रेल राज्यमंत्री व संचार मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनोज सिन्हा का सबसे बड़ा झूठ!
- रेल राज्यमंत्री व संचार मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनोज सिन्हा का सबसे बड़ा झूठ - "मोदी बना रहे रेल को आम आदमी का साधन"
-गरीबों के लिए रेल दुर्लभ बस्तु बनायी जा रही है.
- आदरणीय मनोज सिन्हा जी का शायद उम्र की वजह से आँख में मोतियाबिंद हो गया है जिससे सब रंगीन दिख रहा है अन्यथा यदि वे देख सकते तो अवश्य देखते कि, रेल को आम आदमी का साधन नहीं बल्कि उच्च माध्यम वर्ग और उच्च तथा अति उच्च लोगों का साधन बनाया जा रहा है और रेलवे के ढाँचे को मज़बूत करने के बजाय उसे निस्त-नाबूद किया जा रहा है, रेल को कर्मचारी विहीन बनाया जा रहा है, रेल की जमीनों को लीज़ पर दिया/ बेचा जा रहा है, रेल में निगम बना- बना कर/ भिन्न- भिन्न माध्यमों से रेल का लगभग 70% निजीकरण पूरा किया जा रहा है. इस सरकार को भी आम लोगों की रेल से कोई मतलब नहीं रह गया है.
___ [सच्चिदा नन्द श्रीवास्तव, प्रदेश अध्यक्ष (उ. प्र.)/ लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी & महामंत्री- रेल सेवक संघ]
लखनऊ, 23 जून: गाजीपुर के सैदपुर भितरी रेलवे स्टेशन पर 100 लोको क्षमता के एसी विद्युत लोकोशेड के शिलान्यास समारोह में में रेल राज्यमंत्री व संचार मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनोज सिन्हा ने कहा कि सम्राट स्कंदगुप्त के लेख के लिए जाने जाने वाले गाजीपुर के सैदपुर भितरी का नाम एसी विद्युत लोकोशेड बनने के बाद भारतीय रेल में अमर हो जाएगा।
मंत्री ने कहा कि शुरुआती दौर में यहां 100 लोको का अनुरक्षण किया जाएगा। बाद में इसे 200 लोको क्षमता का बना दिया जाएगा। इसके बनने के बाद आसपास कई छोटे-मोटे कल कारखाने खुलेंगे जिससे हजारों लोगों को आजीविका चलेगी।
मोदी बना रहे रेल को आम आदमी का साधन
मंत्री ने कहा कि पीएम मोदी रेल को सामान्य आदमी के यात्रा का साधन मानते हैं इसलिए रेल पर पर्याप्त धन खर्च किए जा रहे हैं। वर्ष 2009 से 2014 तक 47-48 हजार करोड़ रुपये रेल पर खर्च हुए थे। पिछले वर्ष रेल पर 1.30 हजार करोड़ व इस वर्ष 1.48 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए। उन्होंने इसी तरह अन्य क्षेत्रों में हुए खर्च को बताया। कहा कि पीएम मोदी का उद्देश्य है कि 100 प्रतिशत रेल लाइन को का विद्युतीकरण किया जाए। उन्होंने डीआरएम एसके झां से बात करने के बाद करीब 15 जुलाई को गाजीपुर में बने जोनल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट व गाडिय़ों की धुलाई के लिए बने वाशिंग सेंटर के लोकार्पण की घोषणा की।
श्री सिंह ने कहा कि 14 नवंबर 2016 को जिस रेल सह सड़क पुल का शिलान्यास किया था उसका लोकार्पण 14 नवंबर 2019 से पहले बनकर तैयार हो जाएगा।
इस रेल सह सड़क पुल का पहला गर्डर 15 दिन बाद रखा जाएगा।
