जंगे- आज़ादी- ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार - अब्दुल लतीफ़ फारूक़ी
लहू बोलता भी है.
आईये, जानते हैं
जंगे- आज़ादी- ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार - अब्दुल लतीफ़ फारूक़ी जी को___
अब्दुल लतीफ़ फारूक़ी
अब्दुल लतीफ़ फारूक़ी की पैदाइश सन् 1893 में नवाब ऑफ़ चेन्नई के घर हुई। बेसिक से लेकर यूनिवर्सिटी तक की आपकी तालीम चेन्नई में ही हुई।
आप अरबीए उर्दूए तमिल और अंग्रेज़ी के अच्छे जानकार थे। यूनिवर्सिटी की पढ़ाई खत्म करने के बाद आप खि़लाफ़त आंदोलन में शामिल हुए। इन्हीं आंदोलनों के दिनों में आपकी महात्मा गांधी से मुलाक़ात हुई। उनसे मिलकर आप बहुत असरअंदाज़ हुए और पूरी तरह से असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। नतीजे के तौर पर आप गिरफ्तार हुए।
अंग्रेज़ी हुकूमत ने आपकी खानदानी पेंशन ;जो नवाबों को मिला करती थीद्ध बंद कर दी। जेल से आने के बाद पेंशन बंद होने की वजह से आपने काफ़ी दिन परेशानियों में गुज़ारा। फिर किसी तरह इंतज़ाम करके आज़ाद हिन्द नाम से एक अख़बार निकाल कर अंग्रेजी़ हुकूमत की कारगुज़ारियों को छापने लगे। बहुत जल्द अख़बार अवाम में मक़बूल हो गया। इस अख़बार को अंग्रेजी़ हुकूमत ने बंद कराकर ऑफिस और उसका सारा सामान ज़ब्त कर लिया।
अब आप पूरी तरह कांग्रेस के आंदोलनों और तंज़ीमी कामों में अपना वक़्त देने लगे। आपने मुस्लिम लीग के पाकिस्तान रिजूलेशन की भरपूर मुख़ालिफत की। इसके लिए अवामी जलसा और मीटिंगें करके आपने हिन्दू.मुस्लिम इत्तहाद बनाये रखने कींए अपीलें कीए जिनका मद्रास में ज़बरदस्त असर हुआ।
आप सन् 1926 में स्वराज पार्टी की तरफ़ से चुनाव लड़कर मद्रास एसेम्बली के मेम्बर बने। आप मद्रास ;नार्थ सीटद्द्ध से विधान.परिषद के मेम्बर चुने गये। मद्रास लेजिसलेटिव कौंसिल में विरोधी दल के नेता भी बनाये गये। मुल्क आज़ाद होने के बाद आप अवामी फलाह के लिए वक़्फ़ बोर्डों की तरक़्क़ी और इंतज़ामात के अलावा दीगर समाजी ज़रूरतों के लिए तंज़ीमी कामों में लगे रहे। अब्दुल लतीफ़ को मुल्क की आज़ादी दिलाने के लिए पूरी ज़िन्दगी लगा देने की वजह से अवाम में बहुत शोहरत मिली।
आपका इंतकाल सन् 1982 में हुआ था।
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