रेल दुर्घटनाओं और बढ़ती आत्म-हत्याओं का कारण - अधिकारियों का अमानवीय व्यवहार है: एस. एन. श्रीवास्तव, महामंत्री- रेल सेवक संघ
- क्या रेलवे दुर्घटनाओं और रेल कर्मचारियों के बढ़ती आत्म हत्याओं का कारण- रेल, कर्मचारी के परिवार वालों को जिम्मेदार मानता है?-
- रेल सेवक संघ के महामंत्री- एस. एन. श्रीवास्तव का दावा है कि अधिकारियों द्वारा दिए जाने वाले तनाव के कारण रेल दुर्घटनाओं और कर्मचारियों में आत्महत्या के मामलों में तेजी से बृद्धि हो रही है, जिसमें उत्तर रेलवे का लखनऊ मंडल सबसे आगे है।
- श्रीवास्तव ने कहा कि,लखनऊ में रेल अधिकारियों द्वारा दिए जाने वाले तनाव के कारण आत्महत्याएं भी बढ़ी हैं।
नई दिल्ली, 03 जून: हाल ही में मुंबई में रेलवे द्वारा रनिंग स्टाफ के परिवार वालों से मिलकर उनसे आग्रह किया गया कि, ड्यूटी जाते समय कर्मचारी को तनाव मुक्त रखें।
अधिकारियों ने इस तरह के कई कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया है।
रेल सेवक संघ के महामंत्री- एस. एन. श्रीवास्तव ने कहा कि, अधिकाँश रेल-दुर्घटनाओं और रेल-कर्मचारियों के बढ़ती आत्म-हत्याओं का कारण- अन्य कारणों के साथ- साथ रेलवे कर्मचारी को परिवार से मिलने वाला तनाव नहीं, बल्कि, रेल अधिकारियों द्वारा दिया जाने वाला तनाव है.
उनका दावा है कि, रेेेल में लगभग 20 लाख कर्मचारियों की भारी कमी, बढ़ते काम का दबाव और रेल अधिकारियों द्वारा उनकी न्यायोचित समस्याओं के निस्तारण के स्थान पर दिए गए तनाव से कर्मचारी आत्महत्या कर रहें हैं और रेलवे दुर्घटनाग्रस्त हो रही है, जिसमें उत्तर रेलवे का लखनऊ मंडल और DRM/LKO- शतीश कुमार सबसे ऊपर के क्रम में हैं।
लखनऊ मंडल में रेल-कर्मचारी लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। अभी लगभग 13 दिन पहले लखनऊ में एक रेलवे ड्राइवर ने आत्महत्या कर ली है।
रेलवे को प्रतिदिन लगभग 2 हजार ट्रेन निरस्त करनी पड रही है। रेल का ढाॅचा चरमारा गया है।
जबकि, रेलवे कहती है कि परिवार के तनाव के कारण कर्मचारी कहीं ना कहीं दुर्घटना का कारण बनते हैं। रेल तो शतत् विकास की ओर अग्रसर है।
बीते दिनों मुंबई में रेलवे के अधिकारियों ने लगभग 40 लोको पायलट के परिवार वालों को बैठक के लिए बुलाया। इसमें उन्होंने बताया कि, किस तरह से रेल कर्मचारी के तनाव में रहने पर लाखों लोगों की सुरक्षा खतरे में पड़ती है। परिवार ही एक ऐसा रास्ता है जो अपने पति पिता बेटा को तनाव मुक्त रखने में मदद कर सकता है इसलिए आप लोगों से आग्रह है कि उन्हें तनाव मुक्त रखें। यह अनोखी पहल भले अभी मुंबई में शुरू की गई है।
सूत्रों की मानें तो, जल्दी ही रेलवे के अन्य जोन और डिवीजन में भी अधिकारी इसी तरह के कार्यक्रम आयोजित करने जा रहे हैं।
परन्तु कई कर्मचारियों ने बताया कि, इस तरह के नाटक करने से कुछ होने जाना नहीं है। अधिकारी गैरकानूनी तरीके से दबाव बनाते हैं। कर्मचारियों की भारी कमी के कारण नियमानुसार रेस्ट नहीं मिलता। 16-16 घंटे से लेकर 30-30 घंटे तक काम करना पड़ता है। नहीं मानो तो निलम्बन से रिमूवल, चार्जशीट और ट्रान्सफर तक की धमकी मिलती है। असली तनाव तो परिवार के साथ वक्त नहीं बिताने का होता है। लेकिन यह अधिकारियों को कभी समझ में नहीं आता है। घर में चाहे जितनी परेशानी हो, चाहे किसी की तबीयत खराब हो या फिर शादी ब्याह का मामला हो या फिर रिश्तेदारी में मौत का मामला हो, कभी भी रनिंग स्टाफ को छुट्टी देने में अधिकारी उदारता नहीं दिखाते हैं। यहां तक की कर्मचारी यदि रेलवे अस्पताल में सिक करता है तो वहां पर भी मंडल रेल प्रबंधक के नाम पर डॉक्टरों को ऊपर दबाव बनाकर जबरन उन्हें फिट करा दिया जाता है। ऐसे में आखिर कर्मचारी को तनाव नहीं होगा तो और क्या होगा। परिवार वालों को यह समझाना कि कर्मचारी को तनाव मुक्त रखें लेकिन क्या अधिकारी किसी के परिवार से यह पूछेंगे कि उसके पति, पिता या पत्नी ने जब छुट्टी मांगी हो तब उसे छुट्टी दी गई या नहीं। अमानवीय हालत में ड्यूटी कर रहे कर्मचारियों के पास ना तो बच्चों का जन्म-दिन मनाने की छुट्टी होती है और ना ही रिश्तेदारी निभाने की, ऐसे में परिवार के बीच तनाव नहीं तो और क्या पनपेगा। कर्मचारियों की बेसिक जरूरतों को दूर करने की बजाय परिवार के लोगों को यह कहना की कर्मचारी को तनाव मुक्त रखें उनके साथ एक भद्दा मजाक है।
आखिर रेलवे के रनिंग, ओपेन लाइन व अन्य विभाग के लाइन कर्मचारियों को इस अमानवीय हालत में कब तक ड्यूटी करना पड़ेगी, यह कोई भी बताने को तैयार नहीं है। इस तरह की ड्रामेबाजी से ना तो कर्मचारी तनाव मुक्त होगा और ना ही उसके परिवार को समझाने से कोई फायदा मिलेगा।
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