वालमार्ट का एक और शिकार
>लूट का कोई मजहब नही होता बल्कि मजहब तो उनके लिये लूटने का सहयोगी खंजर जैसा बन जाता है इससे देश को बचना होगा.
>देश के 2-3 करोड़ फुटकर दुकानदारो पर यह खतरा बालमार्ट के रुप में सामने आया है। देश के 13-14 करोड़ मध्यवर्गीय उपभोक्ता क्रमशः बालमार्ट की तरफ आज या कल देर सबेर आकर्षित होगे।
__ रघु ठाकुर
नयी दिल्ली: महान समाजवादी चिंतक व विचारक और लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रिय संरक्षक- रघु ठाकुर ने "वालमार्ट का एक और शिकार" शीर्षक से अपने लेख में लिखा है कि,
वालमार्ट ने फ्लिपकार्ट कम्पनी को लगभग 1 लाख करोड़ रुपये में खरीद लिया है। फ्लिपकार्ट दुनिया की चैथे नम्बर की बड़ी रिटेल कम्पनी (बड़ी फुटकर व्यापार की कम्पनी) थी और जिसे बनाने में भारतीय लोगो का बड़ा योगदान था। इसकी शुरुआत भी हुई थी भारतीय पूँजी से ।
भारत के बंसल बन्धुओं ने इसे शुरू किया था तथा इसका विस्तार देश और दुनिया में हुआ था। अभी तक फ्लिपकार्ट की शाख पर कोई धब्बा नही लगा था तथा भारत में भी फ्लिपकार्ट के माध्यम से खरीद करने वाले ग्राहको का एक बड़ा समूह तैयार हो गया था।
इसलिये फ्लिपकार्ट को उसके मालिको ने क्यों बेचा यह गम्भीर विषय है।
इसकी सटीक जानकारी अभी तक देश में नही आई।
वालमार्ट दुनिया के फुटकर व्यापार की लगभग सबसे बड़ी कम्पनी है। जिसका सालाना बजट कई देशों के बजट से भी ज्यादा है।
यद्यपि भारत में उसके मुष्किल से 50 विक्रय केन्द्र है जो बड़े-बड़े षहरों में संचालित है और फ्लिपकार्ट को खरीदने के बाद अब उनकी योजना आगामी एक वर्ष में 50 केन्द्र और बढ़ाने की है।
वैसे तो एक सौ तीस करोड़ की आबादी में 50 केन्द्र बहुत मायने नही रखते क्योकि अगर केन्द्रो की संख्या के हिसाब से देखा जाये तो यह व मुश्किल दो करोड़ की महानगरो और बड़े शहरों की आबादी तक ही पहॅुच पायेगे परन्तु फ्लिपकार्ट को खरीदने के बाद जो दूसरे खतरे पैदा हुये है:-
1. आनलाईन ट्रेडिंग का दायरा और ग्राहक संख्या तेजी से बढ़ेगे, फ्लिपकार्ट, आटा, चावल, तक भी बेचती थी।
2. वालमार्ट ने दुनिया की कई वैश्विक आन लाइन ट्रेडिंग कम्पनियों को खरीदा है और एक प्रकार से बिक्री को बाध्य किया है। कारपोरेट युद्व में वालमार्ट पूँजी , प्रचार और तकनीक तीनों में बहुत समर्थ है तथा अब इस कारपोरेट ट्रेडिंग का पूँजी व प्रचार का हमला भारत में उपभोक्ताओं पर होगा यह गंभीर आशंका है।
चूँकि इन वैश्विक फुटकर व्यापारी कम्पनियों के पास प्रचार की भारी क्षमता है और अपने प्रतिद्वंदियो को गिराने के लिये घाटा उठाने की भी बड़ी क्षमता है।
अगर साल छः माह घाटे का व्यापार करने के बाद भी एक बड़ा ग्राहक वर्ग तैयार हो जाये और सामने की प्रतियोगी संस्थाये मैदान छोड़कर भागने को लाचार हो जाये तो इस घाटे की पूर्ति करने में वालमार्ट को एक माह का समय भी नही लगेगा।
