लखनऊ के सैनिक स्कूल में पहली बार पढ़ेंगी लड़कियां, 2500 में से 15 लड़कियों का हुआ है सलेक्शन
सैनिक स्कूलों की स्थापना 1960 के दशक से शुरू हुई और इस समय देश के 22 राज्यों में 27 सैनिक स्कूल संचालित किए जा रहे हैं. लेकिन यह पहली बार है जब लड़कियों को इस तरह के एक स्कूल में पढ़ने का मौका मिलेगा.
लखनऊ, 22 अप्रैल: देश में शारीरिक, मानसिक और शैक्षणिक रूप से मजबूत और जांबाज सैनिक तैयार करने वाली नर्सरी के तौर पर संचालित सैनिक स्कूलों में लड़कियों को प्रवेश देने की पहल करते हुए यहां के कैप्टन मनोज पाण्डेय सैनिक स्कूल में इस सत्र में 15 लड़कियों को दाखिला दिया गया है.सैनिक स्कूलों की स्थापना 1960 के दशक से शुरू हुई और इस समय देश के 22 राज्यों में 27 सैनिक स्कूल संचालित किए जा रहे हैं. लेकिन यह पहली बार है जब लड़कियों को इस तरह के एक स्कूल में पढ़ने का मौका मिलेगा.
पंद्रह बच्चियों का पहला बैच भर्ती किया गया है
सैनिक स्कूल के प्रधानाचार्य कर्नल अमित चटर्जी ने बताया , 'पंद्रह बच्चियों का पहला बैच भर्ती किया गया है. इन सभी को नौंवीं कक्षा में दाखिला दिया गया है.सभी छात्राओं ने 19 अप्रैल से कक्षा में जाना शुरू कर दिया है.' उन्होंने कहा कि छात्राओं का बैच भर्ती होने से ना सिर्फ हमें खुशी हो रही है बल्कि बच्चियों को भी गर्व का अनुभव हो रहा है.
चटर्जी ने कहा, 'ये सभी बच्चियां कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद इस स्कूल में दाखिला लेने में सफल रहीं. करीब 2500 लड़कियों ने आवेदन किया था, जिनमें से 15 बच्चियों का चयन किया गया.'
दरअसल देश के सैनिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में से बेहतरीन का चयन कर उन्हें राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए), खडगवासला, पुणे और राष्ट्रीय नौसेना अकादमी में आगे की सैन्य तैयारी के लिए भेजा जाता है. इन स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा वह नींव बनती है जिसके आधार पर , आगे चल कर बच्चे देश का सशक्त सैनिक बनते हैं. वर्ष 2016 में एनडीए में दाखिला लेने वाले कुल कैडेट में 29.33 प्रतिशत कैडेट इन सैनिक स्कूलों से आए थे.
सैनिक स्कूल में छात्र छात्राओं के दैनिक कार्यकलाप की जानकारी देते हुए चटर्जी ने बताया कि बारहवीं कक्षा तक पढाई करने वाली ये छात्राएं सुबह छह बजे तैयार होकर पीटी के लिए पहुंच जाती हैं.
सुबह सवा आठ बजे 'एसेंबली' के लिए पहुंचना होता है
चटर्जी ने बताया कि सुबह सवा आठ बजे सबको 'एसेंबली' के लिए पहुंचना होता है. कक्षाओं के बाद सब छात्रावास जाकर आराम करते हैं और शाम चार बजे से पांच बजे के बीच खेलकूद के लिए जाते हैं. शाम सात बजे स्कूल से मिले होमवर्क (प्रिपरेशन) को पूरा करना होता है. उन्होंने बताया कि बारहवीं कक्षा तक यानी चार साल तक सभी छात्राएं कैडेट के रूप में रहेंगी और छात्रों के कंधे से कंधा मिलाकर परिश्रम करेंगी.
राज्य सरकार के अधीन है लखनऊ का सैनिक स्कूल
चटर्जी ने बताया कि देश के सभी 27 सैनिक स्कूल केंद्र सरकार के अधीन हैं जबकि यहां राजधानी लखनऊ का सैनिक स्कूल राज्य सरकार के अधीन है. अब तक केवल बालकों को ही कक्षा सात में सैनिक स्कूल में प्रवेश दिया जाता था.
राजधानी लखनऊ का सैनिक स्कूल 1960 में स्थापित किया गया था जो देश में अपनी तरह का पहला स्कूल था. इसके बाद देश के अन्य हिस्सों में 27 ऐसे सैनिक स्कूल स्थापित किए जा चुके हैं. फिलहाल कुछ और राज्यों की मांग पर वहां भी सैनिक स्कूल खोलने की प्रक्रिया जारी है.
सैनिक स्कूल में छात्राओं के प्रवेश का निर्णय पूर्व में शासन स्तर पर हुई बैठकों में लिया गया था, जिसकी शुरुआत 2018-19 सत्र से की जानी थी. इसके लिए 25 सितंबर को प्रवेश फॉर्म मिलना शुरू हो गए थे. शासन के निर्णय के तहत इस स्कूल में सातवीं और नौंवीं कक्षा के लिए छात्राओं के प्रवेश की स्वीकृति दी गई थी. छात्राओं के पहले बैच ने 19 अप्रैल से अपनी पढ़ाई शुरू कर दी है. इसके बाद आगे भी सातवीं कक्षा के लिए प्रवेश लिए जाएंगे.
हालांकि पिछले बरस केन्द्रीय मंत्री सुभाष भामरे ने लोकसभा को बताया था कि सरकार लड़कियों को सैनिक स्कूलों में पढ़ने के साथ ही राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में कैडेट के तौर पर भर्ती होने की सुविधा देने पर विचार कर रही है.
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