भारत: हथियार सभ्यता से दुनिया को मुक्त करना होगा. ___ रघुठाकुर
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अमेरिका एक प्रकार के मानसिक उन्माद और पागलपन का शिकार हो रहा है!
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हथियारो का यह चलन अब किस चरम पर पहॅुच रहा है और इसका भविष्य क्या हो सकता है? यह एक चिंता का विषय है।
नई दिल्ली, 11 अप्रैल: स्वतंत्र भारत न्यूज़ के साथ दिए एक साक्षात्कार में भारत के महान समाजवादी चिंतक व विचारक तथा लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक एवं राष्ट्रीय संरक्षक - रघु ठाकुर ने दुनिया में बढ़ रही हथियार सभ्यता और हत्याओं पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए जो कुछ कहा कि, “फरवरी 2018 में अमेरिका के फ्लोरिडा में एक छात्र ने अपने ही साथ के 17 छात्रों को गोली से मार दिया था और इस घटना में अनेको छात्र घायल हुये थे। स्कूली छात्रो के द्वारा हथियारो के प्रयोग से जिस प्रकार अपने सहयोगियो या शिक्षकों को मारे जाने की घटनायें घट रही है, वह चिंताजनक है।
यह भी कोई पहली घटना नही है, बल्कि ऐसी अनेको घटनाये पहले भी घटती रही है।
अमेरिकी समाज का एक हिस्सा हथियारो पर रोक लगाने के बारे में भी यदा-कदा पहल करता रहा है और अभियान भी चलाता रहा है।
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा निजी हथियारो पर प्रतिबन्ध लगाने के पक्ष में थे, परन्तु उनके प्रस्ताव को अमेरिकी संसद ने स्वीकार नही किया और शायद इसलिये भी कि वहाँ का आम आदमी स्वतः हिंसक मानसिकता से ग्रस्त है, या फिर भय की मानसिकता से।
परन्तु हथियारो का यह चलन अब किस चरम पर पहॅुच रहा है और इसका भविष्य क्या हो सकता है? यह एक चिंता का विषय है।
हिंसक मानसिकता और भय की मानसिकता दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू है।
फ्लोरिडा घटना के बाद एक चर्च ने बकायदा ’’गन प्रेयर’’ की सूचना भेजी और चर्च में आने वालो से कहा कि, वह अपने साथ हथियार लेकर आये, चर्च जो की ईसाई समाज का एक ईष्वरीय अराधना केन्द्र है और जो ईसाई मत, प्रेम और अहिंसा के खम्बो पर खड़ा है, उसके प्रार्थना में पादरी द्वारा बंदूक लेकर कहना एक ऐसी चैकाने वाली घटना है, जो सभी की चिंता व चिंतन करने का विषय होना चाहिये।
चर्च में हथियार लेकर जाने का मतलब प्रार्थना में आने वाले व्यक्ति की असुरक्षा है तथा इस असुरक्षा से बचने का दायित्व उसका अपना है और उसकी पूर्ति हथियार लेकर आने से ही होगी।
इस गन प्रेयर में बकायदा लोग हथियार लेकर गये भी।
इस घटना का मतलब साफ है कि, अब अमेरिका एक ऐसी अराजकता की मानसिकता के दौर में पहॅुच गया है जहां कोई भी व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। वह अकारण ही किसी की भी हत्या कर सकता है।
अमेरिका के कई राष्ट्रपतियो की हत्याये हुई है, परन्तु उनके पीछे हत्यारों का उद्देष्य था।
कोई भी सभ्य व्यक्ति या सभ्य समाज अपने उद्देष्य पूर्ति के लिये किसी की हत्या को स्वीकार नही कर सकता। परन्तु उन हत्यारो के कुछ लक्ष्य थे, भले ही वो समाज के बहुमत के लिये या सरकार के लिये अस्वीकार रहे हो।