भारत में अभी तक आनलाईन खरीददारी करने वाले ग्राहको की संख्या लाखो में ही है। परन्तु अब एक तरफ फ्लिपकार्ट के आनलाईन ग्राहक जिनकी संख्या 6-7 लाख के आस पास है वालमार्ट को मिल जायेगे और फुटकर सामान विशेषतः प्राथमिक तौर पर तकनीक व सुविधा के सामान दुनिया के सौन्दर्य प्रसाधन और लग्जरी आइटम में फुटकर विक्रेताओं को वालमार्ट कुछ ही समय में लील जायेगा।
पिछले एक दसक में सुन्दर दिखने की इच्छा जिसे विदेशी सामानो और उसके प्रचारतंत्र ने बहुत बलवती बना दिया है के चलते सौन्दर्य प्रसाधन तथा ब्यूटी पार्लर्स की संख्या बड़ी हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार इस समय देश में लगभग 4-5 लाख ब्यूटी पार्लर चल रहे है जिनमें मौटे तौर पर 30-40 लाख लड़के लड़कियाॅ काम कर रहे है।
वैष्वीकरण के दौर ने एक तरफ एक बड़ा नया धनाड्य तबका तैयार किया है और दूसरी तरफ इस तबके के लोगो को भोग और दिखावे का नसेड़ी बना दिया है।
बड़े षहरों में तो उच्च मध्यम वर्गीय परिवारो की महिलाओं के एक बार ब्यूटी पार्लर में जाकर सजने का औसत खर्च 25 हजार से लेकर 1 लाख तक पहॅुच गया है।
पाॅच सितारा और सात सितारा होटलो में यह और भी ज्यादा है। तथा सौन्दर्य प्रसाधन के केन्द्र अब सुन्दर दिखने के साथ-साथ चमड़ी को नर्म बनाने-मशीनी मालिश और नाखून रंगने से लेकर बाल रगने तक याने पूरे शरीर में नख से शिख तक प्रवेश कर चुके है।
सौन्दर्य प्रसाधनो का देश में बाजार अब साल में 4-5 लाख करोड़ रुपये का हो गया है जो दुल्हा या दुल्हन की त्वचा को साफ नर्म और चमकदार बनाने का काम हमारे प्रचीन समाज में पांच रुपये की हल्दी तेल में हो जाता था, अब दूल्हा और दुल्हन बड़े षहरो में तो औसतन 25-50 हजार रुपये इस पर खर्च कर रहे है।
सुन्दर बनने और दिखने की होड़ दावानल के समान अब जिले और तहसील तक पहॅुच चुकी है। तथा गाॅव की और बढ़ रही है। जंगल की आग को तो निंयत्रित करना सम्भव है परन्तु इस मन की आग को बुझाना सम्भव नही लगता।
वैसे भी मनोविकारो को थामने का काम अब धर्म समाज या राजनीति ने छोड़ ही दिया है।
अब तो हालात यह है कि चुनाव लड़ने वाले कई राजनेता कथाये करने वाले कई कथा वाचक अपने ड्रेस तथा लुक को प्रभावी दिखाने के लिये काफी पैसा खर्च करते है।
तकनीक और उपभोक्ता तथा विलासी सामान को आज दुनिया के सम्पन्न देशों की कम्पनियाॅ तैयार कर रही है।
वालमार्ट अपनी सहयोगी कम्पनियों या अन्य कम्पनियों से इन समानों की थोक खरीद करता है और इसलिये उन्हें यह सामान लगभग आधे दामो पर मिल जाता है।
