लहू बोलता भी है: मुल्ला अब्दुल बासित
आईये, जानते हैं,
जंगे- आज़ादी- ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार - मुल्ला अब्दुल बासित जी को___
मुल्ला अब्दुल बासित
मुल्ला अब्दुल बासित साहब की पैदाइश सन् 1889 डमें गुलबर्गा ;कर्नाटकद्ध में हुई थी। इनके खानदान के लोग खुद पर बर्तानी हुकूमत की गुलामी बर्दाश्त नहीं करते थे और अंग्रेज़ हुकमरान के खि़लाफ़ हर जद्दोजहद डमें लगे रहते थे।
आपके वालिद मुल्ला अब्दुल क़य्यूम हैदराबाद ;दकनद्ध के नव.जागरण के नेता थे जबकि आपके भाई अब्दुल मुनीम क़ौमी ख़्यालात के मशहूर लेखक थे।
अब्दुल बासित ने अपनी तालीम पंजाब यूनिवर्सिटी से हासिल की। उसके बाद आप निज़ाम.सरकार डमें ज़िला जज फायज़ हुएए लेकिन बहुत दिनों तक जज की नौकरी नहीं कर सके क्योंकि निज़ाम के ख़िलाफ जो लोग आज़ादी की लड़ाई में गिरफ्तार किये जातेए उन्हें सज़ा न देने की वजह से निज़ाम हुकूमत नाराज़ हो गयी।
आपने जज के ओहदे से इस्तीफा दे दिया और जंगे.आज़ादी की मुहिम डमें जुड़ गये।
अपने वालिद के नक़्शे.क़दम पर आपने द रेड क्रीसेंट सोसाइटी नाम से एक तंज़ीम बनायीए जिसने सन् 1912 डमें वाल्कन जंग में घायल सैनिकों के इलाज की ज़िम्मेदारी निभायी और जिसके लिए 3 लाख रुपये खर्च किये गये। अंजुमने.मारिफ संगठन ;जिसकी बुनियाद उनके वालिद ने सन् 1905 में की थीद्ध के ज़़रिये आप हैदराबाद के लोगों के सामाजिक कामों में मदद करते थे।
उन्होंने एक पत्रिका भी श्सहिफ़ाश् नाम से सन् 1905 डमें शुरू कीए जिसके ज़रिये जंगे.आज़ादी के लिए अवाम का मिज़ाज़ बनाने का काम किया।
उन्होंने उर्दू अख़बार खादिम भी शुरू किया था। इस अख़बार ने ब्रिटिश हुकूमत की ख़िलाफ़त और जंगे.आज़ादी के नेताओं का हौसला बढ़ायाए जिससे आंदोलन की तरफ़ अवाम का रुझान पैदा हुआ और अवाम ख़ुलकर निज़ाम हुकूमत के ख़िलाफ़ मैदान में उतर आयी।
इसका असर यह हुआ कि निज़ाम की हुकूमत ख़त्म करके हिन्दुस्तान सरकार क़ाबिज़ हुई और मुल्ला अब्दुल बासित का आंदोलन क़ामयाब हुआ।
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