विश्व पर्यावरण दिवस विशेष: पर्यावरण संतुलन में निभानी होगी रचनात्मक भागीदारी
नोएडा, 05 जून: तमाम पर्यावरण समर्पित संदेशो, जागरूकता के कार्यक्रमो के बावजूद मानवीय हठधर्मिता के चलते लगातार हो रहे प्राकृतिक दोहन से इंसानी जिंदगी आफत के मुहाने पर खड़ी हो गयी है।सामाजिक संचार माध्यमो से तो जनजागरूकता संदेशो से हरियाली हरियाली नजर आती है लेकिन असल जिंदगी में रचनात्मक तरीके से हम वातावरण को रेगिस्तान बनाते जा रहे हैं।जरूरत है उन पर्यावरण जागरूकता के संदेशो को क्रियान्वित कर अमलीजामा पहनाने की।
अपनी संस्कृति से दूर इस डिजिटल युग मे हम कहाँ से कहा आ गए।विश्व भर की अवादी में तीव्रता से विकास हुआ फलस्वरूप जरूरत के कारण एक एक कर प्रकृति को विनाशना शुरू कर दिया।जंगल, झील, पोखर आदि का ह्रास हुआ तो पानी का स्तर घटा, पीने योग्य पानी मे लगातार कमी आयी, पेड़ पौधे धड़ाधड़ कटे।इतना ही नही तमाम जानवरो, चिड़ियों की कई प्रजातियां लुप्त हो गयी तो कई इतिहास बनने की कगार पर आ गयी।मछली पालन में निरन्तर कमी आती जा रही है।अब आइए बात करते है प्रदूषण की बड़े बड़े कलकारखानों के विस्तार से, ए सी, गाड़ियों, आदि कारणों ने वायुमंडल को दूषित करने में कोई कसर नही रख छोड़ी है।ओजोन परत पतली हो चली है।अधुनिकता के मशीनी विकास से नदियां, समुद्रों, भूमिगत पानी दूषित हो चला है।तापमान में साल दर साल बृद्धि होती जा रही है।इन सबके बावजूद इंसान मशीनी विकास के कारण पर्यावरण छेड़छाड़ कर प्रकृति के चक्र को प्रभावित कर रहा है।तमाम गोष्ठियों, बैठकों, संदेशो में विचार तो अच्छे निकलते हैं लेकिन वह वही तक सीमित रह जाते हैं या आंशिक रूप से अमल में भी आते है जो इस दूषित पर्यावरण के लिए ऊंट के मुह में जीरा साबित होता है।आज खबर में सुना कही तापमान 49 डिग्री पार हो गया तो अनायास ही प्रकृति के लगातार हो रहे हनन पर विचारों में खो गया।जल की हो रही निरन्तर कमी, वायु में घुल रहे लगातार जहर पर हमें समय रहते सजग होना होगा।सबसे पहले तो संकल्प लेना होगा कि किसी जीवित(हरे) पेड़ को न काटे न कटने दें।प्रकृति के चक्र को सुचारू रूप से चलने में सहायक बनने के बावत अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें व करवाये।आस पास सफाई का माहौल रखे, जल की बर्बादी न करें, नदी, पोखर में अपने स्तर से सफाई करें, जीव-जंतुओं से स्नेह करें।और सबसे बड़ी बात हम दो हमारे दो मिशन को सार्थक बनाते हुए जनसँख्या नियंत्रण को प्रभावी बनाये।यह सब स्वयं धारण करने के साथ हमे सजग प्रकृति प्रहरी बनकर लोगो को जनजागरूकता के माध्यम से रचनात्मक तरीके से आगे लाना होगा।इन्ही बातों के साथ मैं, अनिल कुमार श्रीवास्तव, अपनी कलम को यही विराम देता हूं और आप सभी पाठकों को विश्व पर्यावरण दिवस की ढेरों शुभकामनाएं।
(अनिल कुमार श्रीवास्तव)
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