लहू बोलता भी है: नवाब साहिबज़ादा अब्दुल क़य्यूम खान
जंगे- आज़ादी- ए- हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार___ नवाब साहिबज़ादा अब्दुल क़य्यूम खान
नवाब साहिबज़ादा अब्दुल क़य्यूम खान, अब्दुल क़य्यूम लोदी राजघराने से ताल्लुक रखते थे। आपकी पैदाइश 17 दिसम्बर सन् 1864 को स्वाबी तहसील के तोपी गांव ;पेशावरद्ध में हुई थी।
आपके वालिद साहबज़ादा अब्दुल रऊफ़ साहब एक मशहूर इस्लामी स्काॅलर और बहुत अच्छे मोक़र्रिर थे। वह जहां जातेए वहां आपको सुननेवालों की भीड़ लग जाया करती थी।
मौलाना रऊफ़ साहब मज़हबी तक़रीर के बाद अंग्रेज़ों के ज़रिये मुसलमानों पर हुए ज़्ाुल्म की दास्तां बयान करते थे। आसपास के इलाके़ में उन्होंने काफ़ी मक़बूलियत हासिल की थी। उनकी बढ़ती हुई शोहरत देखकर एक अंग्रेज़ अफ़सर ने सन् 1873 मंे अब्दुल रऊफ का क़त्ल करा दिया।
वालिद के इंतक़ाल के बाद अब्दुल क़य्यूम साहब अपने चाचा के घर कोठा गांव आकर रहने लगे। यहीं अपनी दीनी और दुनियावी तालीम हासिल की साथ ही आपको खेलकूद और पहलवानी में भी दिलचस्पी पैदा हुई थी।
पहाड़ों पर चढ़ने का भी आपको शौक़ था। उन दिनों पहाड़ पर चढ़ने के मुक़ाबले में हिस्सा लेकर आपने जीत हासिल की। उसके बाद ऊंची तालीम के लिए आपने कलकत्ता यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया।
ग्रेजुएशन की तालीम के बाद आपने तहसीलदार के ओहदे पर सरकारी नौकरी की। नौकरी के दौरान अंग्रेज़ अफ़सरों का हिन्दुस्तानियों के लिए भेदभाव और नफ़रत देखकर आपने बहुत जल्द सन् 1919 मंे ही नौकरी छोड़ दी।
दौराने.नौकरी अंग्रेज़ों की ज़्ाुल्मो.ज्यादती से आप इतने बेज़ार हुए कि नौकरी छोड़ने के बाद जंगे.आज़ादी और मुसलमानों मंे तालीम की बेदारी के नाम अपनी पूरी ज़िंदगी वक़्फ़ करने की क़सम खाकर घर से निकल पड़े। आपने खि़लाफ़त आंदोलन में बढ़.चढ़कर हिस्सा लिया दौराने.आंदोलन गिरफ्तार भी हुए।
आपने कांग्रेस व लीग के हिजरत आंदोलन और सिविल नाफ़रमानी मंे भी हिस्सा लिया। इन्हीं आंदोलनों के दिनों मंे मुसलमानों की तालीम की कमी दूर करने के लिए आप जहां जाते स्कूल खोलने पर ज़ोर देते रहे और ख़ुद भी पेशावर मंे आपने एक इस्लामिया काॅलेज खोला।
नवाब अब्दुल क़य्यूम सन् 1923 से 1932 तक लेजिसलेटिव एसेम्बली के मेम्बर बने और सन् 1927 के मुस्लिम कांफ्रेंस मंे हिस्सा लिया। सन् 1930 में इंग्लैण्ड के राउंड टेबल कांफ्रेंस मंे गये जहां अंग्रेज़ हुकूमत के खि़लाफ़ आपने बहुत ज़ोरदार तक़रीर कीए जिसे इंग्लैण्ड के अख़बारों ने तब बहुत अहमियत देकर शाया किया।
सन् 1932 मंे आप सूबे सरहद के वज़ीरे.आला बनेए लेकिन ज़्यादा दिनों तक इस ओहदे पर नहीं रह सके क्योंकि खान अब्दुल ग़फ्फ़ार खान के ग्रुप ने मुख़ालिफ़त करके आपको हटा दिया।
3 दिसम्बर सन् 1937 को आपका इंतक़ाल हो गया।
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