवन का वास्तु परीक्षण कराना चाहिये क्योंकि इसमें वास्तुदोष है।
पिछले कुछ दिनों में ऐसी बहुत सी घटनायें मीडिया के माध्यम से जानकारी में आई है जिनमें अंधविष्वास और अवैज्ञानिकता परिलक्षित होती है। दिल्ली में बुराड़ी में एक ही परिवार के 11 लोगो के द्वारा फांसी पर लटक कर आत्महत्या करना ये ऐसी ही घटना है। मीडिया के कुछ समाचारो के अनुसार इन सब लोगो ने भगवान से मिलने के लिये यह कदम उठाया था। यह घटना सामान्य नही मानी जा सकती, क्योकि इतना गहरा अंधविष्वास आखिर कैसे पनप रहा है। मैं नही जानता कि ये 11 लोग कहाॅ पहॅुचे होगे उनकी इच्छा के अनुकूल स्वर्ग में पहॅुचे होगे और भगवान से उनकी मुलाकात हुई होगी ?
परन्तु उनकी अतार्किक आस्थायें इतनी गहरी रही है कि उन्होंने ऐसा कदम उठाया। ऐसा नही है कि समूचा देष व दुनिया ही इस रास्ते पर बढ़ रही है बल्कि कई बार ऐसी भी खबरें मिलती है जो, वैज्ञानिक सोच के प्रति आषान्वित करती है। फिलीपींस के राष्ट्रपति दुतन्र्तो ने हाल ही में विज्ञान और तर्क को रेखांकित किया है। और कहा कि ’’अगर लोग भगवान के साथ सेल्फी खिंचवा कर लाये तो में मान लूंगा की भगवान है।’’
विज्ञान का अर्थ यही है कि ’’जाॅचो, परखो, जानो और मानो’’ इस विज्ञान आधारित सोच की पहल तो भारत में बुद्व ने षुरु कर दी थी जब उन्होंने अपने षिष्यों को संदेष दिया कि ’’जब तक किसी बात को जान न लो तब तक नही मानों’’ उन्होंने कहा कि मेरा कहना भी तभी मानेा जब उससे सहमत हो जाओ। बुद्व का यह दर्षन वैज्ञानिक था। जिसने भगवान के लिये गढे़ किस्से कहानियो और मूर्ति पूजा से मुक्त कराया था। षायद यही कारण भी था कि बुद्व के काल में समूचे भारतीय भूभाग व एषिया मंे बुद्व का फैलाव हुआ था।
पूर्व में चीन,वर्मा से लेकर दक्षिण में लंका तक हिमालय की तराई से लेकर पष्चिम में अफगानिस्तान तक बुद्व का फैलाव और स्वीकार्यता थी। अभी हाल में पाकिस्तान के क्यूरेटर फैजुर रहमान जिन्होंने पाकिस्तान में स्वात घाटी के पहाड़ों में उकेरी गयी बुद्व की प्रतिमाओं के पुनःनिर्माण का कार्य कराया है क्योंकि अफगानिस्तानी के तालिबानियो ने उन्हें विस्फोट कर क्षति ग्रस्त किया था।
उन्होंने मिंगोरा संग्रहालय को भी तैयार किया है और उसमें बुद्व की प्रतिमायें रखी है फैज-उर-रहमान जो क्यूरेटर है व पाकिस्तानी मुसलमान है ने एक महत्वपूर्ण बात कही, कि इस संग्रहालय में बुद्विस्ट मुल्लाओं का स्वागत् है। बुद्व की प्रतिमाएं 1400 वर्ष के पूर्व उकेरी गई थी। यानि उन्होंने साहस के साथ पाकिस्तान में रहते हुये कहा कि इस्लाम के आगमन के पूर्व यह सारा भू-भाग बुद्व धर्म का अनुयायी ही था। उनके षब्दों में ’’बुद्व धर्म जो इस्लाम से आगमन के पहले हम सबका धर्म था’’ बुद्व की मूतियाॅ बुद्विस्टो ने उनकी मृत्यु के बाद बनाई। हालाकि बुद्व ने कभी मूर्ति पूजा का समर्थन नही किया। बुद्व ने जाति वर्ण के भेद को अस्वीकार किया था और इंसान को बराबर रुप में देखा। फैज उर रहमान की साहसिक प्रतिक्रिया के दो पहलू है एक तो उन्होंने मुस्लिम भाइयो को संदेष दिया है कि जब तक इस भू-भाग में बुद्व धर्म प्रभावी था तब तक इंसान की बराबरी के लिये लोगो को इस्लाम की कल्पना की आवष्यकता नही पड़ी। जब बुद्व के दर्षन को हटाकर फिर से जातिवादी समाज का उदय हुआ उसके बाद इस्लाम का उदय हुआ। उनके कथन ने भारत के उन कट्टरपंथियों को भी संदेष दिया है जो वर्ण के नाम पर जाति प्रथा को और जन्मना भेदभाव को कायम रखना चाहते है जो मूर्ति पूजा के नाम से पंडो का व्यवसाय कायम रखना चाहते है। कि अगर इंसान-इंसान को बराबर नही सकझेगे तो तुम्हारा धर्म के नाम का धंधा चलने वाला नही है।
