व्यवस्था से चार दशक से संघर्ष करता शख्स
नयी दिल्ली, 21 जून: ‘सफेद रंग का थैला, उसमें बहुत जतन से सहेजकर रखे गये सरकारी संस्थानों द्वारा भेजे गये पत्रों वाले चार या पांच बदरंग फोल्डर, कई हिंदी और अंग्रेजी के अखबारों की कतरने और बेबस आंखों में अनकहा आत्मविश्वास।’
यह शक्ल-ओ-सूरत है पिछले चार दशक से व्यवस्था से लड़ रहे मध्यप्रदेश के दमोह जिले के निवासी 72 वर्षीय निर्मल जैन की, जो अपने हक के लिए और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं।
अपनी दास्तां कहते-कहते जैन की आंखे नम हो गयीं और उन्होंने बताया कि इस दौरान उनके एक बेटी और एक बेटे ने आत्महत्या कर ली। फिर, वह भारी आवाज में कहते हैं कि उनकी जंग अंतिम सांस तक जारी रहेगी।
जैन ने बताया कि दमोह में जिला केंद्रीय को-आपरेटिव बैंक में बतौर समिति प्रबंधक के पद पर कार्यरत थे। वह आपातकाल के दौरान जेल गये। छूटने पर उन्हें बमुश्किल नौकरी पर रखा गया। बाद में उन्हें पांच हजार रूपये के गबन के आरोप में फंसा दिया गया लेकिन 16 साल लंबी लड़ाई के बाद अदालत ने उन्हें दोषमुक्त करार दिया। उनका आरोप है कि जद्दोजहद के बाद बैंक ने 2001 में उन्हें वापस तीन हजार रूपये की नौकरी पर रखा और करीब दो साल बाद वह सेवानिवृत्त हो गये। इस दौरान उनके समकक्ष कर्मचारियों का वेतन उनसे अधिक था।
उन्होंने आरोप लगाया कि सेवानिवृत्त होने पर उन्हें केवल 1 लाख 46 हजार रूपये दिये गये। लेकिन वह समुचित ग्रेच्युटी और पीएफ को लेकर अभी भी लड़ रहे हैं। इस दौरान वह राष्ट्रपति, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सहित तमाम संवैधानिक संस्थाओं को न्याय पाने के लिए कई दफा आवेदन कर चुके हैं।
मध्यप्रदेश के सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग से इस बारे में मीडिया की ओर से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जब उनको बैंक (सहकारिता बैंक) में रखने का निर्देश मिला था तब उनको नौकरी पर वापस रख लिया गया था।
सारंग का कहना है कि निर्मल जैन को बैंक की तरफ से जो पैसा मिलना था, वह मिल चुका है। उनकी जानकारी के अनुसार, भविष्य निधि का उनका कुछ पैसा बाकी है जो पत्राचार पूरा नहीं होने के कारण रूका हुआ है। यदि वह भविष्य निधि विभाग से पत्राचार करेंगे तो उन्हें बचा हुआ पैसा भी मिल जायेगा।
(साभार- भाषा)
swatantrabharatnews.com