लहू बोलता भी है: मौलाना शौक़त अली- आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार
आइये जानते हैं, आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलाना शौक़त अली को......
मौलाना शौक़त अली की पैदाइश 10 मार्च सन् 1873 को बिजनौर ज़िले के नजीबाबाद में हुई थी। आपके वालिद अब्दुल अली खान और वालिदा आब्दी बानो बेगम थीं। शौक़त की वालिदा भी जंगे-आज़ादी की एक अहम शख़्सियत थीं। लोग उन्हें बी. अम्मा के नाम से भी जानते थे।
सन् 1880 में जब शौकत की उम्र महज़ 7 साल थी, तभी उनके वालिद साहब का इंतक़ाल हो गया। आपने शुरुआती तालीम नजीबाबाद से ही हासिल करके आला तालीम के लिए अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। यूनिवर्सिटी में आप एक अच्छे स्पोर्टमैन और स्टूडेंट-यूनियन के बाअसर मोक़र्रिर की हैसियत से मक़बूल थे। आप यूनिवर्सिटी की मैग़ज़ीन के एडिटर भी रहे। आपने सन् 1895 में बी.ए. की परीक्षा पास की और गर्वनमेंट-सर्विस करने लगे। 17 साल तक नौकरी करने के बाद आपने इस्तीफा दे दिया। आपने अपने सोशल कन्टैक्ट पर अलीगढ़ कालेज के लिए फण्ड इकट्ठा किया और कालेज को आगे बढ़ाने में अपना वक़्त देने लगे।
आपने सन् 1913 में काबा वालेंटियर एसोसिएशन बनायी, जिसका मक़सद हज पर जाने वालों की मदद करना था क्योंकि उस दौरान ब्रिटिश नौकरशाहों की तंगनज़री की वजह से हज पर जानेवालों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इस बाबत आप अख़बारों में मज़मून लिखने लगे।
आपने इंग्लिश वीकली अख़बार कामरेड में एडिटर का भी काम किया। इसके अलावा आपके भाई मौलाना मोहम्मद अली उर्दू डेली अख़बार हमदर्द में एडिटर थे, उसमें भी मज़मून लिखकर आप ब्रिटिश हुकूमत की कारगुज़ारियों का पर्दाफाश करने लगे।
ब्रिटिश हुकूमत ने 15 मई सन् 1915 को हुकूमत के ख़िलाफ लिखने के जुर्म में दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर लिया और उनकी जायदाद ज़ब्त कर ली।
दोनों भाइयों को कैद की सज़ा सुनायी गयी। सज़ा के दौरान जेल में महात्मा गांधी उनसे मिलने आये और आप लोगों के ख़्यालात व ज़ज्बात देखकर बहुत असरअंदाज़ हुए।
दोनों भाई दिसम्बर सन् 1919 में जेल से रिहा हुए। जेल से छूटते ही वे कांग्रेस ज्वाइन करके महात्मा गांधी के साथ पूरा हिन्दुस्तान घूमकर नान काआपरेटिव मूवमेंट और ख़िलाफ़त मूवमेंट के कामों में लग गये। सन् 1921 में नान काआपरेटिव मूवमेंट के दौरान आप फिर गिरफ्तार कर लिये गये।
आप जवाहरलाल नेहरू की राय से सहमत नहीं थे, इसलिए नेहरू कमेटी की रिपोर्ट की मुख़ालिफ़त में इण्डियन नेशनल कांग्रेस से अलग होकर सन् 1929 में आपने देहली में एक आॅल पार्टी मीटिंग बुलायी, इस दौरान आपकी मुस्लिम लीग के लोगों से नज़दीकियां बढ़ीं।
आपने मुस्लिम मसायल और खि़लाफ़त के मसले पर सन् 1932 में यरूशलम में एक वल्र्ड मुस्लिम कांफ्रेंस बुलायी। आपने मुस्लिम वेलफ़ेयर के लिए ख़िलाफ़ते-उस्मानिया नाम से एक मैग़ज़ीन निकाली। सन् 1936 में आप सेंट्रल लेजिसलेटिव एसेम्बली के लिए मेम्बर चुने गए।
आप अंग्रेज़ों से किसी भी तरह के समझौतों के खि़लाफ थे। आपका इंतक़ाल 26 नवम्बर सन् 1938 को हुआ।
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