अब्दुल हबीब युसुफ मरफ़ानी: जंग -आज़ादी -ए - हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार.
लहू बोलता भी है
आईये, जंग -आज़ादी -ए - हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार को जानते हैं.
जंग -आज़ादी -ए - हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार.अब्दुल हबीब युसुफ मरफ़ानी
अब्दुल हबीब युसूफ मरफ़ानी ने अपना सब कुछ आई.एन.ए पर न्योछावर कर दिया था। आप अब्दुल हबीब युसुफ रंगून हिजरत कर गये थे, जो कि बर्मा कि राजधानी थी और वहां के एक अमीर कारोबारी बने। सन् 1943 मंे जब नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जर्मनी से रंगून गये तो उन्होंने इण्डियन नेशनल आर्मी की कमान अपने हाथ में ले ली और तब उन्होंने आज़ाद हिन्द फ़ौज और आज़ाद हिन्द बैंक का गठन किया।
9 जुलाई सन् 1944 को रंगून में नेताजी ने एक सभा का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई के लिए माली मदद मांगी। इससे असरअंदाज़ होकर सभा में मौजूद अब्दुल हबीब मरफ़ानीजी ने नेताजी से कहा कि आप थोड़ा इंतज़ार करें। मेरे पास जो कुछ हलाल की कमाई है, उसे मुल्क के लिए मैं लेकर आता हूं। यह कहकर हबीब साहब सभा से उठकर चले गये और थोड़ी देर बाद ही लौटकर आये तो सिर पर एक थाली थी, जिसमंे सोने के जेवर लदे हुए थे और एक कागज़ों के बण्डल का बैग भी था, जो उन्होंने नेताजी के हवाले किया। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस बहुत भावुक हो गये और सभा मंे ही उन्होंने एलान किया कि अब्दुल हबीब युसुफ़ मरफ़ानी साहब ने जो जे़वर व जायदाद के कागज़ात मुझे मुल्क की आज़ादी की जंग में लगाने के लिए दी है, वह अब तक की सबसे बड़ी रक़म है। जब यह खरीदा गया था, तब इसकी मालियत तक़रीबन 1 करोड़ 3 लाख थी। जबकि आज इसकी कीमत सवा सौ करोड़ रुपये होगी। मैं ख़ुद और मेरी इण्डियन नेशनल आर्मी हमेशा इनकी एहसानमंद रहेगी।
नेताजी ने हबीब साहब का मंच पर स्वागत किया। तब हबीब मरफ़ानी ने नेताजी से इसके बदले में इण्डियन नेशनल आर्मी की वर्दी मांगी और अपनी सेवा देने का एलान किया, जिसका नेताजी ने स्वागत करते हुए कहा कि भाई, आज मैं बहुत खुश हूं कि लोग अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हैं। जो हबीब सेठ ने किया, वह प्रशंसनीय है और जिस उत्साह से मादरे-वतन की इन्होंने मदद की, उसका कोई मोल नहीं है।
नेताजी ने अब्दुल हबीब युसुफ मरफ़ानी को सेवक-ए-हिन्द के पुरस्कार से नवाज़ा। सन् 2013, दिल्ली में नेताजी की सालगिराह मनायी गयी तो अब्दुल हबीब साहब की कुर्बानियों के लिए आपके के पोते अब्दुल हबीब याक़ूब को भी सम्मानित किया गया।
[सैय्यद शहनवाज अहमद कादरी]
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