परन्तु पिछले कुछ वर्षो में अमेरिका को जिस प्रकार से शिक्षण संस्थाओ, होटलो, रेस्टोरेन्ट में बगैर किसी कारण या उत्तेजना के कोई व्यक्ति खेल-खेल में निहत्थे निर्दोष लोगो को मौत का शिकार बना देता है, वह एक प्रकार का मानसिक, उन्माद, व पागलपन है, जिसका शिकार अब अमेरिका हो रहा है और एक भयावह स्थिति का निर्माण अमेरिका में हो रहा है। इसका प्रमाण हाल ही कि बर्मिघम सिटी की घटना से मिल जाता है यहाँ के एक स्कूल के 6वीं क्लास के विद्यार्थी- जावों डैवीस ने अपनी वसीयत लिखी।
हो सकता है कि वो छात्र अभी वसीयत का ठीक-ठाक अर्थ भी न समझता हो, जब उससे पूछा गया तो उसने कहा कि वह वसीयत का यह अर्थ जानता है कि भगवान के पास जाने वाला हर व्यक्ति अपनी पंसद अपने चाहने वालो को देकर जाता है।
जो वसीयत होती है उसे उसने एक सादे कागज पर पत्र के रुप में अपने प्रिय दोस्त को लिखा है उसकी कुछ पंक्तियाँ यथावत उल्लेखित कर रहा हॅू___
’’स्कूल में आजकल कुछ बुरे और लड़ाई करने वाले बच्चे भी पढ़ने लगे है। अगर कभी मेरे स्कूल में किसी बच्चे ने गन फायरिगं कर दी तो मैं गाड के पास चला जाऊॅगा। ऐसा होने पर मेरी सभी चीजे मेरे प्रिय दोस्त और परिवार के बीच रहेगी। मेरा प्लेस्टेषन, टी.वी मेरी पालतू बिल्ली और मेरा फेवरेट जियोमैट्री बाक्स मेरे बेस्ट फ्रेन्ड के पास रहेगा वेा स्कूल में मेरा साथ देता है लेकिन मेरे कपड़े मम्मी पापा के पास ही रहेगे। मम्मी पापा ने मुझे हमेशा मेरी पंसद के कपड़े दिलाये। वे मुझे बहुत प्यार करते है, हमेशा साथ देते है, चिंता करते है। मैं भगवान के हाथों में सुरक्षित रहॅूगा
आपका जावों।’’
जब यह पत्र जावों की माँ- मरियामा को उसके स्कूल बैग में मिला तो वह परेशान हो गई और स्कूल में जाकर छात्रो से पता किया तो जानकारी मिली कि इस प्रकार के वसीयत पत्र अकेले जावों नही बल्कि बहुत से बच्चे लिख रहे है।
आज से 10-15 वर्ष बाद यही बच्चे बड़े होकर अमेरिकी समाज के नागरिक व निंयत्रक बनेगे और इस भयायुक्त मानसिकता से ग्रस्त होकर वे किस प्रकार के समाज के गठन में अपनी सहभागिता का निर्वाह करेगें यह कहना कठिन है।
इसी भयाकान्त या हिसंक मानसिकता वाले बच्चो में कुछ एक आने वाले अमेरिका का नेतृत्व भी करेगे और जब उनके हाथ में परमाणु बमों के बटन होगे तेा उसका प्रयोग वे किस प्रकार से करेगे यह दुनिया की चिंता का विषय होना चाहिये।
एक मामूली बटन दबाने से दुनिया तबाह हो सकती है। आज अमेरिका के पास दुनिया के सबसे अधिक लगभग 14 हजार परमाणु बम है। वे भी इतने षक्तिषाली है कि एक दो बम ही समूची दुनिया और मानव सभ्यता को नष्ट कर सकते है भयाक्रात मानसिकता से ग्रस्त । जो अपने बचपन से भी संभावित हिंसा, हमला और मृत्यु के भय से आषंकित मानसिकता से ग्रस्त हो किसी भी मामूली से बाहरी हमले की आंषका को किसी भी रुप में ले सकते है।
तकनीकी विकास और तकनीक के पूंजीवादी प्रयोग ने प्रचारतंत्र को अपने व्यापार का माध्यम बनाया है।
सुनियोजित ढंग से टी.वी चैनलो, फिल्मो आदि में हिंसा के नित नये प्रयोग दिखाये जाते है और यह बच्चो को हिंसा व हिसंक प्रशिक्षण भी देते है।
अमेरिका में औसतन एक बच्चा एक माह में लगभग हत्या, गोली चालन, विस्फोट, सामूहिक हिंसा आदि के समाचार और चित्र देखता है। भले ही यह एक काल्पनिक दृष्य हो परन्तु इन बच्चो के लिये वे फिल्म या चित्र हिंसा मित्र बना देते है। और इन बच्चो के सामान्य जीवन का हिस्सा, हिंसा और हथियार बन जाता है।
अमेरिक दुनिया का सबसे बड़ा हथियार का व्यापारी है और भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार का खरीददार है.
