आज़ाद ए हिन्द के मुस्लिम किरदार - सैय्यद अमीर अली
लहू बोलता भी है
आइये जानते हैं,
आज़ाद ए हिन्द के मुस्लिम किरदार - सैय्यद अमीर अली को_____
सैय्यद अमीर अली की पैदाइश 6 अप्रैल सन् 1849 को कटक में हुई थी। आपके वालिद सआदात अली खान फारसी और अरबी जुबान के माहिर व काबिल थे।
इस्लामिक और अरबी-फारसी की तालीम अमीर अली ने अपने वालिद से ही हासिल की। उसके बाद कटक में ही बाक़ी की पढ़ाई पूरी करके वकालत पढ़ने के लिए आप गवर्नमेंट की स्कालरशिप पाकर इंग्लैण्ड गये।
सन् 1873 में वापस आकर आप कलकत्ता में वकालत करने लगे। वक़ालत की आपकी क़ाबलियत ने कम ही वक़्त में आपको कलकत्ता में मशहूर कर दिया।
सन् 1877 में आपने सेन्ट्रल नेशनल मोहमडन एसोसिएशन के नाम से एक तंज़ीम बनाकर मुसलमानों में सियासी बेदारी पैदा करने की मुहिम चलायी और अंग्रेज़ों के खि़लाफ़ जंगे-आज़ादी के लिए ज़मीन हमवार की।
सन् 1878 में जब मिस्टर ह्यूम इण्डियन नेशनल कांग्रेस बनाने की तैयारी कर रहे थे तो उन्होंने सैय्यद अमीर अली से उनकी तंज़ीम की मदद मांगी। इस पर आप तैयार हो गये और आपने सियासी तरीक़े से अपने साथ जुड़े सभी मेम्बरों को कांग्रेस के साथ जोड़ दिया। मगर हिन्दू मसायल पर ही कांग्रेस की लीडरशिप के ज़्यादा ध्यान देने की वजह से आप नाराज़ होकर अपने साथ के लोगों को लेकर कांग्रेस से अलग हो गये और दोबारा से सेन्ट्रल नेशनल मोहमडन एसोसिएशन के बैनर-तले ब्रिटिश हुकूमत से मुसलमानों की तालीम व नौकरियों के लिये मुतालबा किया।
अंग्रेज़ हुकूमत के ज़रिये कुछ होता न देख आपने आल इण्डिया मोहमडन एजुकेशनल कांफ्रेंस के नाम से एक बड़ा इजलास बुलाकर मुसलमानों को खुद अपनी तालीम के लिए बेहतर स्कूल खोलने का फैसला कराया।
सन् 1890 में आप कलकत्ता हाईकोर्ट में जस्टिस बनाये गये, जहां से सन् 1904 में रिटायर होकर इंग्लैण्ड चले गये। आपने वहां अपने कुछ हमवतनों को हिन्दुस्तान की जंगे-आज़ादी के लिए ख़ुद कुछ करने और मुल्क़ के मुजाहेदीन के लिए माली इमदाद इकट्ठा करके भिजवाया।
सन् 1909 में आपने लंदन में एक डेलिगेशन लेकर लार्ड मिन्टो से मुलाक़ात करके हिन्दुस्तान में अलग मुस्लिम इंतख़ाबी हलकों और लेजिसलेचर के अलावा लोकल बॉडी में मुस्लिम नुमायंदगी बढ़ाने की मांग की। सन् 1909 में अमीर अली प्रिवी कौंसिल के पहले हिन्दुस्तानी मेम्बर बने।
सन् 1919 में आपकी कोशिशों से एक ग्रुप बालकन-वार के बाद के हालात में मदद करने के लिए भेजा गया। आप अपने तंज़ीम से सर आग़ा ख़ान के साथ ख़िलाफ़त आंदोलन चलाते रहे।
सन् 1919 में इसी आंदोलन में आप गिरफ्तार भी हुए। आपने स्प्रिट ऑफ इस्लाम के अलावा क़ानून की कई किताबें भी लिखी। 3 अगस्त सन् 1928 को लन्दन में आपका इंतक़ाल हो गया।
(साभार- सैय्यद शाहनवाज़ अहमद कादरी)
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