उन्होंने अपने भाषण में भले ही कांग्रेस के कार्यकाल में पूर्वांचल पर ध्यान न देने की बात कही लेकिन कमलापति त्रिपाठी व कल्पनाथ के समय में कुछ कार्य होने की बात स्वीकार की। कहा कि पीएम मोदी ने न केवल भारतीय राजनीति की शब्दावली बदली है बल्कि कार्य की संस्कृति को भी बदला है।
रेल राज्यमंत्री पूर्वोत्तर रेलवे के जीएम अग्रवाल व आरबीएनएल के प्रबंध निदेशक सतीशचंद्र अग्निहोत्री से वार्ता करने के बाद जनता को भरोसा दिया कि 21 माह की बजाय 18 माह में ही इस लोकोशेड को मूर्त रूप प्रदान किया जाएगा। कहा कि औडि़हार में बन रहे डेमू व मेमू शेड का निर्माण भी आगामी चार माह में पूरा हो जाएगा।
इस मौके पर विधान परिषद सदस्य विशाल उर्फ चंचल सिंह, शिक्षक एमएलसी चेतनारायण सिंह, डीआरएम एसके झा, ट्रैक्शन रेलवे बोर्ड के सदस्य घनश्याम सिंह आदि मौजूद थे।
इस पर प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष (उत्तर प्रदेश) तथा महामंत्री- रेल सेवक संघ - सच्चिदा नन्द श्रीवास्तव ने कहा कि, चाटुकारिता कि हद्द हो गयी है और आदरणीय मनोज सिन्हा जी से ऐसे वक्तव्य कि आशा नहीं थी.
"मोदी बना रहे रेल को आम आदमी का साधन" इससे बड़ा झूठ हो ही नहीं सकता.
श्री श्रीवास्तव ने कहा कि, आदरणीय मनोज सिन्हा जी का शायद उम्र की वजह से आँख में मोतियाबिंद हो गया है जिससे सब रंगीन दिख रहा है अन्यथा यदि वे देख सकते तो अवश्य देखते कि, रेल को आम आदमी का साधन नहीं बल्कि उच्च माध्यम वर्ग और उच्च तथा अति उच्च लोगों का साधन बनाया जा रहा है और रेलवे के ढाँचे को मज़बूत करने के बजाय उसे निस्त-नाबूद किया जा रहा है, रेल को कर्मचारी विहीन बनाया जा रहा है, रेल की जमीनों को लीज़ पर दिया/ बेचा जा रहा है, रेल में निगम बना- बना कर/ भिन्न- भिन्न माध्यमों से रेल का लगभग 70 % निजीकरण पूरा किया जा रहा है. इस सरकार को भी आम लोगों की रेल से कोई मतलब नहीं रह गया है.
प्रति दिन लगभग 2 हज़ार ट्रेनों को अर्थात 60000 (साठ हज़ार) ट्रेनों को उनके गंतव्य स्थान से नहीं चलाया जा रहा है और कैंसिल कर दिया जा रहा है, जानबूझकर रेल को विलम्बित किया जा रहा है तथा रेल के ढाँचे को खराब किया जा रहा है, जिससे विमानन कंपनियों को फ़ायदा पहुँच सके. शहरों में मेट्रो रेल की बात करें तो उनका किराया टैम्पो के किराए से भी अधिक रखा गया है जबकि, मेट्रो का खर्च तो विज्ञापनों से ही निकल आता है.
लखनऊ मेट्रो में तो ठेके पर कर्मचारियों को रखकर लगभग 05 हज़ार से 10 हज़ार रूपये मासिक वेतन देकर गरीब और मज़बूर युवाओं का शोषण किया जा रहा है कर्मचारी को 5000 /= से 10000/= प्रति माह पर रखा गया है.
गरीबों के लिए रेल दुर्लभ बस्तु बनायी जा रही है,
अंग्रेजों के समय तो 3 श्रेणी ही हुआ करती थी, परन्तु अब तो दोगुनी से भी अधिक श्रेणियाँ बना दी गयी हैं, स्टेशनों को विश्वस्तरीय बनाने के लिए स्टेशन विकाश निगमों के माध्यम से गरीबों के धन को लूटा जा रहा है.
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