सैय्यद शाह मोहम्मद उज़ैर- आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार
लहू बोलता भी है:
आईये जानते हैं "सैय्यद शाह मोहम्मद उज़ैर- आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार" को.....
सैय्यद शाह मोहम्मद उज़ैर
बिहार के फुलवारी शरीफ़ के एक ज़मींदार खानदान में पैदा हुए मोहम्मद उजैर के वालिद का नाम सैय्यद अब्दुल अज़ीज था जो डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। उज़ैर साहब की शुरुआती तालीम आपके दादा के तामीर कराये गये हिन्दुस्तानी मीडिल स्कूल (फुलवारी) से शुरू हुई और आगे की तालीम आपने बी.एन. कालेज से ली, लेकिन जब आप ग्रेजुएशन में थे तभी सन् 1920-21 में नान काओपरेशन मूवमेंट शुरू हुआ और आप कालेज छोड़कर मूवमेंट में शामिल हो गये। उसके बाद आपने बिहार विद्यापीठ (जिसे महान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना मज़हरूल हक़ ने तामीर कराया था) से ग्रेजुएशन पूरा किया।
इस विद्यापीठ में हिन्दुस्तानी कल्चर में पढ़ाई होती थी और यह भी आंदोलन का एक हिस्सा था। बाद में सैय्यद शाह मोहम्मद उज़ैर सन् 1926 से 1930 तक इसी बिहार विद्यापीठ में उर्दू व फारसी के प्रोफ़ेसर भी रहे।
सन् 1930 में ही आप महात्मा गांधी, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, मौलाना आज़ाद व मौलाना मज़हरूल हक़ के साथ बिहार शरीफ़ गए और अपनी ज़मीन पर नेशनल स्कूल खोला जिसकी संगे-बुनियाद गांधीजी ने रखी और जब यह स्कूल बन गया तो इसका उद्घाटन मौलाना आज़ाद ने किया।
कुछ दिनों तक मौलाना आज़ाद ने इस स्कूल में खुद पढ़ाया भी। सन् 1932 से 1942 तक बिहार कांग्रेस कमेटी का जनरल-सेक्रेटरी रहते हुए आपने कांग्रेस के आंदोलन में दो बार जेल का सफ़र भी किया। सन् 1939 में आपकी शादी स्वतंत्रता-सेनानी शाह मूसा शाह की बेटी हुस्ना ख़ातून से हुई। आपने पटना शहर की अपनी कीमती ज़मीन और कोठी कांग्रेस कमेटी को दान में दी थी, जिस पर बिहार कांग्रेस कमेटी का दफ्तर बना जो कि अब तक कदमकुआं (पटना) में है।
सन् 1942 में महात्मा गांधी के साथ एक सत्याग्रह के दौरान आप गिरफ्तार हुए और गांधीजी के साथ ही जेल गये। उसके बाद सन् 1942 में खान अब्दुल गफ़्फ़ार खान और डा. राजेन्द्र प्रसाद के साथ आप हज़ारीबाग की जेल में भी रहे।
सन् 1946 में आप बिहार विधान परिषद के मेम्बर चुने गये। आज़ादी के बाद हुए चुनाव में आप सन् 1949 में बिहार विधान परिषद के लिए दोबारा सदस्य चुने गये और डिप्टी स्पीकर भी बने।
सन् 1952 से 1961 तक आप तीन सरकारों में लगातार मंत्री भी रहे। जनाब सैय्यद शाह मोहम्मद उजै़र को लोग मुनेमी नाम से भी जानते थे। आप हमेशा क़ौमी ख़्याल के रहे। उजै़र साहब का इंतक़ाल अक्टूबर सन् 1961 में पटना में ही हुआ।
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