लहू बोलता भी है: आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मोहम्मद याकूब हसन सेठ
आईये, जानते हैं,
आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मोहम्मद याकूब हसन सेठ जी को ......
मोहम्मद याकूब हसन सेठ नागपुर के एक बड़े कारोबारी के घर में जून सन् 1875 में पैदा हुए मोहम्मद याकूब हसन ने शुरुआती पढ़ाई के बाद अलीगढ़ मोहमडन ऐंग्लो ओरियंटल काॅलेज से आला तालीम हासिल की और अपने कारोबार में लग गये।
कारोबार को और बढ़ाने की गरज से आप पहले बंगलौर, बाद में मद्रास गये जहां की बाशिंदगी अख़्तियार कर ली। व्यापार के बाद जो वक़्त मिलता उसमें आप समाजी और तालीमी कामों को बढ़ावा देने में दिलचस्पी रखते थे। मिज़ाज से अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ थे।
सामाजिक कामों ने आपको इतनी मक़बूलियत दी कि आप मद्रास म्युनिस्पिल काॅरर्पोरेशन के मेम्बर चुने गये। बाद में सन् 1906 में आप मुस्लिम लीग से जुड़ गये आप मद्रास के मुस्लिम लीग के सदर भी रहे। इसके अलावा साउथ इण्डिया में मुस्लिम लीग के तंज़ीमी कामों को फैलाने में भी आपका अहम रोल रहा।
जनाब याकूब सेठ ने अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ मुस्लिम पेट्रीयाट और कौमी हलचल नाम से दो हफ्तरोजा मैग़़ज़ीन निकालकर क़ौमी आंदोलन के लिए ज़ोरदार प्रचार किया, जिसके इल्ज़ाम में आपको गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया गया। जेल से भी आपने लिखने-पढ़ने का काम जारी रखा। अखबारों में मज़मून के ज़रिये आप ब्रिटिश हुकूमत की भेदभाव व मुलाज़िमत नहीं देने की शिकायतें मंज़रे-आम पर लाये और जेल से छूटने के बाद एक जलसा करके अंग्रेज़ी-सरकार में सरकारी नौकरियों व फ़ौज में अच्छे ओहदों पर मुसलमानों की भर्ती न किये जाने की शिकायत की।
इस जलसे की कामयाबी की ख़बर जब गांधीजी को हुई तो वह सन् 1915 में मद्रास आकर याकूब सेठ से मिले। गांधीजी की मुलाक़ात के बाद सेठ साहब मुस्लिम लीग छोड़कर गांधीजी के साथ इण्डियन नेशनल कांग्रेस के मेम्बर बने। फिर तो साउथ इण्डिया में जहां कहीं भी गांधीजी का कार्यक्रम लगता, वह सेठ साहब को साथ लेकर जाते थे। सन् 1919 के खि़लाफ़त और असहयोग आंदोलन में भी आप बहुत असरअंदाज रहे ओर जेल भी गए।
लखनऊ पैक्ट के लिए कांग्रेस और लीग के नेताओं को राज़ी करने में आपने बड़ी मेहनत की- नतीजे में दोनों ने मिलकर रिज़्ाूलूशन पास किया। आप ख़िलाफ़त डेलीगेशन के साथ लंदन गये। सन् 1921 में मालाबार में वहां के मुसलमानों ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त आंदोलन किया, जिसे दबाने के लिए अंग्रेज़-अफ़सरों ने हिन्दू ज़मींदारों को लालच देकर मुसलमानों से लड़वा दिया। इसकी वजह से कम्युनल झगड़ा हो गया। सेठ ने ही दोनों तबक़ों के बीच आपसी भाईचारा क़ायम कराने के लिए बहुत मेहनत की और कामयाब भी रहे, लेकिन अंग्रेज़ी हुकूमत ने दंगा कराने के इल्ज़ाम में आपको गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। आपको पहले 6 माह की क़ैद की सज़ा हुई- मगर जैसे ही छूटकर आये, फिर गिरफ्तारी हो गयी और 2 साल क़ैद की सज़ा हुई।
आप सन् 1929 में मद्रास विधान परिषद के लिए चुने गये। बाद में आप मद्रास की चित्तूर सीट से जीतकर राजगोपालाचारी की वज़ारत में सन् 1937 से 1939 तक मंत्री भी रहे। सेठ साहब मुल्क के बंटवारे के ज़बरदस्त खिलाफ़ थे। 23 मार्च सन् 1940 को आपका इंतक़ाल हुआ।
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