अगर इनके द्वारा मोबाईल बनाने वाली सेमसंग या किसी अन्य कम्पनी से एक मुश्त एक करोड़ मोबाईल फोन खरीदे जायें तो कोई भी कम्पनी हॅसकर उन्हें 20 हजार की मशीन 10 हजार में दे सकती है क्योंकि इसके बावजूद भी उसे एक करोड़ मोबाइल फोन पर आसानी से 3-4 हजार करोड़ का मुनाफा हो जायेगा तथा वह 20 हजार रुपये का मोबाईल अगर वालमार्ट आनलाइन 15 हजार में बेचेगा तो स्वाभाविक है कि ग्राहक उस ओर भागेगा। क्योंकि उसे पांच हजार रुपये कम में वह मोबाईल मिलेगा।
जाहिर है कि इस प्रक्रिया से जो देश के मोबाइल सेन्टर सभी जिले और तहसीलो तक पहुॅचे हुये है उनमें ताले डल जायेगे तथा वालमार्ट को टेक्स की मात्रा भी कम होगी।
जी.एस.टी कीमत के आधार पर लगता है। अगर 20 हजार का समान 15 हजार में बिके तो जी.एस.टी कम हो जाऐगी। इसलिये भी ग्राहक को आनलाइन खरीदना ज्यादा लाभदायक होगा। फिर आज शहरों में भीड़ है। यातायात व पार्किंग की समस्याये दिन व दिन बढ़ती जा रही है। शहरों में तो पार्किग की इतनी भारी समस्या हो गई है कि एक तरफ पार्किग षुल्क देना कठिन हो गया है दूसरी तरफ पार्किग के लिये कही-कही आधा किलोमीटर तक पार्किग के बाद पैदल जाना होता है। जेब कतरो से लेकर छीना झपटी तक के अन्य खतरे अलग है।
आनलाइन खरीद दारी में घर बैठकर ही खरीददारी हो जायेगी न पार्किग न भीड़ न चलना होगा न छीना झपटी होगी। न पार्किग शुल्क देना होगा और इसलिये अब देश में आनलाइन खरीददारी तथा होम डिलेवरी याने ’’घर पहॅुचाओ’’ सामान की बिक्री का चलन बढ़ना स्वाभविक है।
इसलिये देश के 2-3 करोड़ फुटकर दुकानदारो पर यह खतरा बालमार्ट के रुप में सामने आया है। देश के 13-14 करोड़ मध्यवर्गीय उपभोक्ता क्रमशः बालमार्ट की तरफ आज या कल देर सबेर आकर्षित होगे।
स्वदेशी और राष्ट्रवाद के नारो मात्र से अब वालमार्ट जैसे कारपोरेट से टक्कर लेना सम्भव नही है। इसलिये भी कि स्वदेशी के नाम पर पिछले दो दशक में देश का आम उपभोक्ता नागरिक और मतदाता बहुत ठगा गया है।
1995 में वैष्वीकरण की शुरुआत और भारत सरकार के डब्लू.टी.ओ. पर हस्ताक्षर करने के बाद राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने इसके आधार पर छोटे दुकानदारो के माध्यम से स्वदेशी जागरण मंच का गठन कराया तथा गाॅव गाॅव में "स्वदेशी लाओ विदेशी भगाओ" - "डंकल का डंक नही चलेगा", आदि के नारे लिखे और लोगो को उत्तेजित किया। देश के गुमराह लोगो ने इन नारो के प्रभाव में उन्हें वोट भी दिये तथा देश की सरकार उनके हाथ आई।
जब श्री वाजपेयी जी संघ नियत्रिंत सरकार के प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने विदेशी उद्योगपतियो कारपोरेट को सहयोग किया। भारत में आयात के लिये प्रतिबन्धित 25 सौ सामानो की सूची को हटा दिया। देश का बाजार विदेशी उद्योगपतियों के लिए खोल दिया। दत्तो पंथा ठेंगडी जैसे स्वदेशी समर्थक दर किनार कर दिये गये और अब श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद तो सरकार से लेकर बाजार तक, भाजपा से लेकर संघ तक का एक प्रकार से कारपोरेटीकरण हो चुका है।
