चीन को भारत का झटका, OBOR प्रोजेक्ट में शामिल होने से PM मोदी का इनकार
- चीन के OBOR प्रोजेक्ट पर मोदी ने कहा, "भारत ऐसी हर परियोजना का स्वागत करता है; जो समावेशी, मजबूत और पारदर्शी हो. साथ ही जो सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करती हो.
नयी दिल्ली, 11 जून: शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पड़ोसी देश चीन की कोशिशों को बड़ा झटका दिया है. कूटनीति के माहिर खिलाड़ी पीएम मोदी ने साफ कहा कि चीन के वन बेल्ट वन रोड (OBOR) प्रोजेक्ट में भारत की कोई दिलचस्पी नहीं है. चिंगदाओ सम्मेलन से लौटने से पहले पीएम ने कहा कि वह पड़ोसी देशों के साथ बेहतर रिश्तों के हिमायती हैं, लेकिन भारत की संप्रभुता के साथ किसी भी हालत में कोई समझौता नहीं किया जा सकता है.
चीन के OBOR प्रोजेक्ट पर मोदी ने कहा, "भारत ऐसी हर परियोजना का स्वागत करता है; जो समावेशी, मजबूत और पारदर्शी हो. साथ ही जो सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करती हो."
बता दें कि चीन के 'सिल्क रोड' यानी 'वन बेल्ट वन रोड' का रास्ता पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर भी गुजरता है. लेकिन, चीन को लगता है कि इस प्रोजेक्ट में भारत को भी शामिल करना फायदेमंद रहेगा. हालांकि, भारत OBOR का लगातार कड़ा विरोध करता रहा है. भारत को छोड़कर एससीओ के सभी देशों ने चीन की इस योजना का समर्थन किया है. हालांकि, पीएम मोदी ने क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए संपर्क सुविधाओं को एक महत्वपूर्ण कारक बताया. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मौजूदगी में मोदी ने कहा, "भारत चाबहार बंदरगाह अैर अशगाबाद (तुर्कमेनिस्तान) समझौते के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा परियोजना में शामिल है. यह संपर्क सुविधा के विकास की परियोजनाओं में भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है."
क्या है OBOR प्रोजेक्ट?
चीन ने आर्थिक मंदी से उबरने, बेरोजगारी से निपटने और अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए 'वन बेल्ट, वन रोड' प्रोजेक्ट पेश किया है. इसके तहत एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क मार्ग, रेलमार्ग, गैस पाइप लाइन और बंदरगाह से जोड़ा जाएगा. बता दें कि 'वन बेल्ट-वन रोड' चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का सपना है. जिसकी औपचारिक शुरुआत 14-15 मई 2013 को बीजिंग में हो चुकी है.
भारत का साथ क्यों जरूरी?
बीजिंग में सक्रिय सूत्रों के मुताबिक, चीन को लगता है कि नेपाल में किसी भी प्रोजेक्ट पर काम करना आर्थिक रूप से फायदेमंद होगा. लेकिन, भारत को दरकिनार कर ये काम करना मुश्किल है. चीन-म्यांमार-बांग्लादेश-भारत आर्थिक गलियारे (इकोनॉमिक कॉरीडोर) के मामले में भी ऐसा ही है. सूत्रों के मुताबिक, चीन भारत के सहयोग को महत्व देता है. लेकिन, भारत की तरफ से वैसी प्रतिक्रिया नहीं मिल रही.
इन गलियारों से जाल बिछाएगा चीन
न्यू सिल्क रोड के नाम से जानी जाने वाली 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना के तहत छह आर्थिक गलियारे बन रहे हैं. चीन इन आर्थिक गलियारों के जरिए जमीनी और समुद्री परिवहन का जाल बिछा रहा है.
> चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
> न्यू यूराशियन लैंड ब्रिज
> चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा
> चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा
> बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा
> चीन-इंडोचाइना-प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा
OBOR बनने के बाद क्या होगा?
चीन अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना के जरिये दुनिया की 60 फीसदी आबादी यानी 4.4 अरब लोगों पर शिकंजा कसने की कोशिश कर रहा है. वह इन पर एकछत्र राज करना चाहता है. ऐसे में इसके भावी परिणाम बेहद गंभीर साबित हो सकते हैं. इन देशों के लोग भविष्य में चीन के गुलाम बन कर रहे जाएंगे. चीन का रिकॉर्ड रहा है कि वह बिना स्वार्थ के कोई काम नहीं उठाता है. खासकर विदेशी निवेश को लेकर उसका रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है.
डोकलाम को लेकर चीन-भारत में बढ़ा विवाद
- डोकलाम में विवाद 16 जून को तब शुरू हुआ था, जब इंडियन ट्रूप्स ने वहां चीन के सैनिकों को सड़क बनाने से रोक दिया था. हालांकि, चीन का दावा था कि वह अपने इलाके में सड़क बना रहा था.
- इस एरिया का भारत में नाम डोका ला है जबकि भूटान में इसे डोकलाम कहा जाता है. चीन दावा करता है कि ये उसके डोंगलांग रीजन का हिस्सा है. भारत-चीन का जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक 3488 km लंबा बॉर्डर है. इसका 220 km हिस्सा सिक्किम में आता है.
- बता दें कि भारतीय-चीन बॉर्डर पर डोकलाम इलाके में दोनों देशों के बीच 16 जून से 28 अगस्त के बीच तक टकराव चला था. हालात काफी तनावपूर्ण हो गए थे. 73 दिन बाद अगस्त में यह टकराव खत्म हुआ और दोनों देशों में सेनाएं वापस बुलाने पर सहमति बनी.
-हालांकि, इसके बाद भी बीच-बीच में डोकलाम इलाके में चीनी सेना के बंकर बनाने की खबरें आती रहती हैं.
(साभार- न्यूज़-18)
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