सात सालों में कैसे बदला अन्ना हजारे का आंदोलन, तब और अब में आया ये फर्क
समाजसेवी अन्ना हजारे 7 साल बाद एक बार फिर दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे हैं. तब के और अब के आंदोलन में क्या कुछ फर्क है, जानें.
समाजसेवी अन्ना हजारे 7 साल बाद एक बार फिर दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे हैं. अनिश्चितकालीन अनशन शुरू करने से पहले शुक्रवार को अन्ना हजारे ने सुबह 9 बजे राजघाट जाकर बापू को श्रद्धांजलि दी. वो करीब आधे घंटा वहां रुके. रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के साथ आने वाले हज़ारों प्रदर्शनकारी हमें 2011 के अन्ना आंदोलन की याद दिलाते हैं. लेकिन तब के और अब के आंदोलन में क्या कुछ फर्क है, जानें.
2011 में भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर अन्ना हजारे ने आदोलन किया और अब किसानों का मुद्दा लेकर वो दिल्ली पहुंचे हैं.
अन्ना के इस आंदोलन को 'जन आंदोलन सत्याग्रह' नाम दिया गया है. बैनर पर सक्षम किसान, सशक्त लोकपाल और चुनाव सुधार जैसी तीन प्रमुख मांगें भी लिखी हुई हैं. भारतीय किसान यूनियन समेत देश के कई दूसरे किसान संगठनों ने अन्ना के इस आंदोलन को समर्थन दिया है. 2011 के आंदोलन को 'जन लोकपाल' नाम दिया गया था.
अन्ना हजारे ने पहले ही दिन साफ कर दिया कि आम आदमी पार्टी समेत किसी भी राजनीतिक दल के नेता, सदस्य, कार्यकर्ता या समर्थक उनके आंदोलन के मंच पर नहीं आ सकते. वैसे दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ आम आदमी पार्टी 2011 में हुए अन्ना आंदोलन के गर्भ से ही निकली पार्टी है.
साल 2011 के मुकाबले इस बार अन्ना हजारे के आंदोलन से मध्यम वर्ग नदारद दिख रहा है. उस वक्त आंदोलन पूरी तरह से भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम था जिसे मध्य वर्ग का काफी समर्थन मिला. इस बार ये किसानों के लिए आंदोलन है.
एक और बड़ा फर्क है कि 2011 में केंद्र और दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी, अब केंद्र में बीजेपी और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सत्ता है. आम आदमी पार्टी में शामिल ज्यादातर नेता अन्ना आंदोलन से ही लाइमलाइट में आए.
(साभार: न्यूज़18)
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