अंधविष्वास को भारत में फैलाने में सत्ताधीषों का योगदान कम नही है। इस वर्ष अभी तक बरसात अपर्याप्त है और बड़े इलाके में सूखा है। आजादी के बाद के 70 वर्षों में सूखे का कोई स्थायी हल नही खोजा गया है अब लोगो को विष्वास भी नही है। इसलिये अब इस 21 वी सदी में लोग अंधविष्वास की ओर वापिस जा रहे है। बारिष के लिये सरकार की उपस्थिति में मंत्री मेंढ़क-मंेढ़की की षादी करा रहे है और कही महिलाये नग्न होकर खेतो में हल चला रही है ताकि पानी बरसे। इस अंधविष्वास की कहानी से तो हमारे देवताओं के आचरण पर भी प्रष्न चिन्ह लगता है ?
अब अगर इस किवदंती को भी अतीत की गौरव गाथाओं के समान सही मान लिया जाये तो यह इन्द्र का कैसा रुप प्रस्तुत करेगी? चूॅकि आम आदमी अमूमन सत्ता के चाल चलन से प्रभाहित होता है। अतः वह सत्ताधीषो के आचरण का अनुकरण करता है। अभी हाल में रायपुर में छ.ग. सरकार के एक मंत्री एक तांत्रिक बाबा को लेकर विधानसभा के भवन पहॅुचे। मंत्री के साथ उनके फोटो न केवल छ.ग. के बल्कि देश के मीडिया में प्रमुखता से प्रकाशित हुये।
बाबा कहते है कि ’’रमनसिंह की सरकार फिर बनेगी मैंने विधानसभा को बांध दिया है। यानि अब चुनाव की जीत-हार का फैसला और सरकारो का गठन जनता के वोट से नही होगा, बल्कि तांत्रिको के तंत्र,मंत्र से होगा। यह जनमत का अपमान है और घोर अवैज्ञानिकता और अंधविष्वास का पर्याय है। इस घटना पर सत्ता पक्ष से दिल्ली से लेकर रायपुर तक कड़ी प्रतिक्रिया सुनने को नही मिली और मिलने की उम्मीद भी नही है।
क्योंकि जब सरकारे स्वतः जनता को अन्धविश्वाश की खाई में डुबोकर बनती हो तो इस खाई की खिलाफत कौन करेगा। यह अंधविष्वास वर्तमान सत्ताधीषों में ही नही है बल्कि सत्ता प्रतिपक्ष के व नेताओं में कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में (भाजपा और कांग्रेस में) इस बात की होड़ थी कि किस पार्टी के प्रमुखों ने कितने मठों के आर्षीवाद प्राप्त किये। गुजरात चुनाव में भी यह खबर महत्वपूर्ण थी कि प्रधानमंत्री ने किस मंदिर से पूजा कर और कांग्रेस अध्यक्ष ने किस मंदिर से पूजा कर चुनाव प्रचार षुरु किया था। म.प्र. के मुख्यमंत्री ने अभी हाल में 14 जुलाई 2018 से उज्जैन से जनआर्षीवाद यात्रा षुरु की है इस यात्रा के लिये भोपाल से जो रथ रवाना हुआ उसकी पूजा करते हुये उसके फोटो सभी समाचार पत्रो में छपे है।
उज्जैन में भी उनकी चुनावी यात्रा महाकाल मंदिर मंे पूजा अर्चना से षुरु हुई थी। इसके प्रति उत्तर में म.प्र. कांगे्रस के अध्यक्ष ने महाकाल के नाम पत्र भेजा है और महाकाल से प्रार्थना की है कि वे षिवराज सरकार के कुषासन से मुक्ति दिलाये और उनके धोखे और कर्माे के फल का दण्ड दें। यानि अब प्रदेष के चुनाव का फैसला जनमत को नही बल्कि महाकाल को करना है क्या मुुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष दोनो के काम अवैज्ञानिक नही है? और क्या ये आम लोगो को अवैज्ञानिकता की ओर नही ढकेल रहे?