अमेरिका दुनिया के शस्त्र-व्यापार का लगभग 36 % व्यापार करता है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था और संपन्नता का आधार हथियार और युद्ध है और शायद यही कारण है कि, इतनी हिंसक घटनाओं के बाद भी अमेरिका में हथियारो पर रोक नही लग पा रही है बल्कि इसके उल्टे उन धार्मिक केन्द्रो में हथियार पहॅुचने लगे है जिन धर्मों का उदय ही ममता, करुणा, अहिंसा के आधार पर हुआ है।
धार्मिक स्थलो की सुरक्षा के लिये हथियारो के माध्यम से सुरक्षा की खोज अब भारत में भी होने लगी है.
अभी हाल में मैने एक समाचार पत्र में पढ़ा जिसमें, कोटा के दादा बाड़ी के जैन मंदिर में 18 मूर्तियां (चांदी की) को और अन्य वस्तुओ को मंदिर के अंदर लॅाकर में रखा जाता है तथा उनकी सुरक्षा के लिये चार बंदूक धारी गार्ड 24 घंटे रहते है। जिसके ऊपर साल में लगभग 20 लाख रुपये खर्च होता है। हमारा समाज कैसा बन रहा है कि जिसमें उन महानुभावो जिन्हें लोग भगवान मानतें है, की मूर्तिया है, जो निर्भय होकर वनो में घूमते रहे और जीवन दर्शन देते रहे। आज अपनी मूर्तियो की सुरक्षा के लिये बंदूक और गार्डो, पहरियो पर निर्भर हो गये है।
दुनिया को सोचना होगा कि आखिर अहिंसा, प्रेम और बराबरी का दर्शन देने वाले जिन्हें वह ईष्वरी अवतार मानते है, आज इस स्थिति में क्यों पहॅुचे। क्या हमारा धर्म परंपराओं और बाहृय पूजा के आवरण में फॅस कर निर्जीव बन गया है और जिस धर्म की कल्पना एक बेहतर इंसान को गढ़ने को की गई थी, वह बेहतर इंसान नही गढ़ पा रहा है। वह बेहतर इंसान से के बजाय बदतर इंसान बन गया है। जिस प्रकार दुनिया में विषमता बढ़ रही है कुछ के पास सब कुछ है और सबके पास कुछ भी नही है। यह स्थिति भी लोगेा को अपराध की ओर प्रेरित कर रही है।
अमेरिका ’’हथियार संस्कृति’’ को तब तक नही रोक सकता जब तक की वह हथियारो की बिक्री की सम्पन्नता या युद्ध-जनित संपन्नता की मांग के रोग व भोग से मुक्त नही होता ।
गांधी की दूर दृष्टि ने अमेरिकी समाज के इस चरित्र को पहले ही पहचान लिया था और इसलिये जब उनके अनुयायियों ने उनसे बार-बार अमेरिका आने का आग्रह किया तो गांधी ने उन्हे उत्तर लिखा था ’’कि मेरे अमेरिका आने से कोई लाभ नही होगा क्योंकि, आप लोग डालर भगवान के पूजक है और मैं दरिद्र नारायण का।’’ डा. लोहिया ने अपनी ’’सात क्रांतिओ’’ नामक किताब में निशस्त्रीकरण को एक क्रांन्ति बताया था। यह निषस्त्रीकरण केवल एक शब्द मात्र नही है बल्कि एक ऐसी सभ्यता का बीज है जो हिंसा और विषमता से, अपराध और षोषण से, मुक्त सभ्यता होगी।
निशस्त्रीकरण का अर्थ होगा दुनिया के हथियार बिक्रेता देषों की संपन्नता में भारी कमी और विपन्न दुनिया के, संसाधनों की बचत, जो उनके विकास पर खर्च हो सकेगी। निषस्त्रीकरण का अर्थ होगा हथियारो के दलालो व षस्त्र उद्योग के मालिको के द्वारा संचालित कारपोरेट मीडिया की ’’सिकुड़न’’ मीडिया या फिल्म, साहित्य आदि के माध्यम से बच्चो व समाज को हिंसा की ओर प्रवृत्त करने की समाप्ति और अहिंसा व बराबरी की सम्भता का उदय।
अब उपयुक्त समय है जब दुनिया को इन प्रश्नों पर विचार करना चाहिये वरना मानवता के भविष्य पर प्रश्न-चिन्ह लगा रहेगा?
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