अब देश को इनके स्वदेशी के नारो और झूठ पर कोई विश्वास नही बचा।
केन्द्रीय मंत्री सुश्री उमाभारती के आग उगलते बयान की ’’मै वालमार्ट स्टोर जला दूॅगी’’ अब ठंडी राख में बदल चुके है।
सरकार और सरकार की पार्टी के लोगो के झूठ का पर्दाफास हो चुका है और अब उनका ’’स्वदेशी लाओ-विदेषी भगाओ" का नारा ’’विदेशी लाओ स्वदेशी भगाओ’’ में बदल चुका है।
दीपावली के समय चीनी पटाखो के विरोध के नाम पर देश के पटाखा व्यापारियो ने उपभोक्ता का राष्ट्रवाद के नाम पर जो शोषण और लूट की है उससे अब उपभोक्ता भी इनके नारो की असलियत जान चुका है।
स्वदेशी के नाम अधिकाँश पटाखा विक्रेताओं ने सस्ते चीनी पटाखे भारतीय लेबिल लगाकर मॅंहगे बेचे और खरीददारो का शोषण किया।
इसलिये अब न संघ के स्वदेशी नारे चलने वाले है न भाजपा का नकली स्वदेशी-प्रेम मानने वालो पर भी विश्वाश करने को देश अब तैयार नही है और फुटकर व्यापारियों के सम्भावित बेरोजगारी के खतरे बढ़ गये ।
अगर फुटकर व्यापारी अपना रोजगार बचाना चाहते है तो उन्हें भी खुल कर कुछ कदम उठाना होगे, जैसे:-
1. वैष्वीकरण और डब्लू.टी.ओ समर्थक किसी राजनैतिक दल को बोट न करे। वोट उसे ही करे जो खुल कर कहने को तैयार हो कि डब्लू.टी.ओ से भारत को हटायेगे और वैष्वीकरण पर रोक लगायेगें।
2. फुटकर व्यापार आनलाईन के व्यापार में इन विदेशी महाकाय कम्पनियों को अनुमति नही देगें तथा जिन्हें दी गई है उन्हें रद्द करेगे।
3. छोटे व्यापार और देश के थोक व्यापारी स्पष्ट ऐलान कर अपने मुनाफे की सीमा बांधें तथा यह घोषणा करे कि वे डा.लोहिया के ’’दाम बाधो’’ के अनुसार लागत मूल्य से 50 प्रतिशत से अधिक पर कोई सामान नही बेचेगे।
अगर फुटकर व्यापारियो ने अपने जातीय या राजनैतिक रिश्तों के आधार पर अतीत के समान उपभोक्ताओं को धोखा देने या लूटने का प्रयास किया तो उन्हें अब समझ लेना चाहिये की वालमार्ट का हथौड़ा आज नही तो कल उन्हें भारी आघात पहॅुचायगा जिससे बचना मुश्किल हो जायगा।
बाजार में माल का विक्रेता अरबपति व पैदा करने मजदूर किसान कंगाल-यह स्वदेशी और राष्ट्रवाद का फंदा अब देश के लोगो को नही फांस सकेगा।
हिन्दु और मुसलमान के बीच का संघर्ष मुनाफे की लूट में नही टकराता, बाजार में दामो के आधार पर शोषण करने वाला उद्योगपति या व्यापारी वो चाहे हिन्दु हो या मुसलमान या कोई भी धर्मावलम्बी ग्राहक को अपना शिकार मानता है। धर्म के आधार पर उसे कोई छूट नही देता।
रघु ठाकुर ने कहा कि, लूट का कोई मजहब नही होता बल्कि मजहब तो उनके लिये लूटने का सहयोगी खंजर जैसा बन जाता है इससे देश को बचना होगा।
swatantrabharatnews.com