इस प्रकार की अवैज्ञानिक सोच की घटनायें निंरतर बढ़ रही है। गांव में झांड, फंूक,टोना, टोटका भूत भगाना कई दरगाहओं पर मन्नत माॅगना ऐसी घटनायें जिन्हें हम रोज अखबार की सुर्खियों में पढ़ते है। कई बार ऐसा लगता है कि कहीं हम मानसिक सोच में समय व तकनीक में आगे बढ़ने के बावजूद पीछे की सदियो की और वापिस तो नही जा रहे? यह अवैज्ञानिकता अब विषेषतः गरीबी और अषिक्षित समाज में मनोरोग का रुप ले रही है। राज्य सत्ताओं से समस्याओं का निदान न होने और राजनीति के प्रति अविष्वास ने अंधविष्वासो को और बढ़ा दिया है।
अगर देश में पर्याप्त मनोरोग अस्पताल और चिकित्सक होते तो कमजोर, अशिक्षित लोग भी झांड, फूंक की ओर नही जाते। यह लोगो की अज्ञानता है साथ-साथ आर्थिक व्यवस्था की लाचारी है। मेरे एक मित्र श्री सुभाष षर्मा का बेटा अमेरिका में है। उसने हमसे कहा कि अमेरिका में चर्च और धर्म का प्रभाव तथा धर्म को मानने वालो की संख्या निरंतर घट रही है क्योंकि वहाॅ जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी जिम्मेदारियाॅ सरकार पूरी करती है और ये सुविधाये भारत के समान विषमताओं के आधार पर नही बल्कि समानताओं के आधार पर दी जाती है।
इसलिये वहाॅ भगवान की विषेष जरुरत नही है इस कथन से मुझे लगता है कि कही भारत में राज्य सत्ताओं व सत्ताधीषों सत्ताकांक्षियों का सोचा समझा खेल तो नही है कि लोगो को अभाव में रखो ताकि लोग अंधविष्वास की ओर जाये और चुनाव जीतने के लिये किसी काम के आधार पर नही बल्कि अंधविष्वास के नाम पर मतदान करें।
पिछले कुछ समय से भारत सरकार के कुछ मंत्रियो और बड़े नामधारी नेताओं में अतीत के गौरव गुणगान की होड़ मची है। श्री सत्यपाल सिंह अैार देष के मानव संसाधन मंत्री ने ऐसे कई बयान दिये है जो अतीत में भारत को सबसे ज्यादा विज्ञान, तकनीक और उन्नत देष बताने वाले है।
उनके ऐसे भाषणो बयानो से आम लोगो को खुषी और गौरव महसूस होता है श्री सत्यपाल सिंह ने कहा ’’गुरुत्वाकर्षण की खोज भारत में न्यूटन से पहले हो गई थी हांलाकि अब न्यूटन का सेब का पेड़ भारत लाया जा रहा है हमारे मंत्रो और शास्त्रों में विज्ञान के सारे सूत्र है। पुष्पक विमान और युद्व में षक्तियो के प्रयोग के किस्से यह सिद्व करते है कि भारत में हवाई जहाज और टारगेट मिसाइल की खोज पहले हुई थी। मेरी इस पर कोई बहस नही है, कि भारत अपने अतीत में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में इतना उन्नत था कि नही। मैं अतीत को सम्पूर्णतः नकारने के पचड़े में नही पड़ना चाहता और न ही इसका पक्षधर हॅू, परन्तु अतीत के उन्नत भारत की गाथाओं के वाचक इन मित्रो से यह जरुर कहना चाहता हॅू कि वे उन कारणो की भी खोज करे कि किन कारणो से इतनी उन्नत सभ्यता अज्ञानता के गत्ते में खो गई। और हमें विदेषो से विमान, मिसाईल आदि आयात करना पड़े। हम अतीत में महान थे, यह गौरव आत्म विष्वास पैदा करता है परन्तु गति को भी स्थिर करता है। हम गतिमान बनें यह आज की आवष्यकता है। न केवल विज्ञान के षोध, और तकनीक के विकास में बल्कि मानसिक सोच में भी।
रघु ठाकुर
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